Neeraj Agarwal

Action Fantasy Inspirational

4  

Neeraj Agarwal

Action Fantasy Inspirational

वो‌ बदल गया

वो‌ बदल गया

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आज हम कहानी वो बदल गया एक ऐसी कहानी की जो हम सभी के जीवन को छूती हुई एक सच के साथ हम सभी अपने जीवन में स्वार्थ और फरेब हम जैसे शब्दों को हम सभी जानते हैं और वो बदल गया हम सभी जीवन में कभी न कभी बदलाव को समझते हैं। 

सुनीता और दीपक यह कहानी उनके कॉलेज की समय से शुरू होती है। सुनीता बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा था। और वहीं दीपक इंटर पास करके उसी के कॉलेज में बीए फर्स्ट ईयर ज्योग्राफी में और एडमिशन लेता है। दोनों की मुलाकात कॉलेज की एक लाइब्रेरी में होती है और वहीं से दोनों की पहचान होती है सुनीता आप कहां रहते हो दीपक मैं एक हॉस्टल में रहता हूं मैं गांव रामगढ़ का रहने वाला हूं। और आप दीपक पूछता है सुनीता से मैं मैं तो यही शहर रायबरेली की रहने वाली हूं अच्छा तब तुम तो यहां किराए पर रहते होगे दीपक से पूछती हैं सुनीता दीपक अनसुना सा जवाब देकर हां मैं सिर हिला कर चुप हो जाता है। कॉलेज की बेल घंटी बजती है और दोनों अपने-अपने घर की ओर चल पड़ते हैं सुनीता अपनी स्कूटी स्टार्ट करके चलने लगती है तब वह देखती है कि दीपक पैदल-पैदल नीचे मुंह करके अपने कॉलेज के गेट की ओर जा रहा है सुनीता पीछे से स्कूटी लेकर आती है और दीपक से कहती है आओ मैं आपको लिफ्ट दे दूंगी कहां जाएंगे आप दीपक कहता है नहीं नहीं कोई बात नहीं मैं चला जाऊंगा सुनकर रहती है जब हम एक कॉलेज में दोस्त बन गए हैं तब फिर एक दूसरे से सहयोग ले सकते हैं। दीपक सुनीता की स्कूटी पर बैठ जाता है और जब सुनीता रायबरेली की अनाथालय के सामने से गुजरती है तब है सुनीता को रोकने का इशारा करता है यह तो अनाथालय है तुम यहां रहते हो दीपक बुझी हुई आंखों से मुस्कुरा कर हां कहता है तब तुम अनाथ हो हां आज तो अनाथ आज तक अनाथ था परंतु आज एक दोस्त बन गया है अब मैं अनाथ हूं सुनीता मुस्करा देती है। तब सुनीता पूछती है। बस जब से होश संभाला है मैं अनाथालय में हूं मैं अपने बारे में बस इतना जानता हूं। कि कोई मुझे रात के अंधेरे में इस अनाथालय की चौखट पर छोड़ गया और इसके अलावा मैं कुछ नहीं जानता हूं। और इस देश के धनवान व्यक्तियों की धन की दान से हमारी पढ़ाई और जिम्मेदारी पूरी होती है अब मैं पढ़कर नहीं चाहता हूं देश में मेरी ऐसे अनाथ बच्चों के लिए अपना एक कॉलेज और वह सीधे पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े होकर अपना मुकाम खुद बना सके और कॉलेज में कोई उनका पता पूछिए तो वह अनाथालय न बता कर अपना घर बताएं। सुनीता उसकी सच्चाई से बहुत प्रभावित होती हैं। और कल काँलेज संग चलने का वादा करके मुस्करा कर चल देती हैं। 

अगली सुबह सुनीता काँलेज के लिए निकलकर जब दीपक को लेने अनाथालय पहुंचती हैं तब दीपक पहले से ही अनाथालय के गेट पर इंतज़ार कर रहा था। और उसके हाथ पीछे थे जब सुनीता पास आती हैं तब दीपक एक खुबसूरत गुलाब का फूल सुनीता को देता है और कहता सुबह की नमस्ते और यह गुलाब आपके लिए यह सुनकर और गुलाब लेकर बहुत खुश हो जाती हैं और वह पूछती हैं एक लड़की को गुलाब देने का मतलब समझते हो। तब दीपक कहता हैं कि बस ऐसे ही बगीचे में लगा था आपको दे दूं और कोई मतलब नहीं है सुनीता जोर से हंसकर दोनों कालेज की ओर चल देते हैं। और समय बीतता है बीए की परीक्षा होने के बाद अब सुनीता के माता पिता की अचानक एक कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाती हैं। और सुनीता भी टूट जाती हैं और वह अपने घर को बेच कर अपने ताई के यहां लखनऊ चली जाती हैं।

उधर दीपक इंतज़ार करते करते मन में वेवफाई का नाम समझकर अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाता हैं और मन में में सोचता है कि वो बदल गया तो सुना था परन्तु वो बदल गई हैं ऐसा वेवफाई का नाम शायद सुना नहीं। और दीपक ने बीए पास करने के बाद एक चाय की दुकान खोल अपना जीवन यापन करने लगा था। शायद वो बदल गया था। और अपने अनाथालय के साथ ही रह गया था। सच तो यही है समय और वो बदल गया था।


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