Priyanka Gupta

Drama Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational

ये मेरे ससुर जी हैं

ये मेरे ससुर जी हैं

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राज्य सेवा आयोग ने मुझे तहसीलदार के पद के लिए चुन लिया था। नियुक्ति से पहले सभी सेलेक्टेड कैंडिडेट्स का मेडिकल होता है;तो मेरे भी मेडिकल की डेट आ ही गयी थी।अच्छा ही है सरकार के पैसे पर एक बार पूरी बॉडी का चेक अप हो जाता है ;हींग लगे न फ़िटकरी और चोखा ही चोखा रंग । मैं और ससुर जी दोनों बच्चों सहित मेडिकल के लिए सरकार द्वारा चिन्हित अस्पताल में पहुँच गए थे।यह शहर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल था । सरकारी अस्पतालों में चाहे सुविधा अच्छी न हो ;लेकिन डॉक्टर सब एक से बढ़कर एक वैल क्वालिफाइड होते हैं ।वैसे भी मलाई सरकारी नौकरियों तक पहुँचती है ;बाकी छाछ इधर -उधर । मेरी बड़ी बेटी तीन वर्ष की थी और छोटा बेटा मुश्किल से 1 साल का।

हमारे मेडिकल बोर्ड में कोई 10 लड़कियाँ और थीं। हम सभी को अलग -अलग प्रकार मेडिकल टेस्ट के लिए अलग -अलग जगहों पर भेजा जा रहा था। सभी अपने -अपने नंबर का इंतज़ार कर रहे थे। ससुर जी दोनों बच्चों को अच्छे से सम्हाल रहे थे। मैं भी बीच -बीच में जाकर बच्चों को देख लेती थी।

हम सब लड़कियाँ आपस में बातें कर रही थी। एक -दूसरे का नाम और कहाँ से आयी हैं ?कौनसी सर्विस आवंटित हुई है ?आदि सवाल पूछे जा रहे थे। 

तब ही एक लड़की ने कहा, "स्नेहा जी, बच्चे नाना से बहुत घुले -मिले हुए हैं। आपके पापा बच्चों को कितने अच्छे से रख रहे हैं। आपने तैयारी मायके में ही रहकर की होगी। "

मेरे कुछ बोलने से पहले ही, एक दूसरी लड़की तपाक से बोल पड़ी, "यह भी कोई पूछने की बात है ?ससुराल में रहकर पढ़ाई होती है क्या भला ?"

मैं अक्सर ही यह सवाल सुनती रहती हूँ ?यह प्रश्न किसी न किसी रूप में मेरे सामने आता ही रहता है। इस प्रश्न को सुनकर, मुझे अपनी किस्मत पर नाज़ हो उठता है। 

हो भी क्यों नहीं, शादी हुई थी ;तब मैं महज 18 साल की थी। बारहवीं पास करते ही, मेरी शादी कर दी गयी थी। अपनी ज़िन्दगी में कुछ करने के मेरे सपने को एक झटके में तोड़ दिया गया था। हमेशा से ही एक मेधावी छात्र रही थी ;मेरे अध्यापकों को ही नहीं, मेरे मम्मी -पापा को भी मुझसे बड़ी उम्मीदें थी। 

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पापा का बिज़नेस ठीकठाक था;हमारा अच्छा खाता -पीता परिवार था। पापा को बिज़नेस में बहुत बड़ा घाटा लगा। हमारे घर -दुकान सब बिक गए। पापा यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और उनकी मृत्यु हो गयी। मम्मी अपनी बची -खुची पूँजी और हम दोनों भाई -बहिन को लेकर अपने मायके आ गयी। 

वहाँ रहते हुए, मैं कॉलेज में एडमिशन लेती ;उससे पहले ही मेरे लिए एक रिश्ता आ गया। मेरे पति तपेश भी दो भाई -बहिन ही थे। कुछ वर्ष पहले ही तपेश की मम्मी का देहांत हो गया था। तपेश के पापा की सरकारी नौकरी थी ;खुद का घर था ;तपेश की बड़ी बहिन की शादी हो गयी थी। तपेश अभी कॉलेज में ही थे ;लेकिन घर में किसी औरत का होना जरूरी है ;यह सोचकर तपेश के पापा और बहिन उनकी शादी करवाना चाहते थे। 

