वक़्त

वक़्त

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मैं बच्चों का डॉक्टर हूँ और एक सरकारी अस्पताल मैं काम करता हूँ, मेरे पड़ोस में एक मिश्रा जी रहते हैं। खाने पीने का बहुत शौक है और वजन भी काफी ज्यादा है। मैं उन्हें अक्सर समझाता रहता हूँ कि खाने पीने में थोड़ा परहेज किया करें और थोड़ा सैर या व्यायाम भी किया करें ताकि सेहत ठीक रहे पर हर बार वो हँसी में टाल देते हैं। पिछले कुछ २-३ साल से उन्हें बी पी और शुगर की शिकायत भी हो गयी है। मैंने कई बार उनसे स्पेशलिस्ट से मिल कर दवाई लेने के लिए कहा पर वो घरेलु नुस्खों से की काम चलाते रहे।

एक दिन रात को उनकी पत्नी भागी भागी आयीं और कहने लगी कि मिश्रा जी को छाती में दर्द हो रहा है और सांस भी फूल रही है। जब मैं मिश्रा जी के घर पहुंचा तो मुझे ये अंदाजा हो गया कि उनको दिल का दौरा पड़ा है। मैं जल्दी से उनको अस्पताल ले गया और भर्ती करवा दिया। मिश्रा जी बच तो गए पर अगली सारी जिंदगी के लिए बहुत सारे परहेज और दोबारा दिल का दौरा पड़ने का डर ये उनके साथ अब जुड़ गया। वक़्त रहते उन्होंने अगर मेरी सलाह मान ली होती तो शायद वो इस सब से बच सकते थे।

गुप्ता जी हमारे पड़ोस में नए नए आये हैं, उनका एक पांच साल का बेटा है बहुत ही प्यारा। अक्सर जब मैं हॉस्पिटल जा रहा होता हूँ तभी वो भी स्कूल के लिए निकल रहा होता है।

एक दिन गुप्ता जी शाम को मेरे पास अपने बेटे को दिखाने के लिए आये। बच्चे का सांस थोड़ा फूल रहा था और वो खांसी भी कर रहा था। चेकअप करने के बाद पता चला कि ये दमे का अटैक है, मैंने कुछ दवाई और एक टीका दिया। कुछ समय बाद जब सांस में कुछ सुधर आया तो मैंने आगे के लिए दवाई लिख दी। गुप्ता जी ने बताया की ये बीमीरी उसे करीब चार साल से है। मैंने गुप्ता जी को बताया के आज कल पॉल्यूशन की वजह से और धान और गेहूं की कटाई के वकत दमे के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है और आज कल तो बीस प्रतिशत के करीब बच्चे दमे की बीमारी के शिकार हैं।

 कभी कभी मैं ये सोचने लगता हूँ के जैसे हम इस दुनिया में जी रहे हैं, जितना प्रदूषण हम कर रहे हैं, जैसे जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है अगर वक्त रहते हमने कुछ कदम न उठाये कहीं वक़्त हमारे हाथ से फिसल न जाये।

कहीं सिर्फ सोचते सोचते ही वक़्त न निकल जाये और हम बाद में हाथ मलते न रह जाएँ।


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