नदी के किनारे
नदी के किनारे
नागवाली नदी के किनारे एक गाँव थे। इस गाँव में एक परिवार था। इसमें चार लड़कियां तीन लड़के थे। बहुत प्यार से ये चार लड़कियाँ जीती थी। पापा और बड़े पापा बिज़नेस करते थे, माँ और बड़ी माँ मदद करते थे। बड़ी बहन कालेज में प्रथम श्रेणी में पास होकर एल। आई। सी में काम करती थी, और घर पर ट्यूशन भी लेती थी। छोटी बहन उसको मैडम कहती थी, पापा जब बाहर किसी शहर गए तो छोटी बच्ची के लिए नई कपड़ा लेकर आते थे। वो बहुत खुश होकर अपने दोस्तों से कहती थी की मेरे पापा सिर्फ मेरे लिए ही कपड़ा लाए। वैसे ही समय गुजर रहा था। दीपावली आई थी। तब पापा सारे पटाखे लाये थे। बड़े पापा तो घर पर ही कुछ माताबे बनाकर देते थे। सारे पटाखे सात बच्चों में विभाजित करते थे। सारे बच्ची पटाखे जलाते थे लेकिन छोटी बेटी अपने डिब्बे पर रख कर सारी बहनों के पटाखे जलाती थी। दीपावली के बाद कार्तिक माह में पिकनिक के समय छोटी बच्ची अपने साथ पटाखे जलाकर खुशी से मनाती थी, सारी बहनों के पटाखे जलाकर, नगवाली में नहाकर वहाँ ही रसोई बनाकर खाते थे। अंत में सारे बच्चों की शादी हो गई, सब अपने अपने परिवार में मस्त रहने लगे , एक दिन छोटी बहन अपने दीदी के साथ फ़ोन कर कहती है की मेरी एक ही आशा है हम चार बहने फिर एक बार हमारे गाँव जाकर हमारे घर में बचपन की तरह दस दिन रहना है वो ही मेरे आशा है। उस समय दीदी भी रोती थी। एक दिन वो समय आएगा हम चलेंगे। घर में पहले लड़कियों की शादी हुई। बड़े पापा का लड़का माता पिता गुजरने की बाद अपने मामा के घर पर ही रहकर पढ़ते हैं। उसका नाम हैं अविनाश। दूसरे बड़े पापा का लड़का का नाम है सुदीप वो बचपन से ही होईल का कैश काउंटर पर बैठ कर दसवीं कक्षा में विफल हुआ और होटल ही देखता हैं। अंतिम भाई का लड़का रोशन बी। कॉम पास होने की बाद बड़े पापा को मदद करके होटल में ही रहा। उसकी दो बहने सुमा और सुशी ने कहा था की "तू कोई काम ढूंढ लो लेकिन उसका हमारे बिज़नेस देखने में ही मन लगा। कुछ दिनों के बड़ अविनाश गाँव आकर कुछ बात किया और छोटे को कहा की आप तो कुछ भी खर्च नहीं किया ये परिवार के लिए सिर्फ छोटे पापा विष्णु ही सारी खर्च और तीन बहनों की शादी की खर्च किया इसलिए मेरा जो भाग हैं ओ भी विष्णु पापा का ही हैं कहा अभी आप विभाजित किया हैं तो मेरा भाग भी विष्णु पापा का ही है कहा। तुरंत रामनाध तो व्य भजन अंदर नहीं करेंगे बाद में देख लेंगे कहकर अपने अपने काम करने को गए।
तीन चार वर्ष के बड़ छोटी बेटी की शादी हुई एक सीधे सादे परिवार से ही दामाद को चुना। क्योंकि अगर अच्छे दामाद को ढूँढा हैं तो खर्च भी ज्यादा करना हैं इसलिए माँ भी कुछ भी नहीं कहा। परिवार हमारे जैसे बड़ा परिवार है, तू ही बड़ी बहू काम पर जाने की जरूरत भी नहीं हैं कहकर शादी किया। बेचारी अनु भी हाँ कहकर शादी का मंजूर कहा। अपने दोस्तों ने उसको डांटा तू कैसे ऐसे व्यक्ति को शादी करोगी ओ तो पढ़ने में भी तुमसे कम है और नौकरी भी सादा है, परिवार भी बढ़िया हैं। छोड़ो अब कुछ भी नहीं कर सकते हम, नसीब कैसे हैं वैसा ही होगा कहा। बेटी अनु का शादी होने के पांच वर्ष में सारी बेटे को भी शादी हुआ। अब परिवार में हर रोज झगड़ा ही हो रहा है। रोशन और उसका पत्नी को रामनाध अच्छे घर बनाने के बाद घर से निकाल दिया तब विष्णु भी कुछ नहीं पूछा, लेकिन शांति अपने भाई के लिए रामनाध से झगड़ा किया। परिवार तो टूटा।
अब अविनाश भी आकर अपना काम शुरू किया आप सब लोग मुझे धोखा दिया इसलिए परंपरा धोलत से आये ये लॉज अभी बेचकर मेरा भाग देना है कहा। विष्णु का मन पिघल गया। एक वर्ष में लॉज बेचकर सारी पैसा तीन भागों में बाँटा इसी समय रोशन के लिए गाँव वाले तो मुँह खोलकर रामनाध से पुछा की "होटल इस स्थिति पर रहने के लिए रोशन ही काम किया इसलिए इस होटल में भाग आप देना हैं "। इस समय रामानाध कहा की लॉज का भाग मुझे नहीं चाहिए मैं भी होटल का भाग नहीं दे दूंगा। ऐसे राजी होकर पत्र लिखकर विभाजित हुआ हैं। लेकिन जब विभाजित करने के समय ज्यादा से ज़्यादा पैसे अविनाश ही लेकर चले गया। रामानाध को कैंसर आकर दो वर्ष में मौत आई और तीन महीने के अंदर विष्णु अपने बच्चों को कुछ भी नहीं दिया इसी वेदना में ही एक दिन ओ गुजर गया। अब परिवार विछिन्न हुआ और रोशन अपने गाँव छोड़कर एक काम पर चले और माँ भी तीन वर्षों में मर गई। अब रोशन काय कस्ट करके अपने परिवार चलता हैं उसका एक बेटी और बेटा है। दोनों अच्छा पढ़ते है। रोशन हर वर्ष अपने बहनों को घर बुलाकर संतोष मय जीवन जिया।