अभी बाकी है
अभी बाकी है
किसी अड़हुल के फूल की गोद में
मदमस्त लेते ओस की बूँद की तरह है
वो जिसे दिनकर की तपिस झेलना अभी बाकी है।
किसी कल्पतरु की नवनवेली बैलों की तरह है
वो जिन्हे धरा स्पर्श करना अभी बाकी है,
किसी कजरी लोकगीत की उठान की तरह है
वो जिसका सम्मान होना अभी बाकी है।
किसी टूटी पतवार के मांझी की तरह है
वो जिसे लहरों से लड़ना अभी बाकी है,
किसी मष्तिष्क में अपने अस्तित्व के लिए
लड़ते उन लाखो विचारों की तरह है
वो जिनका शब्द बनना अभी बाकी है,
किसी अधरंगे पट के टुकड़े की तरह है
वो जिस पर मधुबनी होनी अभी बाकी है,
किसी शुभ्र रंग में पड़े कुछ
अरुण छींटों की तरह है
वो जिनका रंग बदलना अभी बाकि है,
और किसी छोटी सी बालिका द्वारा
पुछे गए उन सहस्त्र अबूझ प्रश्नों की तरह है
वो जिनका उत्तर मिलना अभी बाकी है।।