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Shalini Rajvanshi

Classics

4  

Shalini Rajvanshi

Classics

कन्यादान

कन्यादान

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आज राशिद बहुत खुश था। वैसे तो किसी भी नौकरी में ट्रांसफर शब्द बहुत भयानक होता है लेकिन आज राशिद की ख़ुशी का कारण ये ट्रांसफर ही है क्यों की उसे आज ही आर्डर मिला है कश्मीर में पोस्टिंग का। राशिद ने जब से आकाशवाणी में एनाउंसर की जॉब शुरू की थी तभी से उसका सपना था की एक बार उससे जम्मू कश्मीर में रेडियो स्टेशन पर काम करने का मौका मिले। कश्मीर की खूबसूरती फिल्मों में देखकर उसकी इच्छा और मजबूत हो जाती। जब भी कोई वहां से घूम कर आता तो यही सुनने को मिलता -इतनी सुन्दर जगह से तो आने का मन ही नहीं था, जी चाहता था की वहीँ बस जाएँ।

बस सारा सामान बाँध राशिद जम्मू के लिए ट्रेन में सवार हो गया –

“लिए सपने निग़ाहों में , चला हूँ तेरी राहो में , ज़िंदगी आ रहा हूँ मैं” (फिल्म : मशाल )

नए स्टाफ के साथ एडजस्ट होने में उससे ज्यादा समय नहीं लगा। यूँ भी राशिद खुशमिज़ाज था और आम तौर पर लोग उससे पसंद करते थे। पहला ऑफ मिलते ही वो दोस्तों के साथ घूमने चल दिया।

यूँ तो राशिद का सभी से अच्छा मेलजोल था मगर उसकी सबसे ज्यादा आदित्य से छनती थी। इसका एक कारण उनका हमउम्र होना और दोनों का क्वार्टर एक ही कॉलोनी में होना। अक्सर दोनों साथ नज़र आते थे। राशिद को जब भी घर याद आता तो वो आदित्य के यहाँ चला जाता। आदित्य की एक बड़ी बहिन थी, पूनम दी, राशिद उन्हें इसी नाम से पुकारता था। पूनम दी की बात पक्की हो चुकी थी और आने वाले कुछ दिनों में उनकी शादी होने वाली थी। यूँ तो वो हमेशा घर के कामो में लगी रहती मगर राशिद और आदित्य दोनों से खूब बाते भी खूब करती और दोनों के खाने के लिए कुछ न कुछ बना भी देती।

अगले महीने ईद पर राशिद ने घर जाने का मन बनाया। लेकिन 15 दिन की बात कही तो डायरेक्टर सर ने साफ़ इंकार करते हुए कहा -" राशिद तुम्हे तो पता है की यहाँ स्टाफ की कितनी कमी है। 15 दिन तुम्हारे बिना कितना मुश्किल होगा, हर दूसरे तीसरे दिन किसी न किसी एनाउंसर को डबल ड्यूटी करनी पड़ेगी। मैं किस- किस को राज़ी करूँगा। तुम चाहो तो मैं 7 दिन की छुट्टी मंज़ूर कर सकता हूँ। "

राशिद अजीब कश्मकश में था की 7 में से 3 दिन तो सफर में ही निकल जाएंगे और घर के लिए सिर्फ 4 दिन ही मिलेंगे पर अब हो भी क्या सकता था। थोड़ी देर बाद आदित्य -राशिद के पास आया -" अरे भई घर वालों के लिए कुछ लेना नहीं है क्या ?छुट्टी में क्या खाली हाथ जाओगे, शाम को मॉल रोड चलते है और जमकर शॉपिंग करेंगे, कमाल है इतने दिन बाद घर जा रहे हो और चेहरे पर बिलकुल भी ख़ुशी नहीं। "

"4 दिन में क्या क्या करूँगा? अम्मी -अब्बु से तो ढंग से बात तक नहीं हो सकेगी। " राशिद ने धीरे से जवाब दिया। '4 दिन,अरे भई पूरे 15 दिन की छुट्टी मंज़ूर हुई तुम्हारी, मैं अभी सर से बात कर के आ रहा हूँ, यहाँ का सब मैं संभाल लूँगा। तुम बस घर जाने की तैयारी करो। ' आदित्य ने राशिद की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा।

