महफिल
महफिल
दुआ करो के जालीम शैतान मरे
तालों से निकलकर महफिल जमे
खुल के जिंदगी सांस भरे
बेखौफ ईनसानियत पले
ना ऐब काम आए ना रौब
बस नेकी सब्र सादगी रहे
सच्चाई महंगी यूँ ही नहीं रही
ईन्सान को ईन्सान अब समझ ले
तू कुदरत की महज एक उपज
कीमत जिंदगी की अब तो समझ ले
यार हमराज साथ हों खड़े
फिर एक बार महफिल जमे
फिर एक बार महफिल जमे।