Dilip Kumar

Drama

4.7  

Dilip Kumar

Drama

यंग सेक्रेटरी

यंग सेक्रेटरी

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बाहर झमाझम बारिश हो रही है । बहुत दिनों से बारिश नहीं हुई थी। इधर कुछ दिनों से पानी का सप्लाई भी कम हो गया था। पिछले साल विनीता ने तो मुझे डरा ही दिया था। पानी नहीं तो नहीं और हाँ तो डूब जाएंगे सर जी। घुटनों तक पानी भर आता है 850 ब्लॉक में। खैर, बादलों की गर्जना कम हो गई . बारिश भी थम गई है। नरेश बाबू ने पहली बार इतना रुपया देखा था। हमारे यहाँ पैसे से प्रतिष्ठा आती है। घर के अंदर से ही गड़ा खजाना हाथ लगा था। कुछ ताम्रपत्र, अशर्फियों से भरे अज्ञात खजाने को पाकर नरेश बाबू मालामाल हो गए। इतना भी नहीं सोचा -ये किसी के धरोहर होंगे। किसी को भनक तक नहीं लगी और नरेश बाबू बड़े आदमी हो गए। ताम्र पत्र तो उन्होने मंदिर में दान कर दिया। बाद में पुजारी पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया। जब तक वह माजरा समझ पाता, उसे आजीवन कारावास की सजा हो गयी क्योंकि ताम्र पात्र में उल्लिखित राशि का उन्हें न तो पता था या पता चलने दिया गया। हाँ, बाबू साहब ने पुलिस और कोर्ट में पैसे खर्च कर इन्हें आजीवन सजा करवा दी। दो बोरी समजीरवा चावल में इनका काम बन गया।

हाँ, नरेश बाबू की पत्नी मर गयी थी, हाले -फिलहाल में। दिग्विजय सिंह की पत्नी भी उसी समय मरी थी। हाँ सो नरेश बाबू ने पंडिताइन को अपने पास ही रख लिया। कुछ पैसे हर महीने देते हैं जिसे वह जेल में अपने पति को दे आती है। यहाँ के जेल के नियम भी अजीबोगरीब हैं। पहली बार जब ये जेल पहुंचे तो रात भर सो नहीं पाये। जेल में भी वो तमाम सुविधाएं हैं जो बाहर की दुनिया में संभव है। आपको तो बस पैसा फेको, तमाशा देखो। घर का खाना, रहने सहने के ठाट, नौकर चाकर सभी तो उपलब्ध हैं। हाँ तो इन्होने "देहली वाली प्राइवेट स्कूल ' खोला है। हनच के पैसा कमा रहे हैं। पैसे वाले को पैसा है । हाँ तो बाबू साहब को प्रिन्सिपल चाहिए। लेकिन जब भी वो उनसे मिलने आए तो चप्पल, जूता बाहर ही रखना है जैसे कोई मंदिर में जा रहे हैं। लेकिन जब से ये गोरी मैडम आई हैं साहब से का स्कूल में कुछ ज्यादा ही मन लगने लगा है। यहाँ पंडिताइन को भी टाइम से पहले खाना बनाकर अपने घर जाना है। ज्यादा देर तक रुकने से और रात में यहाँ से जाने से न जाने और क्या क्या हो ? लोग क्या कहेंगे ?

नरेश बाबू का बेटा भी पिता की अनुपस्थिति का लाभ उठाना चाहता है। उसे घूरता रहता है, लेकिन वह उसे भाव ही नहीं देती। लेकिन उसे नरेश बाबू का स्कूल में ज्यादा देर तक समय बिताना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता है। एक और व्यक्ति हैं जिसे चेयरमैन का स्कूल में और खासकर प्रिन्सिपल के कमरे में आना अच्छा नहीं लगता। वह नरेश बाबू के घर का सारा काम करती है। अब तो उसने कपड़ों पर प्रैस करना भी सीख लिया है। नरेश बाबू ने ही उसे बड़े सलीके से सिखाया था। स्कूल में अंग्रेजी के नए नए अध्यापक आयें हैं -तनवीर सर। चेयरमैन अक्सर कहते हैं - मुझे इनमे अपना अक्स दिखता है। मैं तो चाहता हूँ कि स्कूल में सिर्फ शिक्षिकाएँ ही पढ़ाएँ, इनसे बच्चों को भी पाठ जल्दी समझ में आ जाता है और ये अभिभावकों को भी अच्छी तरह से समझा सकती हैं।

