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Bhavna Thaker

Romance

5.0  

Bhavna Thaker

Romance

'रुहानी प्यार'

'रुहानी प्यार'

1 min
682


क्या जाने वो मजहबी दुश्मन

तेरा मेरा रुहानी प्यार

मोहब्बत में भी ये मज़हब ढूँढे

जो कहते है हमको विधर्मी

हमदोनों ने इश्क नहीं इबादत की है,

पूजा की है एक दूजे की...

जब जब मोहब्बत की मज़ार पे

बंदगी की कामना किये लिखने बैठता हूँ तुम्हें

मन से उठती है कपूर, लोबान मिश्रीत महक

बहती है मंद मलय संग 'इमरोज अमृता ' सी

आस-पास की आबोहवा में पवित्र सी

दिल मंदिर सा महसूस होता है

तुम देवी सी कोई विराजमान मुस्कुराती आ बसती हो मेरे मनमंदिर में

शब्द कस्तूरी से महकते है

कागज़ दिपदान ओर

कलम धूपबत्ती सी बन जाती है,

तुम्हारी याद इबादत बन तसव्वुर में उभरती है

हर मिसरा रुबाई बन जाता है,

हर एक अदाएँ बेमिसाल, किस पे क्या क्या लिखूँ जान ?

नखशिख हो तुम बड़ी कम्माल...

नैन प्याले,गाल बादामी,लब मैख़ाने जाम ए बहार,

ज़ुल्फ़े कोई साज़ पे छेड़ी तरो ताज़ा हो गज़ल जेसे,

गरदन सुराही मरोड़दार....

चाँद का टुकड़ा पूरा रुखसार,तेरे जवाँ शबाब पर गुरुर का ताज,

लिखते लिखते हो स्याही खतम ओर कागज़ कर दे सीमा पार...

प्रेम की अमर दास्तान सी हमदोनों के इश्क की कहानी,

पढ़े अगर कोई दिल से,

लगे कुरान या गीता सी पाक

ढूँढे कोई जो मजहब इसमें

दिखेगी सिर्फ बंदगी हमारी 'इमरोज अमृता ' सी॥


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