जीवन एक चलने वाले गाड़ी
जीवन एक चलने वाले गाड़ी
एक कायकस्ट करने वाली औरत। उसकी नाम सरिता है। सुबह चार बजे उठकर घर की काम पूरा करके बाहर जाती थी। मकान बनाने वाले कामकाज मे ओ अपनी पसीने पीस क़रके काम करती थी।
सुबह आठ बजे काम पर चले हैं तो दोपर खाने के बाद भी कुछ तो कुछ काम क़रके शाम छ बजे तक वहाँ ही रहती थी। घर मे दो बच्चे और सास ससुर थी। पति भी उसके साथ काम क़रके घर वापस नहीं आया। सीधे शराब पीने केलिए चले जाता था।
ऐसी वैसे समय बीत गई। बच्चे बड़े होगया। हर रोज बच्चे मा से पूछते थे कि पापा क्यों ऐसा करते थे। सरिता रोकर कुछ भी नही कहा। बेटा शरत अपने डिग्री पूरा करके काम पर जाने समय माँ और दादा दादी से आशीर्वाद लेकर गए।
सरिता को काम पर जाने को रोका घरवाले लेकिन वो सुनने वाली नहीं थी। बेटी की पढ़ाई पूरे होने तक मै काम पर जाऊँगी कहकर अपने काम पर गयी। बेटी अपनी पढ़ाई मे बहुत तेज थी भाई इंजनीयर है तो ओ डॉक्टर बनी।
पापा भी शराब पीना रुखकर घर पर आराम क़रके समय बीता था। लेकिन सरिता अपने काम नहीं रुका। अपने बच्चों से कहाँ की जीवन एक चलने वाली घाड़ी है ओ चलना ही रहना है। पैसे हम खा कर ख़तम कर सकते है। लेकिन हमारा काम हम ही ख़ुद करना है।वो जब तक जिन्दा
है तब तक काम करना ही है ओ ही हर एक व्याक्ति का कर्म है।