विपश्यना

विपश्यना

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बच्चो, आज मैं जानना चाहता हूं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आप कुछ देर बिना बोले रह सकें?" "असंभव है' चाचा जी, थोड़ी देर मुंह पर उंगली रखेंगे, तो शायद चुप रहें, मगर कितनी देर?"अरुण ने पूछा "कितनी देर? आज बच्चों, मैं बताता हूं कि हम कैसे एक वर्ष तक चुप रह सकते हैं।"

" एक वर्ष तक !जो यह तरकीब हमारे शिक्षकों को पता चल जाए, तो वे क्लास में ज्यादा बात करने वालों की समस्याओं से मुक्त हो जाएंगे।"

"हां,भारत में, "विपश्यना" नामक एक ध्यान की क्रिया है, जहाँ प्रतिभागी कई दिनों तक एक भी शब्द बोले बिना रहते हैं।"

"क्या आपने इसे अनुभव किया है, चाचा जी?'कनक लता ने पूछा।

"मैंने.. मैंने तो नहीं, मगर मैंने कहीं पढ़ा है एक सज्जन ने किसी ऐसे एक सत्र में भाग लिया और पांच दिन मौन व्रत लिया ।उनका अनुभव आप सबको बताता हूं।"

"निश्चय की बहुत छटपटाहट हो रही होगी बिना बोले! मुझे पूरा यक़ीन है।" नन्ही गरिमा, जो बिना बोलेे एक क्षण नहीं रह पाती, तुरंत बोली।

" (चाचा जी हंसते हुए) पहले दिन लगातार उन्हें खुद को बार- बार याद दिलाना होता था, कि उन्हें मुंह नहीं खोलना है। ध्यान केंद्रित हो सके इसलिए फोन, इंटरनेट या टेलीविज़न नहीं थे। आयोजकों ने उन्हें खुद के जीवन के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित किया। इससे उन्हें अपने जीवन की बहुत से भूली बिसरी बातें याद आ गई।"

"यह तो बहुत अच्छी प्रक्रिया है ,चाचा जी ।हमारी स्मरण शक्ति इससे तेज हो सकती है!"योगेश ने कहा।

"हां बिल्कुल, शुरू के एक-दो दिन उन्हें बहुत नींद आई।"

" एक-दो दिन ही, ना चाचा जी, कहीं अधिक नींद की बीमारी लग जाए, तो यह विद्यार्थियों के लिए बहुत कठिन हो जाएगा!" सोमेश ने आंखें नचाते हुए पूछा।


"इस प्रक्रियाा द्वारा ध्यान केंद्रित करना सीख जाते हैं क्योंकि आप दृश्य की अपेक्षा ध्वनि के अधिक अभ्यस्त हो जाते हैं। जब लगातार लोगों को बोलते हुए नहीं सुन पाते  तो आप प्रकृति की ध्वनियों को सुनना शुरू करते हैं यहां तक कि खुद की सांस की आवाज़ को भी और हाव भाव का अर्थ समझने लगते हैं । कुछ ही समय में आप किसी व्यक्ति की शारीरिक भाषा को दूर से लगभग "सुन" सकते हैं।"

"इसका अर्थ हुआ हम किसी के हाव- भाव से उनके मन में छिपी बातों को भी समझ सकते हैं!"रुचि ने कहा।

"लेकिन सबसे आश्चर्यजनक यह है कि जब आपको फिर से बोलने की स्वतंत्रता दी जाती है, तो आप बोलना ही नहीं चाहते हैं।"

 "यह तो सचमुच आश्चर्यजनक बात है,चाचा जी। हम अक्सर कितनी ही निरर्थक बातें करते हैं। शायद इस साधना से हमें यह आभास हो जाता है कि कुछ ऐसी भी बातें हैं, जिन्हें हम बिना बोले भी रह सकते हैं। तब शायद हमें अपनी बेवजह बातें भली नहीं लगेंगी।"आशुतोष ने कहा।

" कितनी गहरी बात कर दी तुमने, आशुतोष!इस साधना का यह भी एक उद्देश्य है कि हम निरर्थक प्रलाप में अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ न करें।वाह !

 तुमने तो आज मेरा दिल खुश कर दिया !"

"चाचा जी, यू कहें कि आपका दिल बाग-बाग कर दिया!"बिमलेंद्र मुस्कुराते हुए बोला।

"बच्चो, और अधिक जानकारी हेतु आप अल्फ्रेड ली 

की पुस्तक पढ़ सकते हैं।आज के लिए इतना ही। नमस्ते।"

"धन्यवाद चाचा जी, नमस्ते।"सब ने समवेत स्वर में कहा।



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