शाम को दोनों ने जमकर खरीदारी की, घर पर सभी के लिए राशिद ने कुछ न कुछ ख़रीदा था। राशिद बहुत खुश था, उसने ख़ुशी ख़ुशी अपना रिजर्वेशन करवाया और ईद पर अपने घर आने की बात फ़ोन पर अम्मी को बताई।

सारे सामान की पैकिंग में पूनम दी और राशिद सारा दिन लगे रहे, राशिद को कल सुबह की ट्रेन जो पकड़नी थी।

' राशिद अब तुम सो जाओ, वैसे भी पूरा दिन काम करके तुम थक गए हो और हां ट्रेन में खाने के लिए मैं सुबह खाना बना दूँगी। रास्ते से लेकर कुछ भी उल्टा सीधा मत खाना '. पूनम दी ने राशिद को मीठी फटकार लगाकर घर चली गयी।

सुबह मोबाइल के अलार्म से राशिद की आँख खुली तो सारा शरीर बुखार से तप रहा था, जैसे तैसे चाय बनाकर पी और दुबारा बिस्तर पर जाकर लेट गया।

"अरे अभी तक तैयार नहीं हुए, जल्दी करो वर्ना ट्रेन छूट जायेगी", आदित्य घर में घुसते हुए बोला। "

"अरे यार सारा शरीर दुःख रहा है, बुखार भी है", राशिद ने जवाब दिया। "चलो फिर जल्दी से, डॉक्टर को दिखा लेते है।", आदित्य ने कहा।

लौटने के बाद राशिद बिस्तर पर निढाल लेट गया, अपने घर न आने के बारे में घर फ़ोन वो क्लिनिक से ही कर चुका था, क्यों की डॉक्टर के अनुसार उससे मीज़ल्स हो गयी थी, ऐसे में वो शहर तो क्या, घर से बाहर भी नहीं जा सकता था।   

मन की बेबसी थी या घर न जा पाने की कसक, राशिद की आँखे यूँ ही छलक पड़ी।

 "आँख है भरी भरी और तुम मुस्कुरानी की बात करते हो (फिल्म : तुमसे अच्छा कौन है )

आदित्य की मम्मी ने राशिद को जरूरी हिदायतें दी और पूरा आराम करने को कहा। जब तक राशिद पूरी तरह ठीक नहीं हो गया, आदित्य और पूनम दी पूरी तरह दिन-रात उसकी देखभाल में लगे रहे, ईद का दिन आते -आते राशिद काफी ठीक हो गया था, अब तो बस कमज़ोरी थी।

ईद वाले दिन आदित्य ने पूरा घर खूबसूरती से सजाया और पूनम दी और आंटी ने उसके मनपसंद खाना बनाया। पूनम दी ने उसके लिए ख़ास तौर से सेवइयां भी बनाई।  

अब पूनम दी की शादी के दिन पास आ रहे थे इसलिए दोनों कुछ ज्यादा बिजी हो गए। कभी टेंट वाले के पास जाना पड़ता तो कभी हलवाई से बात करनी होती और कभी कभी तो पूनम दी और आदित्य की मम्मी के काम भी करने पड़ते। आंटी अक्सर उन दोनों से कहती - " भई शादी का घर है हज़ारो काम होते है ". मन की ख़ुशी और बहिन की शादी का जोश हर थकन से ऊपर होता है। 