"दीदी, अच्छा रिश्ता है। कोई माँग भी नहीं है। लड़की के लिए लड़का ढूंढने में लोगों की पैरों की जूतियाँ घिस जाती हैं। मेरी मानो तो हमें चूकना नहीं चाहिए। ",छोटे मामाजी ने कहा। 

वैसे भी हम तीन लोग मामा पर बोझ बन गए थे। यह बात अलग है कि, "मैं और मम्मी दोनों ही मामी को पत्ता तक नहीं हिलाने देते थे। "

मम्मी ने मेरी और बड़ी निरीह आँखों से देखा। मुझमें अपनी मम्मी की लाचारी देखने जितनी तो समझ ही थी। मैंने अपना सिर झुका लिया था। मामाजी मेरे छोटे भाई को किसी दुकान पर काम पर लगाने का प्लान कर रहे थे। मैंने सोचा कि, "शायद मेरे इस बलिदान से उसे स्नातक तो पढ़ने का मौका मिल जाए। "

तपेश से मेरी शादी हो गयी और मैं अपने ससुराल आ गयी। शादी के बाद कोई एक महीने तक तपेश की बड़ी दीदी मीनाक्षी हमारे साथ रही। उसके बाद यह कहकर वह अपने ससुराल लौट गयी कि, "स्नेहा, यह घर अब तुम्हारी जिम्मेदारी पर है। "

अब मैं बिना सास के ससुराल में अकेले ही रह गयी थी। शादी से पहले एक बार मम्मी ने थोड़ी चिंता जताई थी कि, "बेटा, बिना सास के ससुराल में निभाना बड़ा मुश्किल हो जाता है। खुद की सास न हो तो पचास सासें बन जाती हैं। तू कहे तो मैं मामाजी को मना कर देती हूँ। "

अब ओखल में सिर दे ही दिया तो मूसलों से क्या डरना ?यह सोचकर मैंने मम्मी को कहा कि, "मम्मी, जो होगा देखा जाएगा। अब तो शादी को थोड़े ही दिन बचे हैं। मेरी किस्मत में जो होगा, वह मुझे भुगतना ही होगा। "

जब तक मीनाक्षी दीदी थी ;मैं निश्चिंत थी। दीदी जो कहती थी ;वह काम कर देती थी। दीदी, मुझे धीरे -धीरे घर -गृहस्थी की बातें सीखा रही थी। दीदी के जाते ही मैं थोड़ा चिंतित हो आगयी थी। लेकिन मेरी सारी चिन्ताएं निर्मूल साबित हुई। पापाजी और तपेश दोनों ही अपने सारे काम खुद कर लेते थे। मुझे तो बस रसोई में सब्जी बनानी होती थी और आटा गूँधना होता था। रोटी कभी मैं सकती और कभी पापा जी। पापा जी अपना और तपेश का टिफ़िन भी पैक कर देते थे। मेरे आने के बाद भी पापा जी ने घेरलू सहायिका को नहीं हटाया था। झाड़ू -पोंछा, बर्तन के लिए घेरलू सहायिका आती ही थी। मैं डस्टिंग आदि कर लेती थी। 

ज़िन्दगी मजे से चल रही थी। मुझे अपना सास बिना ससुराल बड़ा रास आ रहा था। एक दिन छुट्टी वाले दिन पापाजी अपने ऑफिस का कुछ हिसाब -किताब लेकर बैठे हुए थे। बहुत देर हो आगयी थी ;लेकिन उनका हिसाब नहीं मिल रहा था। तीन बार उन्होंने अपनी चाय गरम करवा ली थी। मैं और तपेश नाश्ते के लिए उनका इंतज़ार कर रहे थे। 

मैंने पापा जी से कहा कि, "पापा जी, लाओ मैं आपकी कुछ मदद कर दूँ। "