तनवीर की जिह्वा से निकलनेवाले हर शब्द में मिसरी की डली घुली होती है। रश्मि मैडम तो कहती हैं कि उन्हें तनवीर कि आँखों में तो सिर्फ शरारत दिखती है। उस दिन कुछ ऐसा हुआ कि नरेश बाबू ने प्रिन्सिपल मैडम के रेसिडेंस के नीचे बने हुए पर रेस्त्रा पहुँच कर फोन किया - मैडम मैं आपके पास आऊँ या आप मेरे पास आएँगी। मैडम ने कहा -मैं ही आती हूँ। घंटों बातें हुई । साहब ने कहा आप मेरी बात ही नहीं समझ प रही हैं। इस वर्ष जितना ज्यादा एड्मिशन उतना ज्यादा बोनस। हर एक एड्मिशन पर पाँच हज़ार रुपए अतिरिक्त। मैडम तो समझ ही नहीं पा रही हैं या समझ कर भी अनजान बनी हुई हैं। कल ही उन्होने सी. सी. टी. वी. कैमरे मे जो कुछ भी देखा उन्हें असहज कर दिया। अपने तनवीर सर भी अल्हड़ हैं । इस विद्यालय में शिक्षकों की औकात दो टके की है। ट्रांसपोर्ट इन चार्ज, बाबू से लेकर न जाने कितनों को इन्हे सलाम ठोकना पड़ता है। लेकिन अंग्रेजी वाले सर इनमे से किसी को भाव नहीं देते। इसलिए तो खबर उड़ा दी गई कि तनवीर सर की आजकल उर्दू टीचर से चल रही है। कुछ लोग कहते हैं कि ये सब संदीपिका का करा कराया है। वास्तव में वहाँ अध्यापिकाओं के मध्य एक ही तो अध्यापक है। सभी उनके नाम से टिफ़िन लाती हैं । जिनका टिफ़िन उन्होने स्वीकार नहीं किया - हो गई वही दुश्मन। अक्सर अपने मोबाइल मे उलझे रहते हैं।

किसी ने अगर पूछ दिया तो तत्काल कहते हैं मिस काशी उनकी पुरानी फ्रेंड हैं, उन्हीं का फोन आता रहता है। सुनकर जल भून गई संदीपिका। नमक-मिर्च लगाकर पहुंचा दिया प्रिन्सिपल मैडम के पास। अब तो हर दिन एक नया नाम जुड़ जाता । बस क्या था। उनका नाम भी जुडने लगा सबसे। कभी चेयरमेन से तो कभी अकाउंटेंट से तो कभी किसी पैरेंट्स के साथ नित्य नई कहानियाँ चटकारे लेकर चर्चा करते। एक दिन चेयरमैन साहब ने या गोरी मैडम ने तनवीर जी को बुला ही लिया। चेयरमैन साहब ने तनवीर सर से कहा कि अब हमे बच्चों को अमेरिकन अंग्रेजी सिखानी चाहिए, और हो सके तो इंग्लैंड और फ़्रांस वाली भी। तनवीर सर मुस्कुराए और गोरी मेम भी।

उन्होने यह नहीं बताया कि फ़्रांस में फ्रेंच। लेकिन चेयरमैन साहब ने पाँच हज़ार वाली स्कीम भी तनवीर सर को बता दी यानि गोरी मेम की ऊपरी आमदनी मे से कुछ और कमी। यह बात उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रही थी। तनवीर के जाते ही उन्होने साहब से त्याग पत्र देने की बात कही तो चेयरमैन साहब गुस्से से आग बबूला हो गए। ऐसी बात कि तो सीधे गोली मार दूंगा। मैं तुझे गवाना नहीं चाहता। हाँ, उन्होने दो लाख रुपए फ़िनलंड जाने के लिए स्वीकृत कर दिए। मैडम को भी इस अधेड़ चेयरमैन की कमजोरी मालूम हो गई थी। इसका फायदा उठाकर एक ही वर्ष में अपनी सैलरी दुगनी करवा ली। गोरी मैडम सुंदर और अल्हड़ है। उम्र के अनुरूप नहीं दिखती। काफी मेक उप करती हैं। लिपस्टिक भी विदेश वाली और काफी महंगी - लेकिन सब कुछ स्पोंसरड है। यहाँ तक कि पार्लर भी। विदेश में भी इतनी जल्दी तनख्वाह नहीं बढ़ती थी। लेकिन तनवीर सर मैडम को अखर गए थे।

उन्होंने तत्काल प्रभाव से तनवीर सर को सेवा मुक्त कर दिया। हुआ यूँ कि तनवीर सर शनिवार को अपने घर बनारस गए हुए थे। अगले ही दिन उन्हें स्कूल से एक मेल के माध्यम से सूचित कर सेवा मुक्त कर दिया गया। तनवीर ने चेयरमैन को फोन लगाया लेकिन न ही उन्होने फोन उठाया और न ही कोई जवाब ही दिया। चेयरमैन ने इस प्रकार कितनों को हराया था। एक्सट्रा मार्क्स वाले, आइ एल एम वाले और न जाने कितने ठेकेदार, बैंक और दुकानदार से तगादा आता ही रहता था। लेकिन चेयरमैन साहब डी. सी से डरते थे और गोरी बोर्ड से।

इन्होंने बस दो ही ट्वीट किए और अगले ही दिन चेयरमैन साहब का कॉल आ गया। किसी ने विद्यालय का ईमेल हैक कर आपसे भद्दा मज़ाक किया है। आप वापस आ जाइए। छह घंटे की ही तो बात थी। चेयरमैन साहब अपने एक पुराने मित्र चंदरेश्वर और उनकी जवान सेक्रेटरी को स्कूल दिखा रहे थे। उन्होने गोरी मैडम से उनका परिचय करवाया- इन्हे हमारे समकक्ष पद पर नियुक्त किया गया है । मतलब नहीं समझी मैं आपका। इसका मतलब है कि सर कल से स्कूल जॉइन कर रहे हैं। इनकी रिपोर्टिंग सिर्फ चेयरमैन को होगी और आपकी दोनों को। अपने कमरे में जली-भुनी मैडम सोच रही इसका मन अब मुझसे भर गया है। बात ऐसी थी कि साहब की रुचि अपने मित्र में कम और उनकी परमानेंट यंग सेक्रेटरी में ज्यादा थी।


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