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Dheerja Sharma

Inspirational

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Dheerja Sharma

Inspirational

वसुधैव कुटुम्बकम

वसुधैव कुटुम्बकम

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अनुष्का को अभी कंपनी की तरफ से मेक्सिको भेज गया है।माँ का रो रो कर बुरा हाल था," ऐसा भी होता है कहीं ! जवान लड़की परदेस में निपट अकेली !

कहाँ रहेगी , कैसे हर चीज़ की व्यवस्था करेगी! शाकाहारी भोजन न मिला तो ?

बीमार पड़ गयी तो? यहाँ तो ज़रा से सिरदर्द में भी सिर बांध कर पड़ जाती है।माँ को रात भर सिरहाने से उठने नहीं देती ।वहां विदेश में राजकुमारी जी का ध्यान कौन रखेगा? "

माँ के सवाल अनगिनत थे।पिछले एक महीने में पिता जी और अनुष्का समझा समझा कर थक गए लेकिन....माँ का मन था, कैसे समझता!

और आखिर जाने का दिन आ ही गया।

माँ के बात बात पर आंसू निकलते। पिता ने लाख समझाया कि बच्चों के भविष्य की राह में भावना के रोड़े नहीं अटकाने चाहिए। एयरपोर्ट पर अनुष्का को छोड़ने के बाद माँ बेहद उदास हो गयी। रात में खाना भी नहीं खाया।पति से बोलीं," आप इसे हर बात में ढील देते हो।नौकरियों की कमी है क्या अपने देश मे ?छोड़ देती ये नौकरी ! अब जब तक इसका पहुंचने का फ़ोन नहीं आएगा, मेरा जी घबराता रहेगा।" पिता माँ की भोली बातों को मज़ाक में उड़ा देते।

मेक्सिको पहुंच कर अनुष्का ने बताया कि सभी टीम के लोग बहुत अच्छे और सहयोग देने वाले हैं। यह सुन माँ की जान में जान आई।

भारत और विदेश के समय में फर्क होने से अनुष्का कई बार फ़ोन करने में देरी कर देती ।

एक दिन बाद माँ ने अनुष्का को खूब डांटा क्यों कि 2-3 दिन से अनुष्का से बात ही नहीं हुई थी।

अनुष्का ने बताया कि किस तरह उसकी तबीयत बिगड़ने पर वहां रहने वाली उसकी मेक्सिकन मकान मालकिन ने उसकी देखभाल की।उसके पाकिस्तानी सहयोगी ने अपनी पत्नी से उसके लिए शाकाहारी भोजन ,खिचड़ी आदि बनवाई।और उसकी जर्मन रूममेट उसे अस्पताल ले जाती रही।

सारी बात सुनकर पिता ने माँ से कहा," देखा शीला,मैं न कहता था।ये जात पात धर्म की दीवारें बेमानी हैं।असली धर्म मानवता है।इंसान का इंसान से रिश्ता महत्वपूर्ण है।"वसुधैव कुटुम्बकम"। सारी धरती एक कुटुम्ब ही तो है।"

और माँ हाँ -हाँ में सिर हिलाती रही।



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