पापा जी ने तुमसे नहीं हो पायेगा ठाकुर, वाले अंदाज़ में मुझे पकड़ा दिया। 10 मिनट में मैंने पापा जी की समस्या सुलझा दी। अब मैं साइंस -मैथ्स की विद्यार्थी रही थी। 

"वाह, स्नेहा बेटा, तुम तो बहुत होशियार हो। फिर पढ़ाई बीच में क्यों छोड़ दी ?",पापा जी ने कहा। 

"वो पापाजी शादी हो गयी। इसीलिए छोड़नी पड़ी। ",मैंने दबी जुबान से कहा। 

"फिर पढ़ना चाहोगी ?",पापा जी ने पूछा। 

मैंने सहमति में अपना सिर हिला दिया था। अगले सत्र में पापाजी ने मेरा एडमिशन कॉलेज में करवा दिया था। उधर तपेश ने भी MBA में प्रवेश ले लिया था। पापाजी और तपेश ने मुझे पूरा सहयोग दिया। अक्सर पापा जी ही मुझे एग्जाम दिलवाने जाते थे। तब अधिकाँश लोग यही कहते थे कि, "आपके पापा आपके साथ आये हैं। "

MBA के आबाद तपेश की नौकरी लगी। लेकिन शर्त थी कि तपेश को साल में 4 महीने दुबई में रहना होगा ;ऑफर बहुत अच्छा था। मैंने तपेश को यह मौका न छोड़ने के लिए मना लिया था। मम्मी की निरीह आँखों ने मुझे पैसे का महत्व भी अच्छे से समझा दिया था। 

पापा जी और तपेश के सहयोग से मेरा स्नातक पूरा हो गया था। इस बीच मैं एक बेटी की माँ भी बन गयी थी। मेरी डिलीवरी ससुराल में ही हुई। पापाजी और मीनाक्षी दीदी ने सब सम्हाल लिया था। मुझे गर्भावस्था के दौरान भी पापाजी ने ज़रा सा कष्ट होने नहीं दिया था। पापाजी और तपेश ने मेरा पूरा ख्याल रखा था। पापाजी ने तो डायटीशियन से डाइट चार्ट तक बनवा लिया था और उसी के अनुसार मुझे खाना -पीना देते थे। 

उधर मेरे भाई का भी स्नातक हो गया था। भाई की क्लर्क की नौकरी भी लग गयी और भाई एवं मम्मी मामाजी का घर छोड़कर भाई की नौकरी वाले शहर रहने आ गए थे। स्थितियाँ सुधरती जा रही थी। 

बेटी होने के बाद मैं B Ed करना चाह रही थी। लेकिन पापा जी ने कहा, "बेटा, तू इतनी होशियार है। तू अधिकारी बन। राज्य सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर। "

"पापाजी, घर और बेटी को कौन देखेगा ?",मैंने कहा। 

"तुझे अपने पापाजी पर भरोसा नहीं है। वैसे भी इस साल रिटायर्ड होने ही वाला हूँ। ",पापा जी ने कहा। 

मैंने पापाजी की बात मान ली और तैयारी शुरू कर दी। राज्य सेवा आयोग की एक वेकेंसी पूरा होने में 2 से 3 साल तक ले लेती है। परीक्षा भी तीन चरणों में होती है ;प्री, मैन्स लिखित और मैन्स इंटरव्यू। 

मेरे हर चरण को पार करने पर पापाजी ख़ुशी से नाचने लगते थे। मैंने उन्हें उतना खुश कभी नहीं देखा था। इसी बीच मैं दूसरी बार गर्भवती हुई। पापा जी ने मुझे परीक्षा की तैयारी में कोई कोताही नहीं बरतने दी। मेरे दोनों बच्चों और घर को अच्छे से सम्हाल लिया। 

आज मेरे साथ मेडिकल के लिए आये हैं। 

"नहीं, ये मेरे ससुर जी हैं। ",मैंने मुस्कुराकर कहा। मैंने अधिकाँश लड़कियों की आँखों में पापाजी के लिए प्रशंसा और मेरे लिए ईर्ष्या देखी। 


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