विश्वासघात
विश्वासघात
"रिया जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं..." रमन ने कहा|
"रमन मेरा हाथ छोड़ो, अब तुम्हारा मुझ पर कोई अधिकार नहीं।" रिया ने रमन से कहा|
"ऐसे कैसे नहीं? तुम भूल रही हो कि सौम्या मेरी भी बेटी है| तुमने मुझसे ये सच क्यों छुपाया था?" रमन ने कहा|
"अच्छा! तुम्हें पता है ये बात! अच्छा लगा सुन के कि तुम ये सच जानते हो। लेकिन तुम भूल रहे हो कि तुम्हें तो उसकी जन्म तारीख भी नहीं पता। मुझे मायके भेज कर तुमने बिना बताए चुपके से दूसरी शादी कर ली और मुझे तलाक का नोटिस भेज दिया| क्यों? क्योंकि तुम्हें लगा कि मैं कभी माँ नहीं बन सकती। सिर्फ शादी के चार सालों में तुमने और तुम्हारे परिवार ने मुझे बाँझ साबित कर दिया बिना सच जाने।
रमन लेकिन एक सच जो आजतक तुम नहीं जानते। वो ये कि मैं उस दिन जब अस्पताल से लौट कर आयी तो बहुत खुश थी तुम्हारे साथ ये खुशी बांटना चाहती थी। लेकिन तभी अंदर आते ही मैंने तुम्हें उस दिन माँजी से बात करते हुए सुन लिया था कि तुम अपनी ऑफिस की ही किसी महिला मित्र रोशनी से प्यार करने लगे हो। और उससे ही शादी कर के अपने सुने जीवन मे खुशियां लाना चाहते हो।
उत्तर में तुम्हारी माँ ने कहा, हाँ बेटा! रिया तो बाँझ है और तू मेरा इकलौता बेटा है मेरी तो यही इच्छा है कि मरने से पहले पोते का मुँह देख लू। देर से ही सही लेकिन तूने मेरी बात मानी तो।
तुमने चुप रह कर अपनी सहमति दे दी।
तुम ने मुझे देख के ये तक जानने की कोशिश ना कि डॉक्टर ने क्या कहा?"
"तुम क्यों गयी थी अस्पताल..."
"बस बे मन से अस्पताल के बाहर छोड़ कर चल दिये। ये कहते हुए की तुम्हें कोई जरूरी काम हैं।
और मेरे घर आते ही फरमान सुना दिया। कि तुम कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जाओ। तुम्हे ठीक लगेगा। तुम्हारी तबियत भी ठीक हो जाएगी।
मेरे लिए उस रात कयामत की रात थी। जब तुम मुझसे झूठ बोल कर दूसरी शादी करने जा रहे थे। और तुम्हारे चेहरे पर कोई शीकन नहीं थी।"
"इसका मतलब है, तुम भी यही चाहती थीं कि मेरी दूसरी शादी हो जाए?"
‘‘मैं नहीं, सिर्फ तुम चाहते थे, तुम. तुम्हारे ही दिल में दूसरी शादी की तमन्ना पैदा हो गई थी. एक औरत तो कभी नहीं चाहेगी कि उस की कोई सौतन आए. सिर्फ औलाद नहीं होने से हमारा प्यार कम होने लगा था, मेरी तरफ से तुम्हारा मन हटने लगा था. तुम्हारी नजर में मेरी कोई कीमत नहीं रह गई थी. मुझ से दिली प्यार नहीं रह गया था. और मेरा प्यार और मैं इतनी कमजोर नहीं थी कि अपनी कोख में पल रहे बच्चे का सहारा ले कर मैं तुमको तुम्हारे इरादे से रोकती.
तुम्हारा बात बात में मुझे सुनना कि अरेंज मैरिज नहीं करनी चाहिए। कैसी लड़की मिले क्या पता? लव मैरिज ही ठीक है। अपने पसंद और आपसी सूझबूझ की लड़की से उम्र भर खुशियाँ मिलती हैं और सुख मय जीवन व्यतीत होता है। तुम्हारा बदलता व्यवहार मुझे बहुत खलता था लेकिन अगले ही पल ये सोच लेती कि शायद भगवान सब ठीक कर दे।"
"मुझे माफ़ कर दो.... रिया। मैं बच्चें की चाह में अंधा हो गया था और आज वो लोग ही मुझे नहीं पूछते। मेरे साथ अपने ही घर मे बेगानों के जैसा बर्ताव होता था शादी के बाद मुझे पता चला कि रोशनी का स्वभाव बहुत ही जिद्दी, और छोटी छोटी बातों पर भी शक कर के झगड़े करने का है। दो बेटे हुए...तो मैं खुश हुआ कि अब शायद सब ठीक हो जाएगा। लेकिन रोशनी के स्वभाव औरसही परवरिश के अभाव में दोनों ही बिगड़े हुए स्वभाव के हो गए। तुम्हारे जाने के दो महीने बाद मुझे तुम्हारी मेडिकल रिपोर्ट मिली। तो मुझे पता चला कि तुम प्रेग्नेंट थी शायद तुम जल्दी में रखना भूल गयी थी। मैं लौट कर आया तो तुम्हारे घर वालो ने बताया कि तुम अब वहाँ उनके साथ नहीं रहती। मेरे लाख पूछने पर भी उन लोगों ने तुम्हारा पता नहीं बताया।"
"अब बहुत देर हो चुकी है रमन अब इस माफी और पछतावे का कोई मतलब नहीं मेरे लिए। मैंने बहुत कष्ट सह के अपनी बेटी को बड़ा किया है। जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब तुम मेरे साथ नहीं थे। और अब मेरी और मेरी बेटी की जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नही।"
"रिया मैं सौम्या को ये सच बता दूंगा कि वो मेरी बेटी है फिर देखना उसका क्या फैसला होगा? क्योंकि तुमने तो उसको मेरे बारे में बताया नहीं होगा। आज उसको मैं सच बताऊंगा कि तुमने मुझसे झूठ बोलकर उसको दूर किया।"
"मिस्टर रमन! मेरी माँ का हाँथ छोड़िए।"
"सौम्या! बेटा तू, बेटा मैं तेरा...."
"पापा हुँ यही ना।।" सौम्या ने कहा...
रमन के चेहरे का रंग उड़ चुका था। "ये सच मै जानती हूं। लेकिन आपके लिए सिर्फ इतना जानना जरूरी है कि मेरे लिए मेरी मां ही सब कुछ है माँ भी और पिता भी। मुझे गर्व है कि मैं इनकी बेटी हूं। चलिये माँ!"
"रमन तुम आज भी नहीं बदले। आज भी तुम वही करने की कोशिश कर रहे थे जो आज से तीस साल पहले किया था। बेटी को आईपीएस देख के मन ख़ुश हुआ तुम्हारा। और एक बार फिर तुम अपना स्वार्थ देखने लगे। मैं तो यहाँ अपना जन्मदिन मनाने आयी थी लेकिन शायद तुम्हारी जगह ये वृद्धाश्रम ही है। क्योंकि हर इंसान को उसके कर्मो की सजा यही मिलती है।
तुम शादी और रिश्तों का मतलब आज तक नहीं जान पाए। शादी चाहे लव हो या अरेंज दोनों ही शादी में दो लोगों के बीच प्यार और विश्वास होना जरूरी होता है। शादी का मतलब सिर्फ बच्चें पैदा कर के अपने स्वार्थ पूरे करना नहीं होता।"
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दोस्तों उम्मीद करती हूं मेरी ये कहानी आप सबको पसंद आएगी।