 शादी यूँ तो ख़ुशी का मौका होता है लेकिन बेटी की बिदाई का ख्याल ही आँखे नम करने के लिए काफी है। मिठाइयों की खुशबू से सरोबार आदित्य का घर मेहमानो से भरने लगा था। आज सगाई, कल मेहंदी और परसो शादी, फिर विदाई, सिर्फ तीन दिन और था पूनम दी का साथ। अचानक राशिद को अपनी छोटी बहिन सना याद हो आई, ये सब एक दिन उसके घर भी तो होना था, शायद अब्बु सही कहते है की कुदरत ने ये हिम्मत बेटियो को ही दी है की जहां वो पैदा होती है, फलती -फूलती है, एक दिन उसी घर को छोड़कर, किसी दूसरे का घर गुलज़ार करती है और वहां जाकर अपना सब कुछ देकर, सबको अपना बना लेती है। शायद इसीलिए बेटियों की तुलना धान के उस पौधे से की जाती है जो पैदा होने के बाद उखाड़ कर दूसरी जगह सिर्फ इसलिए रोप दिया जाता है ताकि वो अच्छी तरह से पनप सके। यूँ भी बेटिया अपने घरों में बसी हुई ही अच्छी लगती है।

अचानक वो छोटी छोटी चीज़ो पर ज़िद करने वाली बात बात में रूठने वाली सना राशिद को बहुत बड़ी सी लगने लगी।

" बाबुल का ये घर बहना ... कुछ दिन का ठिकाना है। (फिल्म : दाता )

आदित्य छुट्टी पर था इसलिए आज राशिद को डबल ड्यूटी करनी पड़ी। घर पहुंचा तो रात के बारह बजने वाले थे। बिस्तर पर लेटा ही था की उससे ख्याल आया की कल पूनम दी की शादी में पहनने के लिए जो कपडे ख़रीदे है वो तो गाडी की डिक्की में ही रह गए। कपडे लेकर आया तो देखा के आदित्य दरवाज़े पर खड़ा है।

आदित्य को परेशान देख राशिद भी घबराया, फिर सम्भलते हुए बोला, "आदित्य सब ठीक है ? ये हाथ पे कपडा क्यों लपेटा है ?" अरे इसीलिए तो तुम्हारे पास आया हूँ आज जरा सीढ़ियों से फिसल गया था, दोनों हाथो में बहुत दर्द है,आदित्य ने जवाब दिया। कोई पेन किलर है तो देदो ताकि कल शादी का काम अच्छे से हो, आदित्य ने थोड़ा ने थोड़ा परेशान होते हुए कहा।

'तुम्हारे तो दोनों हाथो में सूजन है, चलो मैं पास वाले क्लिनिक ले चलता हूँ, राशिद ने आदित्य बैठाते हुए कहा।

जब वो दोनों क्लिनिक से लौटे तो आदित्य के दोनों हाथों में प्लास्टर था क्यों की सीढ़ियों से गिरने की वजह से उसके दोनों हाथो की हड्डी टूट गयी थी।

शादी में राशिद आदित्य के साथ साये की तरह लगा रहा। हर काम की ज़िम्मेदारी राशिद ने ही संभाली मानो शादी उसकी अपनी सगी बहिन की ही हो।

फेरो के समय पंडितजी रस्मों को पूरा करने के लिए लड़की के भाई को बुलाया तो आदित्य की आँखों में आंसू आ गए, वो अपने दोनों हाथो को देखने लगा, मगर तभी उसने पंडितजी से कहा - " हाँ हाँ, पंडितजी लड़की का भाई आ रहा है रस्मों के लिए"।

आदित्य ने पास बैठे राशिद को जाने का इशारा किया।

मैं,मैं कैसे" राशिद हिचकते बोला, मैं कैसे करूंगा, मुझे आता नहीं और फिर मैं तो........... .

" बस अब कुछ नहीं बोलना राशिद " आदित्य टोकते हुए बोला। पूनम दी ने कभी भी तुम्हे गैर माना है जो आज तुम उन्हें पराया कर रहे हो। और जब ऊपर उस स्वर्ग में भेद भाव नहीं, वहां किसी की पहचान उसके धर्म से नहीं तो तो फिर हम इस धरती के स्वर्ग पर भी वैसा करे । जाओ राशिद पूनम दी तुम्हारे इंतज़ार में है।

राशिद ने पंडितजी के कहे अनुसार सारी रस्मे पूरी करी और पूनम दी को विदा किया। 

"हाथ सीता का राम को दिया ....... जनक राजा देंगे और क्या . (फिल्म : घर संसार )


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