यह जिंदगी
यह जिंदगी
आज के विषय ने कुछ लिखने पर मजबूर कर दिया...
एक वक्त था जब हमारे पास कुछ नहीं था लेकिन रिश्तों की दौलत थी..। गाहे-बगाहे भी यदि कोई गुजर जाता तो राम-राम कहता और शरीर में दो बूंद खून और चेहरे पर हंसी मुस्कुराहट तैर जाती थी...।
लेकिन आज सब कुछ होते हुए भी बड़ी-बड़ी गाड़ियों बंगलों में रहते हुए रिश्ते एकदम खोखले मुर्दे से होते जा रहे हैं ...
अपनों के लिए समय नहीं है किसी के पास एक छत के नीचे लोग मोबाइल से चैट करके बात कर लेते हैं..
यह आधुनिकता का समय है या रिश्तों में खोखलाहट का समय आ गया..।
आज लोग एक दूसरे से मिलते भी हैं तो महज औपचारिकता वश...किसी को किसी के दुख सुख से कोई लेना-देना नहीं..
बस अपने में मस्त सी जिंदगी जीने को आतुर रहते हैं..। अपने माता-पिता के लिए समय नहीं अपने बच्चों के लिए समय नहीं..
जब समय की धार पर एक दूसरे को उस वक्त समय की माँग होती है.. तब उनके पास समय नहीं रहता और जब जिंदगी के आखिरी पड़ाव में वह मजबूरन अपनों से वक्त की माँग करते हैं ..तब उनके पास अपनों के लिए समय नहीं रहता ..अधिक उम्र हो जाने पर भी लोग उबने से लगते है.....।
और जब वह अंतिम शैया पर लेटे होते हैं तो रोने को महज चार आँसू गिराकर यात्रा में शामिल हो लेते हैं...।
एक मुर्दे ने क्या खूब कहा....
यह लोग जो रोते हैं मेरी लाश पर..
अभी उठ जाऊँ तो जीने नहीं देंगे..
मुस्कुरा दूँ तो हँसने नहीं देंगे..
अपनी यात्रा पर चला हूँ तो आ गए पानी के आँसू गिराने.....।
कुछ इस तरह एक फकीर जिंदगी की मिसाल दी
मुट्ठी में धूल ली और हवा में उछाल दी...।
