सुनहरी सीढ़ी
सुनहरी सीढ़ी
बहुत पुरानी बात है रामपुर नामक गांव में भोंदू नाम का एक लड़का रहता था। वह बड़ा ही प्यारा था। माता-पिता को तो बचपन में ही खो चुका था उसकी एक बूढ़ी दादी थी जिसके साथ में रहता था। उनके पास थोड़ी सी जमीन थी जिसमें उनकी कुछ आमदनी हो जाया करती थी। एक बार पूर्णिमा की रात को चाँद बिल्कुल गोल मटोल बनकर चमक रहा था और चमकीले तारे टिमटिमा रहे थे।तब रात को भोंदू की आंख खुली उसे चांदनी रात बहुत पसंद थी अतः वह झोपड़ी से बाहर निकल आया तो उसने क्या देखा कि एक सुनहरे रंग की सीढ़ी आसमान से मैदान में लटकी हुई है।भोंदू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ अतः वह मैदान में जा पहुंचा।उसने सोचा चलो चल कर देखता हूं कि यह सीढ़ी आखिर जाती कहां है । यह देखने के लिए वह सीढ़ी चढ़ता गया चढ़ते चढ़ते वह नीले आकाश में पहुंच गया।वहां की गुदगुदी जमीन में भोंदू को बहुत मजा आया फिर भोंदू ने नन्हें-नन्हें तारों को करीब से देखा जो हीरे की तरह चमक रहे थे। भोंदू ने उन्हें छू कर देखा फिर उसने आसपास देखा तो उसे कोई नहीं दिखा उसे चुपके से एक तारे को उठा लिया और सीढ़ी पर से उतर कर मैदान में पहुंच गया।झोपड़ी में पहुंच कर उसने वह प्यारा सा चमकता तारा सजा कर रख दिया और सो गया। सुबह-सुबह दादी की आंख खुली तो भोंदू को आवाज लगाई भोंदूओ भोंदू! जरा मेरा चश्मा तो देना कहां गया ना जाने कहां गया दादी ने किसी तरह हाथ से टटोलकर अपना चश्मा ढूंढ कर लगाया तो देखा कि भोलू गहरी नींद में सोया हुआ है और दादी ने तारे को देख लिया मगर पहचान ना सकी क्योंकि दिन होने के कारण उसकी रोशनी धीमी पड़ चुकी थी। चलो पाठशाला नहीं जाना, जल्दी उठो, दादी ने भोंदू को जगाया भोंदू ने दादी से रात की किसी भी बात का जिक्र नहीं किया और पाठशाला चला गया।
रात होने पर भोंदू की झोपड़ी में रोशनी हो गई तब दादी को भो भोंदू ने तारा दिखाया और कहा दादी मेरी प्यारी दादी जानती हो या क्या है ?अच्छा तो तू नई लालटेन लाया है। यह तो बहुत रोशनी करती है दादी ने कहा। "अरे नहीं दादी , यह तो तारा है मैं आसमान से लेकर आया हूं "और उसने कल रात की का किस्सा दादी से कह सुनाया मगर दादी ने उसकी बात का यकीन नहीं किया। अब भोंदू ने भी ठान लिया कि वह अपनी दादी को यकीन दिला कर ही रहेगा।
अब रोज रात को उठकर मैदान की तरफ देखता मगर उसे सीढ़ी नहीं दिखी अगली पूर्णिमा को रात को जब उसकीआंखें खुली तो उसने फिर आसमान से लटकती सुनहरी सीढ़ी को देखा तो वह दौड़ता हुआ जाकर सीढ़ी पर चढ़ गया और आसमान में जा पहुंचा।