Anshu sharma

Drama

5.0  

Anshu sharma

Drama

वक्त का फेर

वक्त का फेर

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वक्त का फेर .....बिन फेरे हम तेरे


बिटिया परिधि... जी पापा अभी आई। क्या कर रही है बिटिया? पापा बस खाना बनकर तैयार है। बस खाना लगा ने जा रही थी। अपनी मां के जाने के बाद तूने कितने अच्छे से संभाला। जब तू चौथी कक्षा में ही थी जब तेरी मां चली गई और तूने अपने दोनों बहन भाई को बड़ी बहन की तरह नहीं, एक मां की तरह उन्हें पाला है ओहो पापा !आप फिर शुरू हो गए।बेटा एक बात करनी थी तुझसे, सुमित आया था। बचपन का दोस्त है तेरा और कितने समय से तु नौकरी भी कर रही है।सुमित ने भी कितना सहारा दिया।

सुमित कल शादी की बात करने आया था। अच्छा! उसने बताया नहीं पापा मुझसे क्योंकि उसे पता था कि तुम्हारा जवाब ना ही होगा। तो फिर करने क्यों आया परिधि तेज आवाज मे बोली। उसको पता है कि जब तक मेरे दोनों भाई बहन सेटल नहीं हो जाते तब तक मैं शादी नहीं कर सकती। पर रघु अब इंजीनियरिंग कर रहा है और सिया भी मेडिकल की तैयारी कर रही है, यह टाइम सही है बेटा शादी करने का। नहीं पापा वह इंतजार कर सकता है तो वह करें और अगर उसे इंतजार नहीं करना है तो वो आजाद है। उसको मैंने किसी बंधन में बांधा।

नहीं ना मैंने उससे कोई ऐसा वादा किया है शादी का।


मैं जानता हूं कभी उसने कुछ नहीं छुपाया मुझसे। आईआईटी करके बहुत बड़ी कंपनी में लगा है उसके माता-पिता का बहुत दबाव है उस पर शादी का। पापा खाना ठंडा हो गया है यह बातें हम फिर करेंगे। तू मानेगी नहीं। पापा ,चलो खाना खाते हैं भूख लगी है। 

और उस दिन पापा परिधि के रात को सोए और फिर सुबह उठ ही ना पाए। शायद हार्ट अटैक बताते थे डॉक्टर। अब तो जैसे परिधि पर एक पहाड़ टूट पड़ा हो। सुमित उसका जी जान से सहायता कर रहा था और वह जानती थी कि सुमित के बिना वह कितनी अधूरी है। उसका एक कदम भी सुमित के बिना नहीं हो सकता। सुमित ने बहुत समझाया कि शादी के बाद दोनों भाई बहनों की जिम्मेदारी मैं संभाल लूंगा। अब तो अंकल भी नहीं रहे, पर परिधि मानने को तैयार ही नहीं थी।

सुमित ने आखिर अपने मां-बाप के दबाव में शादी के लिए हां बोल दी।परिधि कितना रोई थी। आंखें लाल हो गई थी। सुबह-सुबह उसको ऐसा लग गया था जैसे उसके शरीर में जान ही खत्म हो गई थी, ना उठ पा रही थी। उठने का मन ना होते हुए भी दोनों के लिए रोती रोती खाना ,नाश्ता सब कर रही थी। दीदी !यहां बैठो रघु और सिया ने परिधि का हाथ पकड़ के नीचे बैठा दिया। दीदी आपको कितना समझाया था सुमित जैसा कोई लड़का नहीं हो सकता। आपको शादी कर लेनी चाहिए थी अब भी समय है, दीदी बोल दो हां बोल दो|। नहीं ,अगर मेरी शादी से तुम्हारे कैरियर पर कोई प्रभाव पड़ा तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी। मैं सुमित के बिना रहने की आदत डालूंगी। दीदी बहुत मुश्किल होगा। बचपन से वह आते जाते रहे हैं।

अब उसकी शादी हो जाने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं रहेगा। पता नहीं उनकी वाइफ कैसी आएगी ? वह फिर दोस्त भी नहीं रह पाएंगे। कुछ भी हो और फूट-फूटकर परिधि रोने लगी। जिंदगी ने कितनी बड़ी परीक्षा ली दीदी की ,बचपन से ही मां बन के पाला और उन्हें ही हम दोनों खुशी नहीं दे पा रहे। सिया ने रघु की तरफ देखते हुए कहा। उधर सुमित भी दबाव में आकर शादी कर ली थी पर वह एक पल को भी प्रिया को अपना नहीं पा रहा था उसके दिमाग में केवल परिधी थी।


प्रिया को सब बात पता थी प्रिया एक दिन परिधि के घर आई। जी नमस्ते! मैं प्रिया, आप परिधी है ना !जी मैं आपको नहीं जानती परिधि नहीं कहा। मैं सुमित की पत्नी आपके बचपन के दोस्त की। परिधि को तो जैसे चक्कर आ गया था। उसको उम्मीद भी नहीं थी कि उसके सामने आकर खड़ी हो जाएगी। संभालते हुए अपने को परिधि बोली।

शुभकामनाएं शादी की आओ बैठो। आपके बारे में मुझे पता है कि आप की शादी सुमित से होने वाली थी और आपने अपनी परिस्थितियों की वजह से सुमित को ना कर दी। वो सब बातें भूल जाओ मेरी जिम्मेदारियां निभा लूंगी। अपनी गृहस्थी पर ध्यान दो बताओ क्या लोगी चाय या कॉफी ?

