ये कैसा मोह है ?
ये कैसा मोह है ?
लता जी एक बहुत ही सहनशील महिला थी। उनके पति का कुछ वर्ष पहले देहांत हो गया था। उनके तीन बेटे थे, तीनों की शादी हो चुकी थी और तीनों का बहुत अच्छा काम चल रहा था पैसे की कोई कमी न थी।लता जी की दिल्ली की पॉश कॉलोनी में कोठी थी, जो उनके नाम थी lउन्होने तीनों बेटों को एक -एक मंजिल रहने के लिए दे दी। शुरू -शुरू में तो सबने उनके साथ ठीक व्यवाहार किया पर धीरे धीरे वो सबको बोझ लगने लगी उनके बेटों ने बैठ के ये सोचा तीनों के नाम कि लॉटरी निकालते हैं जिसका नाम आयेगा वो नीचे की मंजिल लेगा और माँ को रखेगा,
छोटे बेटे का नाम आया उसने पूरी मंजिल दुबारा बनवाई माँ का कमरा भी अच्छा बनवाया ताकि कोई मिलने जुलने वाला आये तो उसकी तारीफ करे पर रोज़ में सीढ़ियों के नीचे लता जी के रहने का इंतजाम ये कह कर कर दिया की माँ तीन ही तो कमरे हैं एक हम मिया- बीवी का एक तुम्हारे पोते और एक पोती का उन्होने कहा भी कि वो पोती के साथ रह लेंगी पर बेटे ने कहा बच्चों को अपनी प्राइवसी चाहिए बेटे से इतना मोह था वो कुछ नहीं बोली
धीरे- धीरे बहु ने उनके लिए खाना भी बनाना बन्द कर दिया और कह दिया अपना खाने का समान खुद ला कर खुद अपने लिए खाना बनाओ।
सबने लता जी को समझाया की घर को किराये पर चढ़ा दें और बेटों से कह दे कहीं और जा कर रहे और अपने घर में खुद चैन से रहें पर उन्होने किसी की न सुनी घर में सबने उनसे बात करनी बंद कर दी। वह पार्क में जा कर कॉलोनी की औरतों से बात कर आती थी।
घर वालों के लिए उनका मोह कभी कम न हुआ lएक दिन वह घर के बाहर बैठी- बैठी चल बसी।
उनके बेटे उनका अंतिम संस्कार भी करने के लिए लड़ने लगे। तब आस- पास के लोगों ने पैसा इकठ्ठा कर के दिया क्यूंकी लता जी बहुत भली थी।