भय
भय
सीमा ट्यूशन सेंटर से बाहर आई तो देखा रोड लाइट्स जल चुकी थी, आज उसे ज्यादा ही देर हो गयी थी। जब भी सेंटर में मीटिंग होती थी तो उसे देर हो ही जाती , मगर आज समस्या ये थी आज ऑटो और बस की आज हड़ताल थी और उसे पदैल ही अपने घर तक जाना था। आज ठण्ड और दिनों से कुछ ज्यादा ही थी शायद इसीलिए सड़क पर आवाजाही कम थी। सीमा ने तेज तेज कदमो से चलना शुरू किया।
छोटी सड़क पर मुड़ी तो अचानक उसे अपने पीछे किसी के कदमो की आहट सुनाई दी। सड़क दूर तक वीरान थी इसीलिए सीमा अनजाने भय से डर गयी। उसके पीछे की पदचाप उसे अपने कुछ नज़दीक आती हुई महसूस हुई तो उसने कुछ और तजे चलना शुरू कर दिया। " मााँ सही कहती है वाकई मैं लापरवाह हूँ , आज फिर फ़ोन घर भूल आई , अगर पास होता तो अभी नरेश भैया को फ़ोन कर के बुला लेती। " सीमा मन ही मन बुदबुदाई।
अब तो सामने घर की गली थी मगर कल ही किनारे जलने वाला एक मात्र बल्ब भी बच्चो की बॉल का शिकार हो गया था। इसलिए गली भी अँधेरे में डूबी थी , सीमा ने सोचा अगर पीछे वाले व्यक्ति ने ज़रा भी कुछ कहा तो वो शोर मचा देगी, गली में कोई न कोई तो निकल हअरे ! सीमा रुक, आगे गहरा गड्ढा है आज ही पाइपलाइन ठीक करने वाले आये थे उन्होंने सारा खोद डाला है मैं मोबाइल से टोर्च दिखाता हूँ , आजा मेरे साथ"
ये आवाज़ पड़ोस में रहने वाले गीता काकी के बेटे नरेश भयैा की ही थी जिन्हे सीमा बचपन से राखी बांधती थी, सीमा को यूँ लगा जैसे किसी ने उसे जीवनदान दे दिया हो। "मैं तुझे इतनी देर से पकड़ने की कोशिश कर रहा हूाँ मगर तू तो एक्सप्रेस ट्रैन की तरह भाग रही है ,क्या बात है ? सब ठीक है ? " भयैा ने सीमा से पूछा। " हां भैया सब ठीक है , वो आज ठण्ड ज्यादा है , और मुझे देर भी हो गयी है बस इसीलिए जल्दी-जल्दी चल रही थी, घर पर मााँ इंतज़ार में होंगी।" सीमा ने जवाब दिया
सीमा ये सोचने पर मजबूर हो गयी की हम कैसे युग में जी रहे है जहां अपने पीछे आने वाले कदमों की आहट भी किसी लड़की को भयभीत करने के लिए काफी है, चाहे पीछे आने वाला उसका भाई ही क्यूँ न हो।