युद्ध
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ऑफिस से लौटकर आई रीता अपनी बेटी रिंकी को घर में ना पाकर बेहद परेशान हो गई, नौकरानी ने बताया कि रिश्ते के देवर महेश उसे अपने साथ घुमाने ले कर गए हैं।
“मगर तुमने उसे जाने क्यूँ दिया, मैंने तुम्हें मना किया है ना कि मेरे पीछे रिंकी किसी के साथ कहीं नहीं जाएगी ।” रीता नौकरानी पर चिल्ला पड़ी।
“मगर मैडम वो तो उसके चाचा है और रिंकी उनके साथ खूब खेलती भी है।” नौकरानी ने बोलना चाहा।
“मेरे सामने घर में खेलने में कोई बुराई नहीं मगर रिंकी का किसी के भी साथ यूँ बाहर जाना ठीक नहीं।” रीता के शब्दों में डर और चिंता साफ झलक रही थी। पाँच साल की छोटी मासूम रिंकी कहाँ होगी, महेश भैया यूँ तो भले इंसान है मन नहीं चाहता उन पर शक करूँ, मगर आज के समय में रिश्तों पर भी भरोसा नहीं रहा, कहीं रिंकी के साथ कुछ गलत हो गया तो?
रोज अखबार ऐसी घटनाओं से भरा होता है जिसमें चाचा, मामा, काका, अकंल कोई भी हो हर रिश्ते को लोगों ने कलंकित किया है, इसांनी रिश्तों पर आज इसांनियत ही सबसे ज्यादा शर्मिन्दा है….विचारों के भंवर में उलझी रीता आंगन में बेचैनी से इधर उधर चक्कर काट रही थी कि तभी हाथ में गुब्बारे और चॉकलेट थामें हुए रिंकी उछलती कूदती हुई घर में दाखिल हुई ।
हँसता मुस्कुराता बचपन इस बात से पूरी तरह अनजान था कि अभी अभी उसकी माँ विचारों के युद्धक्षेत्र में न जाने कितने महाभारत लड़ चुकी है।