मेरी माँ
मेरी माँ
मेरी प्रथम शिक्षिका,
मेरी जननी,
चलना सीखा जिस की,
ऊँगली पकड़ कर !
आज मज़बूर है चलने को,
मेरी माँ, मेरा कन्धा पकड़ कर,
सारा जीवन हमारे लिए,
खाने का डिब्बा तैयार थी वो करती,
आज अपने खुद के लिए,
चाय बनाने को है तरसती !
हर मौसम में थी मंदिर जाती,
और घंटों थी पूजा करती,
पर आज घर के मंदिर,
तक ना पहुँच पाती !
रिश्तेदारों की आवभगत,
थी दिल से करती,
आज बीमारियों के कारण,
उनके घर जाने से भी हिचकती !
शादी-पार्टी में सबको तैयार करके,
आखिर में खुद तैयार थी वो होती,
आज बीमारियों के कारण आखिर में,
तैयार होने के कारण है सब से डांट खाती।
बचपन में एक ही बात बार-बार पूछने पर,
भी धैर्य से थी उसका जवाब देती,
आज अपने बच्चों से केवल,
एक बार कुछ पूछने में भी है संकोच करती।
प्रार्थना है प्रभु से मेरी की,
रहे वो नज़रों के सामने,
हमेशा हँसती और मुस्कुराती।