ये तुम्हारा ही गन्दा खून है
ये तुम्हारा ही गन्दा खून है
"पता नहीं किस का गंदा खून है यह ? मेरे पूरे समाज में बेइज्जती करके रख दी, इतने अच्छे घर से इतनी अच्छी लड़की से शादी करवाई पर इन्हें तो रंगरलियो से फुर्सत नहीं है जगह जगह मुंह मारता फिरता है"। और एक चढ़ती हुई गाली मिस्टर त्यागी ने अपने बेटे के साथ साथ अपनी पत्नी को भी दे डाली। वह पत्नी जो इतने सालों तक इन गालियों की आदी हो चुकी थी। आज गंदा खून वाली बात सुनकर तिलमिला उठी
,वह आज पलट कर कोई जवाब देने ही वाली थी कि तभी अपने कपड़ों का बक्स लिए रुचि उनकी बहू आ गई। "मम्मी जी, पापा जी मैं अपनी तरफ से जितनी कोशिश कर सकती थी.. कर चुकी, मेरे माता-पिता ने मेरी शादी इसलिए यहां नहीं की थी के ससुर जी का समाज में इतना मान-सम्मान है.. उन्होंने जिस लड़के से मेरी शादी की उसके मन में ना इस परिवार के लिए कोई सम्मान है ना अपनी पत्नी के लिए अगर उन्हें बाहर ही अफेयर्स रखने हैं तो मेरा यहां कोई काम नहीं है मैं जा रही हूं तलाक के कागजात भिजवा दूंगी। भगवान का शुक्र है कि कोई संतान नहीं हुई अन्यथा मामला और उलझ जाता।
मिस्टर त्यागी अभी भी फूंकार रहे थे, दांत भीचते हुए अपनी बहू से बोले।
"बेटा गलती तुम्हारी नहीं है गलती हमारी पालन पोषण में ही रही होगी तुम्हारी सास तो किसी लायक नहीं थी बच्चे संभालने का काम भी ढंग से नहीं कर पाई... सही से परवरिश की होती तो आज यह दिन ना देखना पड़ता.. पता नहीं यह नालायक इस घर में कैसे पैदा हो गया ?कमीना मेरा खून तो नहीं लगता"
बहू के सामने दोबारा वही बात सुनकर आज स्मिता देवी अपमान की आग में जल उठी.. बोली
"रुचि बेटा चले जाना.. काश जो कदम आज तुमने उठाया है वही सालों पहले मैंने उठाया होता तो आज यह गंदा खून मेरी कोख से पैदा नहीं होता..
रुचि हैरानी से अपनी सास को देखने लगी और मिस्टर त्यागी के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया। स्मिता अपने पति की तरफ मुड़ी और बोली
"हां!यह तुम्हारा ही गंदा खून है आज तुम्हें बहुत अपने मान सम्मान की पड़ी है ..कुछ याद है या मैं याद दिलवायु कि कैसे 17 वर्ष की आयु में तुम से ब्याह कर आई थी। उसके बाद भी जब गोने के लिए मायके गई तो तुम्हारी रंगरलियां और संबंधों के किस्से गाहे बगाहे सुनने को मिलते रहते थे।
तुम्हारी मां,यानी मेरी सासू जी ने खुद अपने मुंह से बताया कि कैसे पड़ोस की एक लड़की का अबॉर्शन उन्हें तुम्हारी वजह से करवाना पड़ा। तुम पैसे वाले परिवार से थे इसलिए सब का मुंह बंद कर दिया गया। जब मैं रोने लगी तो सासू मां ने कहा बेटा अभी कच्ची उम्र है तुम दोनों की तुम देखना मेरा बेटा तुम्हें बहुत खुश रखेगा इसी उम्मीद में मैंने इतने साल निकाल दिए....
पर तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तुमने तो मेरे मायके के पड़ोस की लड़कियों को भी नहीं छोड़ा ...भूल गए कैसे तुम्हें गंदी हरकत करते देखा था उस पड़ोस की ब्याहता के साथ, पर चुप रही सिर्फ अपने बच्चों की वजह से मां की उस सीख की वजह से बेटा जैसे भी हो निभा लेना अब वही तुम्हारा घर है।
"तुम्हारा विरोध करने पर ,,प्रश्न करने पर तुमने मार पिटाई की मेरे साथ ..अरे ये नालायक डंके की चोट पर अपना गलत सम्बन्ध कबूल रहा है। तुम तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी करते रहें। मुझे अनपढ़,छोटी सोच की बताया तुमने। धीरे धीरे मेरा मुह बन्द कर दिया"
"काश !काश ...मैं उस समय बोलती तो आज इस उम्र में इतना घुटन और अपमान ना सहना पड़ता.. कितनी बड़ी बात बोली तुमने के पता नहीं किस का गंदा खून है ?अपने कर्मों को याद करो जो स्थिति तुम्हारी है उस स्थिति में अपने पिता को याद करो"।
"और अभी भी तुम सुधरे नहीं हो आज भी तुम्हें यह चिंता नहीं खा रही कि तुम्हारे बेटे का घर बिगड़ रहा है अभी भी तुम्हें चिंता अपने मान-सम्मान राजनीति में अपने स्थान अपनी कुर्सी की है"।
"शुक्र है! ईश्वर ने तुम्हें बेटी नहीं दी यदि तुम्हारा दामाद तुम्हारी बेटी के साथ ऐसा करता तब तुम्हें समझ आता कि जो लड़की इतने विश्वास के साथ जिस इंसान के पीछे अपना सब कुछ छोड़ कर आती है, अपना सब कुछ समर्पण करती है और वह एक बाहरी औरत के लिए बात बात पर उसका अपमान करें उसे छोड़ने की धमकी दे तो उस बेटी पर उसके माता पिता पर उसके परिवार पर क्या गुजरती है तुम उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते "।
"चलो रुचि इस घर से सिर्फ तुम नहीं मैं भी जाऊंगी यह और इनका गंदा खून रहे इस घर में.. जैसा बोओगे वैसा काटोगे जो तुमने किया वही तुम्हारा बेटा कर रहा है । बस काश !जो रुचि ने किया वही सालों पहले मैं करती तो आज इतनी गंदी बात ना सुननी पड़ती ।
और स्मिता जी, रूचि का हाथ पकड़ उस दहलीज से बाहर आ गई जिस दहलीज के लिए उनकी मां ने बोला था बेटा अर्थी के रूप में ही बाहर निकलना..आज अर्थी तो निकली है लेकिन स्मिता जी कि नहीं एक घुटन भरे रिश्ते की।