कुछ नहीं बस एक वादा कि आप सुमित को मना लोगी कि वह आपकी तरफ से ध्यान हटाकर अपनी पत्नी की तरफ लगाएं यह तुम क्या कह रही हो ?सुमित ने ऐसा मेरे साथ कभी भी कोई कोशिश नहीं की है कि उसने बड़ी बड़ी बातें मुझसे की हो कोई डायलॉग सुनाया हो। हम खामोशी समझते थे बस एक दुसरे की। प्रिया ने कहा पर उनकी खामोशी बहुत कुछ कह जाती है। ऐसा लगता है कुछ अधूरापन चल रहा है। कुछ मन में उथल-पुथल पूरी तरह से वह खुश नहीं है शादी करके।

समय लगेगा उसने मुझे अपने मन से मान लिया था और परिस्थितियां ऐसी थी मैंने भी तो अपने मन को मना लिया है। उसको भी मनाना होगा। प्रिया मैं उसको अब मिलना नहीं चाहती। तुम्हारी प्यारी जिंदगी मे नही आना चाहती। तुम उसे लेकर दूर शहर कहीं चली जाओ। ना रहेगा ना उसे ध्यान आएगा। और खूब सारी बातें करके प्रिया को भेज दिया। और सुना की सुमित चला गया शहर छोडकर. रोरो कर आँखे थक गयी। आँसु भी सुखने लगे थे परिधी के।परिधि ने सुमितके लिए मान लिया...

बिन फेरे हम तेरे ....सोच लिया बस सुमित को मान लिया था पति। उसी की यादो के साथ जीना था।

 समय बीतता गया सियाने डाक्टर बन गई थी। और परिधि अपनी वह साधारण सी नौकरी में अपने को व्यस्त रखती। कोई ताजगी नहीं थी उसके जीवन में। पर वह सुमित को कभी भुला नहीं पा रही थी। उसकी डायरी में रखा एक सुमित का फोटो उसी के सहारे वह जी रही थी। और उस पर डायरी पर एक पहली लाइन थी" बिन फेरे हम तेरे" अब तुम नहीं तो और कोई भी नहीं।

ऐसी समय गुजरता चला गया रघु की शादी सुरभि से हो गयी और उसके बच्चे हो गए। सिया की भी शादी हो गई और वह विदेश में जाकर सेटल हो गई। परिधि को रघु बहुत बुलाता कि थोड़े दिन के लिए मुंबई आ जाओ। पर वो कुछ ना कुछ कहकर टाल देती थी। अबकी बार रघु ने टिकट भेज दिए थे। दीदी आपको आकर रहना ही होगा। और परिधि सारे रास्ते सुमित का ध्यान करते आई कि काश मेरी भी शादी हुई होती तो मैं आज सुमित के साथ अपने भाई के घर जा रही होती। फिर एकदम से मन मे झटका और असल जिंदगी में वापस आ गई। मैं क्या सोच रही हूं?

सुमित की शादी हो चुकी है कैसे कैसे ख्याल आते हैं? रघु बहुत खुश था।सुरभि भी बहुत प्यार से नंद को एक सास की तरह से रखती थी। दोनों नंद भाभी बहुत प्यार से रह रही थी।

एक दिन परिधि को चक्कर और डॉक्टर ने सलाह दी कि शायद मानसिक तनाव की वजह से इनको ऐसा हुआ है। ऐसी कोई खतरे वाली बात नहीं है। इनको थोड़ा पार्क में कुछ हरियाली ऐसी जगह ले जाओ। जिससे इनका थोड़ा सा खुशी सी मिले। अब रघु, प्रिया अक्सर शाम को ऑफिस से आने के बाद परिधि को पार्क में ले जाते। दिनभर परिधि घर का काम करती क्योंकि वह 1 महीने की छुट्टी लेकर जो आई थी। रघु की पत्नी भी नौकरी करती थी।

कुछ दिन तो वह दोनों आते थे पर समय ना मिलने के कारण परिधि अकेले ही टहलने पार्क में आ जाती। एक दिन अचानक उसकी नजर बराबर के बेंच पर एक व्यक्ति की तरफ से कुछ-कुछ सफेद बाल चेहरा बिल्कुल सुमित जैसा लग रहा था। बेचैन सी हो गई बिना देखे रह नही पाई।और सोचा कि एक सामने से निकल के देखती हूं कि सुमित ही है क्या? वही पुरानी यादें सारी दिमाग में एक सेकंड में दौड़ गई।

