Bhawana Tomar

Tragedy

4  

Bhawana Tomar

Tragedy

विलाप

विलाप

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" हे भगवान कितना विलाप भरा माहौल है, क्या हो गया है इस बस्ती में ?"मैंने उदास होकर एक राह चलते व्यक्ति से पूछा। उसका जवाब था कि धनु मजदूर का बेटा बुखार में दवाई ना मिलने के कारण मर गया है इसलिए यह रोने चीखने की आवाज आ रही है । हे भगवान! तू जब संतान देता है तो छीन क्यों लेता है मैंने अपने मन में सोचा। मैं क्या जानती थी कि किन परिस्थितियों में उस व्यक्ति के पुत्र की मृत्यु हुई। धनु जो एक गरीब मजदूर है, मरने वाला उसकी तीन संतानों में सबसे बड़ा था गरीबी भुखमरी के माहौल में जब रोटी खाने के लाले पड़ जाते हैं तो दवाओं के पैसे कहां से आते ? फिर उसने सोचा कि क्यों ना मैं अपनी जोरू को भी काम पर ले जाऊं तो पैसे ज्यादा कमाई होगी और आगे हमारी संतानों पर भी कोई ऐसी आंच नहीं आएगी। उसने अपनी जोरू से पूछा तो वह तैयार हो गई कुछ दिनों बाद जब वे शोक के समुंदर से बाहर आए तो चल दिए काम की तलाश में ।

कुछ दिन भटकने के बाद खैर कुछ काम उनके हाथ लगा ,एक फैक्ट्री के बेसमेंट का लेंटर था तो उन्हें मजदूरी का काम मिल गया । मजदूरी पर जाने के रोज दोनों बड़े ही उत्साहित थे क्योंकि आज उसकी जोरू भी काम पर गई थी तो आज कुछ ज्यादा पैसे मिलेंगे ।"आज हम बच्चों को मिठाई खिलाएंगे क्योंकि बेचारों ने दिवाली पर भी मिठाई नहीं खाई थी और हम दोनों भी पेट भर कर खाना खाएंगे"धनु ने मन में सोचा।

दोनों निश्चित स्थान पर पहुंचे जहां पर उन्हें मजदूरी करनी थी। बड़े ध्यान से धनु उस जगह को देखने लगा उसने सोचा कि कितने पैसे वाले लोग होंगे यह तभी तो इतना खर्च हो रहा है । एक पल को उसने सोचा कि काश मैं भी पैसे वाला होता पर अगले ही पल उसने सोचा कि नहीं मैं अमीर नहीं बनूंगा क्योंकि अमीर ही तो गरीबों का खून चूस चूस कर और ज्यादा अमीर बनते हैं और गरीबों को और ज्यादा गरीब बना देते हैं । क्या हुआ जो मेरे पास पैसे नहीं है मेरे पास मेरे बच्चे तो हैं और मुझे अपने बच्चों से प्यारा और कुछ भी नहीं है। घर-घर मजदूरी करता फिरता हूं वह अपने बच्चों के लिए ही तो करता हूं । वरना मुझे क्या जरूरत है यूँ मारा मारा फ़िरने की। अकेला तो भीख मांग कर भी गुजारा कर सकता हूं कोई रोटी देगा तो खा लूंगा और मैं दो दिन भूखा ही रह जाऊंगा तो क्या फर्क पड़ता है । मुझे अपने बच्चे बहुत प्यारे हैं मेरी पूंजी तो बस मेरे बच्चे हैं। बड़ा तो छिन ही गया मगर भगवान इन दोनों को बनाए रखना खूब पढ़ाऊँगा लिखाऊंगा इन्हें। राजू को तो स्कूल में डाल ही दिया है पढ़ लिखकर कमएगाऔर चैन से जिंदगी गुजारेगा और मेरी प्यारी बेटी लक्ष्मी इसे भी स्कूल में भर्ती कर दूंगा ।

धनु ने बच्चों को एक कोने में बिठा दिया। बच्चों को साथ इसलिए लाना पड़ा क्योंकि बेटी तो बहुत छोटी थी और बेटे के आज स्कूल की छुट्टी थी तो सोचा बैठकर यह काम देख लेंगे ।

अभी काम शुरू होने में देर थी धनु की जोरू ने बेटी को दूध पिला कर एक टोकरी में लिटा दिया और ऊपर से कपड़ा ढक दिया कि कहीं धूल ना लगे । यह निर्माण कार्य मेरे घर के सामने ही था तो यह मंजर में भी देख रही थी अपनी छत पर खड़ी होकर । उस वक्त मेरे दिमाग में एक बात आई क्या अमीर और गरीब में इतना फर्क है कोई अमीर का बच्चा तो इस वक्त चांदी के पालने में झूल रहा होगा मगर इस गरीब ने तो अपनी बेटी को टोकरी में लेटा दिया है और जी तोड़ मेहनत करने को तैयार है एक औरत होकर भी। पति-पत्नी का बच्चों के प्रति प्यार देखकर मैंने भगवान से प्रार्थना की कि उन बच्चों को बनाए रखना। मगर भगवान को तो कुछ और ही मंजूर था काम शुरू हुआ तो लेंटर की मशीन चलने से उस प्लॉट के बाहर सड़क पर लगी ईंटों में मशीन के चलने से कंपन होने लगा और धड़ धड़ करके वह गिरने लगी और सारी दीवार भी टूट कर उन मासूम बच्चों पर जा गिरी और वह मलबे में दब गए । धनु और उसकी जोरू एक बार फिर दुख के समुद्र में डूब कर विलाप करने लगे।


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