वन भोजन
वन भोजन
कार्तीक मास का दिन था। गुरू परमानंद अपने शिष्यों से वन भोजन जाने की तयारी की और शिष्यों मे जो बड़े है वो सारे शिष्यों को भोजन तैयारी करने का काम एक एक व्यक्ति को बाँटा दिया। सारे शिष्यों ने अपने अपने काम करते थे।
शिष्यों एक गाना गाकर काम करते थे ताल लय से गाते समय सामने वाले चावल का घटा से पानी और चावल कुछ शब्द करते हैं। शिष्य तो अपने गाना को ये घटा ताल देती है समझकर अपने न गाना को सही से ताल डालो कहा। बाद भी वैसे ही शब्द निकला और शिष्य गुस्सा होकर एक लाटी लेकर उस घटा को मारा पूरी चावल बर्बाद हो गया।
जगत में परमानंद शिष्यों जैसे मूर्ख शिष्य कोई भी नहीं है।
