sonu garg

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वो बचपन वाली हंसी

वो बचपन वाली हंसी

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बात उन दिनों की है जब बचपन युवा अवस्था में प्रवेश कर रही थी किन्तु बचपन ज्यादा ही था कुछ। हर समय हर्षोउल्लास की सी स्तिथि लगती थी, मैं पढ़ने लिखने में सबसे कमज़ोर थी फिर भी शाही ठाट थे। मैंने घर और स्कूल दोनों में धाक जमा रखी थी। मैं दोस्तों के साथ नेतृतव में सबसे आगे रहती थी। दोस्तों के लिए मर मिटने के एहसास। बस यूं ही समय कट रहा था।

हसने खेलने के अतिरिक्त कहीं मानो मन ही नहीं लगता था। एक बार कोई हास्यपद स्तिथि यदि आ गयी तो यूँ समझ लीजिये वह दिन तो तक़रीबन इसी में जायेगा। एक बार हंसी आ गयी तो कोई रोक नहीं पायेगा पर माँ की वो डांट की आवाज़ आते ही, सन्नाटा!!! चुप्पी!! मानो, कुछ हुआ ही ना हो। और माँ के जाते ही वही खिल खिल करती मैं और मेरी हंसी !!

शायद किसी की नज़र लग गयी अब नहीं आती वो बचपन वाली हंसी , मानो कहीं गुम सी हो गयी है। आज भी जब वो दिन याद आते हैं, मानो भीतर कुछ कचोट जाता है, एक सिहरन सी पैदा हो जाती है। हम जैसा सोचते है, वैसा होता नहीं है। पर मैं पूछती हूं, क्यूँ नहीं होती हमारी इच्छा की पूर्ति ? केवल यही तो चाहा जीवन में से हंसी ना जाये कहीं। परन्तु ऐसा लगता है किसी दूर देश की स्वामिनी बन कर बैठ गयी है मेरी हंसी जो आना ही नहीं चाहती।

अंततः मेरा बचपन अलविदा कह गया ,साथ ही मेरी हंसी भी मानो कह रही थी फिर मिलेंगे। फिर जैसे जैसे उम्र के पड़ाव पड़ते गए ये और भी दूर होती गयी। एक समय ऐसे लगा जैसे अब नहीं आएगी वो कभी। जीवन में उतार चढ़ाव सभी के आते है किन्तु मेरे जीवन में तो उथल पुथल मच गयी, सहसा सब ख़तम हो गया। स्तब्ध सी स्तिथि चारों तरफ।

जीवन नीरस हो गया, मैंने भगवान से मृत्यु मांग ली परन्तु ये कौन सा इतनी आसानी से मिलती है? वैसे भी जो चाहो वो मिलता ही कहाँ है ? हम जिन्हे सीधा सरल समझ लेते है वही लोग आप पर वार कर देते है। अब ये आप पर है आप सहज उस स्तिथि में अपनी समाप्ति कर लेंगे या फिर अपनी सारी शक्ति, पुरज़ोर कोशिश लगा देंगे उस स्तिथि से निकलने में। हमे भी किसी को दिखाना था की मैं किसी से कम नही, कायर नहीं जो किसी की वजह से यु ही मृत्यु की शैय्या पर चले जाये। भले मानस भी है इस संसार में जिन्हे मित्र की उपाधि दी जाती है। यदि ये ना हो तो शायद विकारों से निकलना सार्थक ना हो पाता।

बेवजह किसी को अपना समझना पागलपन ही कहलाता है। आज के इस दौर में अभी भी हम पिछड़े हुए लगते है। ये बात भी हमे ये बेवजह लोग एहसास करा गये। जब इन्हे आपकी जरुरत होगी आपकी सलाह मशवरा चाहिए होगा तो आपसे अधिक समझदार समझ लीजिये कोई नहीं होगा। किन्तु सब यथार्थ पूर्ण होते ही आपको ये स्मरण करवाया जाता है की हम तो आपके जीवन में बेवजह है अवगत हो जाईये सत्य से।  

सत्य हमेशा नीम चढ़ा ही मिलेगा। फिर वह चाहे जीवन से जुड़ा हो या किसी रहस्य से। मेरी हंसी कहीं गुम सी हो गयी थी, मानो ये भी एक रहस्य हो , जाने अनजाने में कभी कभी आती थी। परन्तु अब वो बचपन वाली बात इसमें नहीं थी।


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