इस बार उस जगह से अनजान नहीं था। वह बादलों के नरम गद्दे पर कूदा और बड़ा आनंद लिया। वह कुछ वक्त और खेलता रहा फिर वह तारा लेकर चल पड़ा तो देखा कि सीढ़ी गायब हो गई थी। यह देखकर भोंदू के होश उड़ गए और वह जोर-जोर से रोने लगा। उसके रोने की आवाज सुनकर एक परी आई परी को देखते ही भोंदू रोना भूल गया और उस खूबसूरत परी को देखता रह गया। अब तक उसने सिर्फ कहानियों में ही परियों का जिक्र सुना था परी ने पूछा तुम कौन हो और यहां कैसे आए तब उसने सारी बात बताइए तो परी ने उसे बताया कि वह सीढ़ी तो पूर्णिमा की रात को ही लटकाई जाती है क्योंकि उस दिन सभी परियां धरती पर घूमने जाती हैं जो परियां ठीक से उड़ नहीं सकती सीढ़ी के द्वारा धरती तक पहुंचती हैं।अब मेरा क्या होगा भोंदू रोते-रोते बोला। परी को उसका भोलापन बहुत भाया उसने कहा कि तुम अगली पूर्णिमा तक हमारे साथ परीलोक में रहो। यह सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा।
उधर जब सुबह दादी की आंख खुली तो भोंदू को न पाकर वह परेशान हो गई।सुबह से शाम हो गई भोंदू का कुछ पता ना चला तब वह जोर जोर से रोने लगी। तब कुछ लोगों ने घर आकर रोने का कारण पूछा तो दादी ने बताया मगर उस तारे को देखकर लोगों में कानाफूसी शुरू हो गई वह समझे कि यह कोई हीरा है जो चमक रहा है और धीरे-धीरे राजा तक यह बात पहुंच गई कि एक गरीब बुढ़िया की झोपड़ी में बड़ा सा हीरा है। तब राजा ने सैनिक भेजकर दादी को बुलवाया वह उस पर चोरी का इल्जाम लगाया कि उसके पास हीरा कहां से आया मगर बेचारी दादी क्या बोलती वह तो कुछ जानती ही नहीं थी उसे काल कोठरी में बंद कर दिया गया।
इधर परीलोक में भोंदू के दिन मजे में कट रहे थे वह नहीं जानता था कि दादी पर क्या बीत रही है अगली पूर्णिमा को परी रानी ने बहुत से तोहफों व एक तारे के साथ उसे विदा कर दिया। सुनहरी सीढ़ी पर से जब उतरकर वह झोपड़ी में पहुंचा वहां कोई नहीं था सिर्फ अंधेरा था वह घबराकर जोर जोर से रोने लगा । गांव के लोगों ने उसे बताया कि राजा ने दादी को हीरे की चोरी के इल्जाम में कालकोठरी में डाल रखा है तब रात ही को राजा के महल में पहुंच गया और दुहाई दी तब राजा ने उसे अंदर बुलाया तो भोंदू ने राजा को सारी घटना सुनाई और परी के दिये तोहफे भी दिखाएं। उसने राजा से पूछा कि यदि तुम समझते हो कि हमने हीरा चुराया है तो आप यह भी बताइए कि हीरा चोरी किसका हुआ है। अब राजा सोच में पड़ गया और उसने दादी को छोड़ने का आदेश दिया। दादी तो भोंदू को देखते ही खुशी से रोने लगी और बोली "मेरे बच्चे तू कहां चला गया था मैं तो समझी कि अपने पिता की तरह तू भी मुझे हमेशा के लिए छोड़ गया। " नहीं दादी मैं तुम्हें छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा कभी नहीं जाऊंगा"। फिर भोंदू ने एक तारा राजा को तोहफे में दे दिया और अपनी दादी को लेकर अपने घर जाने लगा तब राजा ने कहा कि भोंदू तुम बहुत प्यारे लड़के हो मैंने तुम लोगों पर चोरी का इल्जाम लगाया तुम्हारी दादी को काल कोठरी में रखा तब भी तुमने मुझे तारा तोहफे में दिया। तुम मुझे माफ कर दो आज से तुम और दादी यहीं महल में रहोगे हमारे साथ। यह सुनकर तो वह बहुत खुश हुआ। अब वे राज महल में खुशी-खुशी रहने लगे।