NARINDER SHUKLA

Comedy

5.0  

NARINDER SHUKLA

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वर्षा बुलाने का मूल मंत्र

वर्षा बुलाने का मूल मंत्र

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‘‘इधर उत्तरी क्षेत्र में वर्षा बिल्कुल नहीं हो रही । सूखे की आंशका बनी हुई है ।‘‘ . . . सामने भीड़ - भाड़ वाली सड़क पर देखता हूं कि एक अवारा भैंस , खबर वाले अखबार के पेज़ को जबड़े में दबाये भागी चली जा रही है । शायद , साथी भैंसों को सूचना देने जा रही हो कि बहनों हमें अपने चारे का प्रबंध स्वंय कर लेना चाहिये वरना कल हमें इन्हीं रददी  पर निर्भर रहना पड़ सकता है । चारा खाने वाले नेताओं से तो कोर्ट हमें बचा सकती है पर , सूरज के प्रकोप से हमें कोई नहीं बचा सकता । मौसम विभाग की हर नई भविष्यवाणी देश के नेताओं के चुनावी जुमलों की तरह खोखली साबित हो रही हैं । मौसम विभाग बारंबर अलर्ट जारी करने के संदर्भ में होने वाले खचौं से परेशान है। उन्हें फ्रेश भविष्यवाणी के लिये फंड चाहिये । वह सरकार के माध्सम से मौसम भविष्यवाणी सेवाओं पर ‘जी.एस.टी.‘ लगाने की तैयारी में हैं । सरकार ने सूरज की रौशनी पर भी टैक्स लगाने की कोशिश की थी परंतु , सूरज के ‘तेज़‘ के कारण उसकी एक न चली । अब सरकार बैकफुट पर है । डिफैंसिव खेल रही है । सरकार सूखे से निपटने के लिये पुख़्ता प्रबंध करने में जुटी है । स्ट्रीट लाइटें बंद करवाने के आदेश दिये जा रहे हैं । करखानों को सप्ताह में तीन दिन चलाने की अनुमति दी गई है । लुटेरे व गुंडे खुश हैं । उनके लिये चांदी कूटने का भरपूर अवसर है । सरकार चिल्ला रही है - हमारे पास खाने कमी नहीं है । घबराने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है । हम प्रभावित राज्यों में अन्न की कमी नहीं होने देंगे । किसी को विश्वास नहीं हो रहा । एक कहता है - ‘पिछले साल भी सरकार ने यही कहा था । फलां- फलां राज्य में सौ से उपर लोग मर गये । सरकार ने कुछ नहीं किया । ‘ दूसरा कहता है - ‘सरकार को भाषण की आज़ादी है । वह कुछ भी पब्लिकली कह सकती है । झूठ - सच का फैसला करना  कोर्टों का काम है । हमें इस पचड़े में नहीं फंसना । हमें तो केवल दो जून की रोटी चाहिये ।‘ जमाखोर , मुनाफाखोर खुश है। वे आने वाले दिनों में लक्ष्मी जी के स्वागत के लिये अपने - अपने गोदाम साफ करवाने में जुटे हैं । दो - एक छोटे जमाखोर लक्ष्मी जी की मूर्ति के आगे पूजा का थाल लिये प्रार्थना करने में लगें हैं - ‘हे लक्ष्मी , इस बार हमारे यहां भी दर्शन देना । बहुत दिनों से घास - पत्ती खा रहे हैं । अब आपकी दया से कुछ तर माल खाना चाहते हैं ।‘ आम लोगों की पंडितों पर आस्था बढ़ रही है । चारो ओर वर्षा को बुलाने के लिये हवन हो रहे हैं ।

टनों मिलावटी देसी घी लग रहा है । क्षेत्र के बनिये मन ही मन खुश है - ‘हे भगवान , अगले साल भी अपने इस तुच्छ भक्त का ख्याल रखना ।‘ शहर के गणमान्य सज-धज कर ‘विशेष अतिथि‘ की हैसियत से हवन पर जाने की तैयारी में लगे है। हवन पर आमंत्रित एक अफसर की बीवी अपने पति से कहती है - ‘ए जी , सुनते हो । हवन पर चलने के लिये कौन सी साड़ी पहनूं ?‘ अफसर कहता है - ‘वही पहन लो , जो कल सेठ बनवारी लाल ‘गिफ्ट‘ कर गया था ।‘ बीवी मुस्करा कर कहती है - ‘और , उसके बाद ‘हिमायती लाल एंड संस ‘ के करियाना स्टोर के उदघाटन के लिये कौन सी ड्रेस ले चलूं ?‘ अफसर झुंढला उठता है - ‘कुछ भी पहन लेना । तुम हर ड्रैस में ‘ऐश्वर्या ‘ दिखती हो । अच्छा सुनो , वही पिंक साड़ी पहन लेना जो मै ‘लाल जी ‘ की दुकान से ‘यूं‘ ही उठा लाया था ।‘ बीवी प्रसन्न मुद्रा में मेकअप के लिये चल पड़ती है । अफसर मन ही मन बुदबुदाता है -‘ चूडैल कहीं की । रोज गिफट लाता हूं तब भी पेट नहीं भरता ।‘

मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि लोग वर्षा की पूजा क्यों कर रहे हैं ? जब गंगा, महान तपस्वी भगीरथी के कहने पर धरती पर नहीं उतरी तो हम जैसे तुच्छ मानव के कहने पर वर्षा क्यों आने लगी । मान लो , हमारे आंसुओं से द्रवित होकर वह बरसने का मन बना भी ले तो भी उसे नीचे आने के लिये अपने मालिक इंद्र की परमीशन की आवश्यकता होगी । .. वैसे इ्रद्र का स्वभाव तो हम सब जानते ही हैं । द्वापर युग में इंद्र ने कुपित होकर इतने वेग से वर्षा की थी कि समूचा गोकुल डूबने लगा । वो तो शुक्र हो कन्हैया का जिन्होने गोवर्धन अपनी उंगली पर धारण करके गोकुलवासियों को तबाही से बचा लिया था । लेकिन , अब , जबकि कन्हैया जी भी न मालूम क्यों रूठे हुये हैं और गोर्वधन पर भी अमीरों ने ‘फार्म हाउस‘ बना डाला है। ऐसी स्थिति में उत्तर - पूर्वी क्षेत्रों में तूफान व बाढ़ से आमजन की रक्षा कौन करे । यहां मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इसमें सरकार का तनिक भी दोष नहीं है । हमें मालूम होना चाहिये कि प्रजातंत्र में इलैक्शन ही सब कुछ है और फिल्हाल सरकार इसमें बिजी है । हमें उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहिये ।

मेरा सुझाव है कि यहां , विशेषकर मैदानी इलाकों में , भीषण गर्मी व सूखे से बचाने के लिये हमें इंद्र की ही शरण में चलना चाहिये । हमें उन्हें प्रसन्न करने के लिये ‘महाय़ज्ञ‘ का आयोजन करवाना चाहिये । यज्ञ की विधि कुछ इस प्रकार से हो -

अ. इस महायज्ञ के लिये उस क्षेत्र की जहां सूखे की आशंका हो , कम से कम पांच टॉप मॉडलों को चुना जाये । ‘चीफ पंडिताइन‘ की हैसियत से इन पांचों का नेतत्व देश की सबसे बड़ी मॉडल करे ।

आ. यज्ञ में केवल वही सुंदर कन्याएं व सुंदर कुंवारी औरतें बैठें जो आंखों के रास्ते दिल में उतरने की कला जानती हों । आयोजकों को इस बात का खास तौर से ख्याल रखना चाहिये कि यज्ञ में कोई पुरूष न बैठ जाये । अगर ऐसा हुआ तो यज्ञ का प्रयोजन कभी सफल नहीं होगा ।

इ़ यज्ञ में केवल ताज़े फूलों का प्रयोग हो । ताज़े फूल इंद्र को गहरी नींद से जगाने में मददगार साबित होंगे ।

ई ़ यज्ञ में प्रसाद स्वरूप सोमरस का सेवन लाजि़मी है । अगर ऐसा नहीं हुआ तो इंद्र महाराज आंनद मग्न नहीं हो पायेंगे ।

इ़ इस महायज्ञ के मंत्रों में इंद्र की जय और शत्रुओं की पराजय लक्षित होनी चाहिये । मंत्र कुछ इस प्रकार से हों -

ओम इंद्र उपासना नम:

मौसम विभाग भविष्यवाणी स्वाहा ।

सरकारी दावे स्वाहा ।

मॉडलम प्रसायम आहा

ओम इंद्र पूजम सदा मंगलम ।

सरकार को चाहिये कि प्रभावित क्षेत्र के स्कूलों , घरों , बाग - बगीचों , खेत - खलिहानों, सार्वजनिक स्थलों ,सरकारी व गैर सरकारी प्रतिस्ठानों में इंद्र महाराज की तस्वीरें टंगवाने का प्रबंध करवाये । क्षेत्र की सभी सुंदर बालायें प्रतिदिन दो बार , बिना नागा इन तस्वीरों कह विधिवत पूजा करें ।

यहां यह सलाह दी जाती है कि यदि दस दिनों के भीतर उक्त विधि से इंद्र जी को प्रसन्न नहीं किया गया तो वे रूद्र रूप धारण कर लेंगे और फिर आगे परिणाम आप जानते ही हैं ।





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