वक्त अपनों का अपनों के लिए
वक्त अपनों का अपनों के लिए
माँ -"हेलो बेटा सुधीर "
सुधीऱ-"हाँ, माँ मैं ठीक हूँ तू रोज सुबह 9:00 बजे फोन करती हैं अब मैं समय पर उठ भी जाता हूँ और नाश्ता करके ऑफिस चला जाता हूँ मुझे देर हो रही है ओके बाय!"
सुधीर, राधिका जी का इकलौता बेटा जो अब पूना शहर में नई जॉब पर कंपनी में कार्यरत हैं। राधिका जी छोटे से शहर में रहती हैं । राधिका जी ने सुधीर को आगे बढ़ने भेज तो दिया।पर मां की ममता प्रतिपल बच्चे की चिंता में रहती है उसके लिए बच्चा कितना ही बड़ा हो जाए लेकिन वह छोटा ही लगता है और मां अपने दायित्व उसके लिए निभाते रहना चाहती है।राधिका जी सुधीर के लिए चिंतित रहती हैं और वह सुबह उठते ही उसको फोन लगाती हैं कि वह अपने ऑफिस के लिए लेट ना हो जाए और नाश्ता करके निकले। यह क्रम लगभग रोज का ही था और अगर सुबह सुधीर से बात नहीं हो पाती तो वह लंच टाइम में भी उसको कॉल किया करती थी और डिनर टाइम में भी।
राधिका जी-"हेलो सुधीर"
सुधीर-"हां मां,मैं शाम को तुमको कॉल करूंगा तब अपन ढेर सारी बातें करेंगे"!" सुधीर रोज यह बात करके कॉल रख देता माँ रोज सुबह सुधीर के हाल-चाल पूछती और खुश हो जाती और अपने कार्य में लग जाती। जबकि सुधीर अपने काम में इतना व्यस्त हो जाता है कि वह अपने शाम का वादा भी भूल जाता!मां बेटे का प्रतिदिन सुबह का यही रूटिन था और यही कुछ डायलॉग सुधीर मां को रोज कहता था।
एक दिन सुधीर को मां का वही सवेरे फोन आया सुधीर से ऐसे ही बात हुई और रोज की तरह सुधीर ने बाय कहकर फोन रख दिया पर उस दिन मां ने दोपहर में भी कॉल किया और शाम को भी सुधीर को फोन गया पर सुधीर अपने प्रोजेक्ट पर में इतना बिजी था कि उसने मां को वापस रिप्लाई भी नहीं किया और अपने कार्य में तल्लीन हो गया।जब सुबह उसने अपना कॉल देखा तो उसने मां की तीन चार मिस कॉल देखी। उस दिन सुबह मां का फोन नहीं आया व सुधीर इंतजार भी कर रहा था पर वह ऑफिस के लिए निकल गया ।उसने फोन मिलाया तब मां का फोन बंद आ रहा था दोपहर में सुधीर ने उन्हें फोन मिलाया पर मां का फोन तब भी बंद आ रहा था ।सुधीर के अजीब सी घबराहट हुई उसने अपने बॉस से छुट्टी मांगी और ढाई सौ किलोमीटर दूर अपने गांव के लिए रवाना हो गया!घर जाकर देखा तब मां घर पर खाना बना रही थी सुधीर ने जाते ही मां को आवाज दी और गले लगा लिया!सुधीर को देखते ही मां की आंखों से खुशी की अश्रु धारा बह निकली और उन्होंने उसके आने का कारण पूछा।
मां -"बेटा तेरी तबीयत तो ठीक है तेरा जुखाम ज्यादा तो नहीं बढ़ गया जो तुझे छुट्टी लेकर गांव आना पड़ा। कल मैंने दोपहर में, शाम को चिंता करते हुए फोन भी किया था पर तू मेरा फोन नहीं ले पाया और कल रात से मेरा फोन भी बंद पड़ा है आज सुबह से बाबूजी को कहा है कि इस को सुधरा लाएं मुझे तेरी चिंता हो रही है।"
सुधीर मां के मन की व्यथा समझ गया वह विचार करने लगा "कल सुबह मां से बात करते हुए जब उसे छींक आई थी तब वह यह समझ गई कि वह जुखाम से पीड़ित हैं!इसी चिंता में उसने उसे तीन बार फोन किया पर सुधीर ने अपने कार्य में यह न सोचा की मां किसी बात से परेशान होगी या उसे कोई परेशानी हो सकती हैं।"
माँ- "मेरे कारण तुझे कितनी परेशानी उठानी पड़ी अपना जरूरी काम छोड़कर मेरी चिंता में आना पड़ा!"
सुधीर- "मां तुम्हें दुखी होने की कोई जरूरत नहीं आज मुझे एक बहुत बड़ा सबक मिला है शायद यह जरूरी भी था।मां मेरी चिंता तो तुम रोज करती हो। आज एक दिन जब तुम्हारा हेलो नहीं आया तो मुझे एहसास हो गया की हम चाहे कितने ही व्यस्त हो कितनी ही शहर की दूरियां हो पर अपनों को अपना वक्त थोड़े समय के लिए देना बहुत जरूरी है। क्योंकि जिन्होंने हमें पाल पोस कर बड़ा किया है शिक्षा दी है जिनके कारण आज हम अपना जीवन बना रहे हैं आज उनके लिए ही हमारे पास अगर थोड़ा भी वक़्त नहीं तो यह हमारी बहुत बड़ी भूल है!
जब हमारे पास वक्त होगा तब वह अपने नहीं होंगे इसलिए आज से मैंने यह सोचा है कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं तुम्हारे लिए अपना थोड़ा वक्त जरूर निकालूंगा और सभी को मैं यह कहना चाहूंगा कि वक्त अपनों का अपनों के लिए होना चाहिए।