दिल जोर-जोर से घबराने लगा अगर सुमित हुआ तो ? पर उसके साथ कोई भी नहीं है अकेला पार्क में क्यों बैठेगा? जैसे ही पहुंची वह सुमित ही था। सुमित उसको देखते के साथ ही एकदम से खड़ा हुआ पर ही थी परिधि यह मैं क्या देख रहा हूं ? परिधि तुम मुंबई में कैसे कितने सालों बाद? कितने सालों बाद हम मिल रहे हैं परिधि? इतनी अच्छी दोस्ती थी हमारी। बैठो ना! मैं तो बोलता ही जा रहा हूं। और परिधि की आंखें आंसू से भरी हुई थी। उसके पास मुंह से कुछ शब्द निकल ही नहीं रहे थे। बस आंसू पूछे जा रही थी।

सुमित ने उसका हाथ पकड़ लिया और एकदम से उसका हाथ हटा दिया कैसे हो सुमित? रघु के घर आई थी बहुत दिनों से बुला रहा था। तुम और तुम्हारा परिवार कैसा है ?सुमित शांत बैठ गया परिवार रहा ही नहीं। हमारे कोई बच्चा नहीं हुआ। प्रिया का बहुत इलाज करा रहे थे पर कोई फायदा नहीं था कुछ छोटी सी सर्जरी से उसके शरीर में इंफेक्शन हो गया और वह बच नहीं पाई। मुझे छोड़कर तुम भी चली गई थी और वह भी चली गई। यह क्या कह रहे हो सुमित ?प्रिया कितनी अच्छी थी !कितना प्यार करती थी तुम्हें !तुमने बताया भी नहीं। क्या बताता ?तुम तो मेरा फोन ही नहीं उठाती थी।फिर जब कुछ रहा ही नहीं था तो फिर बताने का भी क्या फायदा ?

बस कभी-कभी जब मन परेशान होता है तो इस पार्क में आ जाता हूं। चलो मेरा घर पास ही है और कॉफी पीते हैं। सुमित को घर ले आई और सुमित कभी-कभी चाय पीता साथ में रघु और सुरभि बहुत खुश थे। कि दीदी भी खुश हैं उनको बचपन का जो साथी मिल गया था।

एक दिन सिया अपने परिवार के साथ आ गई। इतना बड़ा सरप्राइज़ हम सब साथ कितने सालों बाद ! और सुमित भी था पुरानी बातें हंसी मजाक की चलती रही। बचपन से और बड़े होने तक। तभी रघु ने कहा मैं आप दोनों से कुछ बात करना चाहता हूं।

इसीलिए मैंने सिया को बुला लिया है। सुमित आपके साथ जो भी हुआ उसका हमें बहुत दुख है पर पूरी जिंदगी अकेले रहने का कोई मतलब नहीं बनता और दीदी भी अकेली है। परिधि ने डाँटा, यह तो कैसी बातें करने लगा है ?पुरानी बातों को दोहराने से क्या फायदा ?अब मेरे मन में सुमित के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है। यह तुम्हें समझना होगा। बहुत समय बीत चुका है वक्त बहुत पीछे छूट चुका है। कैसी बातें करती हो दीदी? सब जानते हैं आप की नज़रों में आज भी सुमित के लिए वही जगह है जो आपने हम दोनों को पालने की वजह से उनके साथ अन्याय किया और देखो भगवान को क्या मंजूर था।

आप दोनों मिले देखो। प्रिया को गुजरे हुए 6 साल हो गए सुमित ने कहा। आज मुझे नहीं समझ में आ रहा कि मुझे क्या करना चाहिए ?पर हमें पता है रघु ने कहा आप दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं पर मानते नही की शादी के लिए। इतने में सुरभि ,परिधि की डायरी लेकर आ गई। माफ करना दीदी मैं पढ़ना नहीं चाहती थी लेकिन आपके आने की खुशी के लिए ,मुझे आपके अंदर की बातें जाननी जरूरी थी। जिंदगी अकेले नही काटी जा सकती। 

सुमित जी ये लीजिए दीदी की डायरी। परिधी ने काँपते हाथो से डायरी छिननी चाही पर सुरभि ने सुमित को पकडा दी। परिधी। रोये जा रही थी। सुमित ने कहा परिधि आज भी आज भी तुम मुझे पसंद करती हो यह क्या लिखा है तुमने ?"बिन फेरे हम तेरे "यानी तुमने मुझे अपना मान रखा है।ओहह परिधि मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या कहूं ? ये सब पुराना लिखा है परिधि ने कहा। फिर फाडा क्यूँ नही?बस और कुछ नही बोलो परिधि, सुमित ने कहा।

परिधी नीचे नजरें किये चुप थी। 

 रघु, सिया एक साथ बोले बस एक दूसरे के जीवन साथी बन जाइए और कुछ भी नहीं चाहिए और परिधि का हाथ सुमित के हाथ में दे दिया। आज हम सब बहुत खुश हैं दीदी आपके लिए सुमित से अच्छा आपके लिए कोई जीवनसाथी नहीं हो सकता था। अब बस वह डायरी में से वह लाइन हटा देना" बिन फेरे हम तेरे" 

कल ही आपके फेरे होंगे और आप सुमित भैया की दुल्हन बनेगी और सुमित ने परिधि को गले लगा लिया। और सबकी आंखों में खुशी के आंसू थे।


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