विश्वास
विश्वास
सीमा को हमेशा से सच्चाई की ताकत पर अटूट विश्वास था पर जब से शादी हुई ये विश्वास हिलने लगा था।
पति कान के कच्चे थे तो सीमा को छोड़ सबकी बातें सच्ची लगती थी उन्हें। सीमा को लगता था जैसे उसके पति कठपुतली हों, जैसे घरवाले चलाते वैसे चल जाते।
कई बार हारी, कई बार सोचा सीमा ने कि वो भी छोड़ दे सच्चाई का रास्ता पर अपने संस्कार छोड़ना कहां आसान होता है सो डटी रही वो भी।
धीरे धीरे जैसे पानी अपने निशान छोड़ता है वैसे ही उसकी सच्चाई सब पर छाप छोड़ने लगी थी। सच्चाई अपना रंग दिखाने लगी थी और सीमा का सच्चाई पर विश्वास फिर अटूट हो गया था।