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Kumari Aarti Sudhakar Sirsat

Romance Crime

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Kumari Aarti Sudhakar Sirsat

Romance Crime

तुम ही तो हो

तुम ही तो हो

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तुम ही तो हो आज भी कल भी मेरा

बिन तेरे जीवन जीना कैसा मेरा

साथ अपने रख लो मुझे जिन्दगी बनाकर

रहना नहीं अब मुझे तुमसे जुदा होकर

क्योंकि तुम ही हो


अब तुम ही हो

जिन्दगी अब तुम ही हो

लफ्ज़ भी, मेरी ग़ज़ल भी

मेरी दास्तां अब तुम ही हो

तुम्हारा नाम जो लिखा है इस पर

कितना खुशनसीब है हाथ ये मेरा


जब भी कहीं बात हो

जुबां पर बस जिक्र हो तेरा

रहता है हर वक्त अब तो तूँ मेरे ध्यान में

सोचना तुमकों रोजाना बस यहीं काम है मेरा

क्योंकि तुम ही हो !

तुमसे ही तो सिखा है जीवन ये जीना

एक पल भी अब दिल ना लगें तेरे बिना

धड़कन में तुम्हें ही बसाया है

साँसों पर भी अब तो तेरा ही नाम है

आओं तुमसे मैं खुद को जोड़ लूँ


तुम्हारा हर एक गम भरा आँसू में पी लूँ

क्योंकि तुम ही हो

अब तुम ही हो

जिन्दगी अब तुम ही हो

लफ्ज़ भी, मेरी ग़ज़ल भी

मेरी दास्तां अब तुम ही हो।


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