सिया का आत्मसम्मान

सिया का आत्मसम्मान

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आत्मसम्मान जब रिश्तों के बीच आने लगे, तो समझ लीजिये आप उस रिश्ते के अब कुछ दिन के मेहमान रह गए हो। कुछ ऐसा ही रिश्ता था सिया और गौरव का !! सिया जहाँ गौरव के साथ अपने जीवन के सफर को ताउम्र बिताना चाहती थी, वहीं उसके विपरीत गौरव उसे बस अपनी बहुत करीबी, बहुत अच्छी दोस्त समझता था, फिर भी उसने बहुत कुछ ऐसा सिया के साथ किया था की गौरव का वो प्यार से उसे बुलाना, उसके रूठने पर मनाना और उसे एहसास दिलाना की गौरव की ज़िन्दगी में सिर्फ ''वही " अहम है !!!

गौरव ने चाहते हुए भी सिया को सच्चाई का आईना नहीं दिखाया था कभी- भी। और जैसा की हर रिश्ते में होना स्वाभाविक होता है वही हुआ असमंजस की स्तिथि पैदा होने लगी। सिया के बारे में कहे तो हाँ मन ही मन चाहती थी, वो दोनो सदैव साथ ही रहे, परन्तु दूसरी ओर गौरव भी ऐसा ही सोचता था की दोनो साथ रहे पर जीवन भर सिर्फ अच्छे दोस्त बन कर।

दोनो ही एकदूजे के प्रेम में पागल, परन्तु एक ने इसे दोस्ती का नाम दे दिया और दूसरे ने प्रेम। और जाने क्या वो वज़ह थी, की इतना करीब होते हुए भी दोनों ने इस सच्चाई को एक दूसरे के समक्ष कभी रखा ही नहीं था। इतने सालों से एक साथ होने के बावज़ूद ,गहरा संबध होने पर भी आखिर क्यों दोनों मौन थे ?

परन्तु समय सदैव एक-सा नहीं रहने वाला था, इस रिश्ते को भी किसी की नज़र लगनी थी, और एक दिन ऐसा आया सब तरफ़ उथल पुथल मच गया , ये वही दिन था जिसका सामना सिया नहीं करना चाहती थी।

गौरव ने सिया को उस दिन रोज़ की तरह सुबह -सुबह फ़ोन कॉल किया सिया ने भी चहकते हुए जैसे ही कॉल रिसीव की, सिया ने बोला- अरे!!! मेरे हीरो , कहाँ थे ? पता है कब - से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी, भूख लग रही थी इतनी ज़ोरो की और ये साहब जी लापता है!! (सिया अक्सर गौरव के ऑफिस पहुँचने पर ही चाय नाश्ता किया करती थी, गौरव भी इस बात का पूरा ध्यान रखता, कभी आने में देरी हो जाये सिया को कॉल कर देता था "नाश्ता करना तुम समय से, मैं बस आ जाऊंगा"!!)

उधर गौरव मानो चुपचाप बस सिया की उन बातों को सुन रहा था, जैसे किसी ने उसके अंदर के एहसास को तोड़ कर बस एक सज्जन पुरुष का निर्माण कर दिया हो। पर सिया तो रोज़ की तरह ही समझ रही थी उसी ने गौरव की चुप्पी को तोडा और पूछा- सुनो बहुत व्यस्त हो? तो हम बाद में बात कर लेंगे, इस बार सिया के स्वर भी बदल से गए !! गौरव तो शांत ही था बिना उसकी बातों के जवाब दिए कहा -सिया!! मुझे लगता है , तुम्हे एक लाइफ पार्टनर की जरूरत है, जिसे तुम सब बता सको और हाँ नाराज़ मत होना !!! ये तो पागल अच्छी बात है , तुम्हारी भी अपनी ज़िन्दगी है ।

सिया, मूक -बधिरों की भांति चुपचाप सुनती रही ऐसा लगा मानो, कोई मीनार ध्वस्त हो रही थी , धीरे धीरे इमारते गिरे जा रही हैं , उसी तरह सिया की आँखों से आंसू गिरने लगे, आँखे लाल सुर्ख , गालों पर आंसुओं की बहती धारा। परन्तु सिया बहुत हिम्मत वाली लड़की थी, किसी के सामने नहीं दिखाएगी की वो कमज़ोर है, उसे भी दुःख होता है। जब सिया ने कोई जवाब नहीं दिया गौरव समझ गया की सिया की आँखों में आंसू होंगे तभी गौरव ने पूछा- ऐ सिया रो रही हो? सिया फिर भी चुप थी, आज वो कुछ नहीं बोली।

सिया बस गौरव के सामने कमज़ोर पड़ जाती थी, तभी गौरव जानता था सिया चुप नहीं है, सिया रो रही है !!! पर उसने सिया के भीतर चल रहे द्वन्द को समझना ही नहीं चाहा, बस बोलता रहा -मैं ये सब तुम्हारे लिए ही कर रहा हूँ , तुम्हारा अच्छा ही चाहता हूँ। उधर सिया ने मन ही मन उत्तर दिया -तुम्हारे साथ क्यों नहीं रह सकती मैं? जाने क्या वो वज़ह थी की सिया ये शब्द व्यक्त नहीं कर पायी भीतर ही अपने दर्द , भावनाओं को समेट लिया।

