वो फौजी (कारगिल दिवस पर)
वो फौजी (कारगिल दिवस पर)
"ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी,जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी!"ये गाना अंतरा को बचपन से पसंद था।और उसका पालन पोषण भी देशभक्ति के माहौल में हुआ था। अंतरा के पिता को उसने आठ वर्ष की आयु के बाद नहीं देखा था लेफ्टिनेंट अजय ठाकुर देश की रक्षा करते हुए ज़ब शहीद हो गए तबसे अंतरा ने अपनी माँ समिधा को भी यज्ञ की लकड़ी की तरह स्वयं पति की मृत्यु के असाध दुख से सुलगते हुए भी घर बाहर की ज़िम्मेदारी निभाते हुए देखा था।अंतरा की माँ सुमिधा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि अंतरा का विवाह किसी फौजी से हो। इसलिए पढ़ाई पूरी करके अंतरा ने अपनी रूचि से साइकोलॉजिस्ट का कैरियर चुना तो घर की लाडली बेटी दादा दादी की आँखों का तारा अंतु की इच्छा के आगे सबने अपनी सहमति जता दी। सिर्फ अंतरा की बुआ ने थोड़ा मुँह बिचकाते हुए कहा था,
"ये भी कोई जॉब है भला? फूल सी कोमल दूध सी धूली सौंदर्य की प्रतिमूर्ति अंतरा को कोई फैशन से संबंधित करियर चुनना था!"उनकी बात का विरोध किया था दादाजी ने,"तुमको यह करियर पसंद था पर हमारी अंतु ने भी अपनी पसंद का करियर चुना है। तुमने अपनी स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाया और एक ऐसे मॉडल लड़के से शादी कर ली जिसका कोई भविष्य नहीं था। अभी भी रोहन अपने करियर को सेटल नहीं कर पाया और आजतक तुम्हें अपने खर्चे खुद उठाने पड़ रहे हैं या मायके की सहायता लेनी पड़ रही है। इसलिए अपना करियर और जीवनसाथी सिर्फ बाहरी रूप और चमक देखकर नहीं बल्कि सोच समझकर चुनना चाहिए!"अम्मा भी अपनी पोती के पक्ष में ही बोल रहीं थीं। साथ ही अब तक अपनी पुत्री पर जो आक्रोश था वह भी उनके मुँह से निकल ही गया।"ठीक है, वो नाकामयाब मॉडल ही सही पर आज मेरा सुहाग ज़िन्दा तो है। भाभी को देखो, इनके माता पिता ने तो अपने दामाद बहुत अच्छा करियर देखकर ही तो शादी किया था... पर भाभी को विधवा का जीवन जीना पड़ रहा है। भैया के असमय जाने का दुख मुझे भी बराबर है, पर अभी इसे सिर्फ एक उदाहरण बता रही हूँ!"कुंतल बुआ ने अपनी बात स्पष्ट की ही थी कि अंतरा बोल उठी,"बुआ! आप को अपनी बात सही ठहराने के लिए दादाजी या किसी और को गलत साबित करना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है। माँ भले पापा के बगैर रही हों पर पापा की यादों से दूर नहीं!"
बोलते बोलते अंतरा को पापा की याद आ गई और उसे रोना आ गया। उसकी माँ, दादा दादी से उसका रोना नहीं देखा जा रहा था। सबकी सहानुभूति पाकर अंतरा थोड़ी संयत हुई और सधे हुई शब्दों में कहा, "जो देश भक्त सिपाही कारगिल युद्ध में या देश की रक्षा करते हुए किसी भी युद्ध में शहीद हुए हैँ... वो लौटकर घर तो नहीं आ पाए पर हमेशा लोगों के दिलों में बसते हैं। मेरे पापा भी सिर्फ माँ ; के दिल में ही नहीं बल्कि हम सबके दिलों में जीवित हैँ और हमेशा रहेंगे!" अंतरा की बुआ संग आज घर में सब उसकी बात की दृढ़ता से प्रभावित हुए बिना ना रह सके।अपनी बेटी के दिल में अपने पिता के लिए इतना प्रेम और सम्मान देखकर अंतरा की माँ समिधा ने उसे आगे बढ़कर गले लगा लिया और अश्रुपूरित नेत्रों से उसे देखते हुए सोचने लगी.....एकदम आरव जैसी दृढ़ता और उसीके जैसा अदम्य साहस है उनकी बिटिया में। लगा आरव उसके साथ खड़े हैँ.... बिल्कुल पास।