बच्चों का मन
बच्चों का मन
ये 2020के बाद की बात है. बच्चों का स्कूल, पार्क, बीच पड़ोसियों से खेलना सभी बंद था . कोराना के कारण बच्चे अपने दोस्त, रिश्तेदारों से भी नहीं मिलते. चार दीवारों के बीच ही जिंदगी. सोचेंने का भी धैर्य नहीं है। ऐसी स्थिति का कहानी ही हमारा रोहित का. बच्चे का उम्र तीन साल पूरी हो गई. माँ तो हर रोज बच्चे से कहती है की कल तूम स्कूल जा सकते हो. लेकिन दो वर्ष बीत गए लेकिन रोहित स्कूल नहीं गया.
रोहित की सारी कक्षाएं ऑनलाइन मे लैपटॉप देखना और पढ़ना ही हुआ. लेकिन उसका टीचर ने पांच घंटे क्लास मे सिर्फ एक घंटा ही क्लास लेकर बाकि समय बच्चों से बात क़रके कुछ तो कुछ खेल खेलकर बच्चों का मन आकर्षित करते हैं .
रोहित ऐसा ही यू केजी आया. रोहित का दोस्तों ज्यादा है. सलीम, रोजा कवीन, संयुता, राकेश, नाम ही मालूम था लेकिन किसी का मुँह नहीं देखा
इसलिए एक दिन अपने टीचर तो बच्चों के माँ से गूगलमीट मे कहा कि " हफ्ते मे एक दिन आप सभी बच्चों को लेकर मेरा घर आईये. मास्क ओर सेनिटिजेर अपने सात लेकर आइये ".
एक रविवार बच्चे अपने अपने माँ के सात अपने टीचर का घर आया और सारे बच्चों का मुलाक़ात हुआ और खेलकर बहुत खुश रहा.ऐसा ही हर हफ्ते बच्चे एक एक घर गया ओर खेलकर वापस गए. हर माँ सोचा की हमारे बच्चों बाहर जाकर खेलते हैं और अच्छी तरह से पढ़ते भी है. ये सिर्फ टीचर सुजिता से ही हुआ है हम सारे लोग उसका धन्यवाद बोलना है कहकर एक दिन उसका तोफा लेकर मिला है.
टीचर ने इनकार किया ओर कहाकी मै सिर्फ मेरा कर्तव्य ही किया इसमें क्या है. बच्चे तो खुश है ना ओ ही मेरा तोबच्चों फा है भगवान से प्रार्थना कीजिये ये कोराना जल्दी से जल्दी गायब होना है. तब भी हमारा बच्चे स्कूल जाकर खुश रहेंगे.. सारी माँ हाँ कहा और प्रार्थना की ऐसा ही स्कूल खुला बच्चों खुश रहा