गौरव ऑफिस पहुँच चुका था !! और सिया का रो-रो कर बुरा हाल था, जैसे कोई नवजात शिशु केवल अपनी माँ के लिए रोता है ठीक वैसा ही रुदन आज सिया के भीतर था !!! गौरव ने बात काटते हुए बोला, अच्छा सुनो, सिया!! मैं ऑफिस पहुँच गया हूँ, तुम्हे भूख लगी थी ना, जाओ कुछ खा लो पहले, बाद में बात करेंगे!! सिया ने रुंधे गले से बस “हाँ” कह दिया और कॉल ख़त्म हो गयी थी!!! किन्तु सिया को रोना नहीं!!!

सिया आज दिन भर रोती रही कुछ नहीं किया उसने आज ऑफिस में, बस मन ही मन एक ही सवाल आखिर क्यूँ?? क्यूँ किया उसने ऐसा ? क्या वो नहीं जानता, मैं उसके बिना नहीं रह सकती! मुझे यूँ रोता छोड़कर चला क्यों गया!! आज पहली बार उसने मेरी मर्ज़ी जानने की ज़रूरत नहीं समझी, क्या इस रिश्ते में मेरी कोई अहमियत नहीं थी, जब चाहा साथ रख लिया और आज यूँ सब ख़त्म कर दिया!!

पर गौरव ने शायद मन बना लिया था, की अब वो सिया के साथ नहीं रहेगा। हाँ अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं, इससे तो यही प्रतीत होता है , कहीं ना कहीं गौरव भी शायद कुछ सोच रहा था, परन्तु सिया को ये कभी नहीं पता चल पाया की "वो " चाहता क्या था !!

बस कुछ दिन यूँ ही बीते और फिर दोनों ने बातचीत बंद कर दी, दिन बीते, हफ्ते बीते फिर महीने, २ महीने हो गए थे, दोनों को बात बंद किये, अब सब खत्म हो गया था। वो प्यार, वो अठकलें, वो लड़ना -झगड़ना , हँसना-बोलना सब खत्म था।

अचानक एक दिन गौरव सिया से मिलने उसके ऑफिस आ गया !! बस सिया का गुस्सा फूट पड़ा, बहुत कुछ बोल गयी थी आज, ना चाहते हुए भी और हार के पूछ ही बैठी आखिर क्यों? हम साथ नहीं रह सकते थे ? क्यों तुमने मुझसे मेरी इच्छा जानना ज़रूरी नहीं समझा!! आज सिया बोल रही थी गौरव सब चुपचाप सुन रहा था, उसके पास सिया के किसी भी प्रश्न का उत्तहाँ !!! अब गौरव चाहता था, क्यों इस तरह सब खत्म करना , हम बात तो कर ही सकते हैं !!! चाहती तो सिया भी यही थी परन्तु आज उसका आत्म-सम्मान सामने आ गया!! क्यों वो किसी के कहने भर पर रिश्ता निभाती रहेगी? उसका मन करा सब छोड़ कर चला गया मन करा फिर से एक हो जाओ !!! अब नहीं होगा सिया के भीतर से आवाज़ आयी और बस, न चाहते हुए भी सिया ने साफ़ साफ़ शब्दों में इंकार कर दिया!! क्यूंकि गौरव आज भी बस यही चाहता था सिया उसकी अच्छी दोस्त बन कर रहे, जो की अब सिया को मंज़ूर नहीं था !!! गौरव शायद सिया के भीतर की उथल -पुथल उसका दर्द , उसके आंसू को समझ ही सिया को लगता था "वो " उसे समझेगा पर वो ये नहीं जानती थी की गौरव अब पहले -सा नहीं रहा बहुत कुछ बदल गया था इन २ महीनों में !!! जहाँ सिया ने ये समय गिन-गिन कर बिताया था उसके विपरीत गौरव के लिए “बस थोड़े दिन ही तो बात नहीं की थी” ! आज सिया ने सब खत्म कर दिया, ना चाहते हुए भी गौरव को "ना" कह दिया!! सिया अब गौरव के साथ फिर से कुछ दिन की मेहमान बन कर नहीं रहना चाहती थी। सिया के आत्म-सम्मान ने उसे आज रोक लिया था। और गौरव बार बार यही कह रहा था- रुक जाओ सिया, मत जाओ यूँ परन्तु सिया ने साफ़ शब्दों में कह दिया -सदैव के लिए साथ रख पाओ ,बस तभी हाँ कहूँगी!! और गौरव की चुप्पी ने सच्चाई को एक बार फिर सिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया था, सिया के टूटे हृदय के टुकड़ो से शायद यही आवाज़ आ रही थी “बचपन की ख़ाहिशें आज भी ख़त लिखती हैं मुझे, शायद बेख़बर इस बात से हैं ....."वो" शायद अब इस पते पर नहीं रहतीं”!!!


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