वसुधैव कुटुम्बकम
वसुधैव कुटुम्बकम
धरती का कोई एक हिस्सा हमें कोई बता दे कि ये हिन्दू का है,ये मुस्लिम का, ये सिख का है। ऐसा कही धरती पर लिखा है नहीं ना...
लेकिन यही इंसान धरती को हजारों टुकड़े में बाट कर रुपये में बोली लगाते हैं। बस ऐसे ही लोगो की अपने छोटी सोच लेकर दिन रात लड़ते है।
ऐसे ही कानपुर के एक छोटे से गाँव मे दो भाई रहते है, दोनों भाई में 20 साल से एक ज़मीन का झगड़ा है। जो आज तक हल नहीं हो सका।
“आखिर कब तक ऐसे हम लड़ते रहेंगे”? (अर्जुन गुस्से से)
“ देखो, अभी कुछ बोल नहीं सकते है?” ( जोखू अर्जुन से)
“लेकिन ऐसे तो पूरी ज़िंदगी बीत जायेगा तो क्या करंगे”।
अर्जुन अपने पिता से 5 बीघा जमीन के लिए बोल रहा है ,जो उसके चाचा से 20 साल से विवाद का जड़ बना है। एक बार दोनों में बात भी हुई... लेकिन कोई मतलब नहीं निकला, क्योकि किसी को ये मंजूर नहीं था कि रोड के तरफ़ का ज़मीन छोड़ दे।
एक दिन पंचायत में.....
जोखू और मुन्नीलाल का परिवार पंचायत बोला कर समझौता करने के लिए बोल रहे थे।
“प्रधान जी, पहले ये बात इनसे पूछो की जब एक बार पिता जी इस जमीन का बंटवारा कर दिया है तो फिर क्यो बार बार हमारे ज़मीन को कब्जा करने की बात करते है” ( जोखू इशारा करते हुए)।
“ये वही ज़मीन है,जिसको हम धरती माँ कहते है, तो कोई और नामो से मानता है,सब को पता है कि ये कभी हमारा था ही नहीं ... ये तो एक दिन खुद में मिल जाएगा लेकिन लालच और मोह किसी को छोड़ नहीं सकता है।“
“लेकिन.... प्रधान ज, कभी पिता जी ने ऐसा कभी कहाँ ही नहीं है”।
(मुन्नीलाल कहता)...
बहुत देर तक ऐसे ही इनकी बहस होती रही,लेकिन जब हल नहीं निकाला तो प्रधान ने पंचायत रोक दिया और बोला “अब कुछ दिन बाद ही कुछ हो सकता है और दोनों मानने को तैयार ही नहीं है तो क्या किया जाए”।
कुछ दिन बाद...
एक आदमी जो इनके ही परिवार का है, वो जोखू के घर आया तो जोखू उसको देख कर,
“तुम जाओ, मेरे घर से,तुम अपने नहीं हो तूम तो मुन्नीला के घर के हो”।
“ये कैसी बात बोल रहे हो”
“सही बोल रहा हूँ”।
“मेरा अपना तो जो है वो अब नहीं है इस दुनिया मे”।
“किसकी बात कर रहे हो”।
“ज़मीन की बात कर रहा हूँ, आज तक उसका फैसला नहीं हुआ तो कैसे मान लूँ की तुम मेरे हो “
दरअसल ये कोई और नहीं बल्कि दोनों भाई का मामा है जिसने इनको बिना भेदभाव से अपने साथ रहने को दिया था। लेकिन वो बिना किसी लालच के, लेकिन फिर भी इनको इस तरह से.।
मुन्नीलाल के घर पर......
मुन्नीलाल जब अपने मामा को देखा तो ....
“आप यहाँ वो इस समय?”क्या हुआ सब ठीक तो है।
“कुछ ठीक नहीं है”मुझे जब पता चला कि तुम दोनों उस जमीन के लिए लड़ रहे हो जो कभी किसी का होगा ही नहीं ”
“मतलब”।
“ये धरती हमको हर वो कुछ देती है जिसकी हमको हमें शा से जरूरत होती है, वो भी बिना जात पात के,लेकिन दोनों इस लिए लड़ रहे हो कि इधर मेरा है उधर मेरा है”।
फिर कुछ देर बाद मामा जोखू के पास जाता है। पता नहीं क्या बात कर के वो भी आता है। मामा दोनों को शांति से बैठने को बोलता है।
“अच्छा एक बात बोलो दोनों, अगर मैं तुम्हारी माँ यानी मेरी बहन को दो टुकड़े में कर दू तो क्या वो रहेगी या मार जाएँगी”
दोनों एक दूसरे को देखते है और फिर बोलो दोनों साथ मे...
“मार जाएंगी”
“और तुम दोनों मरोगे तो क्या उस टुकड़े को साथ ले जाओगे”।
“नहीं वो तो यह रह जाएगा”।
“तब किस लिए लड़ रहे हो”।
अभी भी वक़्त है, धरती माँ को एक ही रहने दो। और वो किसी को दो चेहरे नहीं करती है। तो एक ही रहने दो उसको ।
दोनों को उसकी बात समझ मे आ गई कि बिना किसी स्वार्थ के हमें सब कुछ देती है ये धरती ।
फिर बाद में 20 साल का झगड़ा ही खत्म हो जाता है।