विदाई की घड़ी
विदाई की घड़ी
चरित्र:- चार बहने।
शीना :- सबसे बड़ी बहन
मीता :- दूसरे नंबर की बहन
मीना :-तीसरे नंबर की बहन
नीता :- सबसे छोटी बहन और
लेखिका।
2 भाभियां जो कि ऊपर और नीचे रहती हैं।
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आंखों के आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थे। मेट्रो में आसपास वाले लोगों की नजर खुद को घूरती हुई सी प्रतीत हो रही थी। लोग भी जाने क्या सोचते होंगे सोच कर नीता ने धीरे से अपने आंसुओं को पोंछा और चुप करके अपने कानों में लीड लगाकर ऐसे दिखाया मानो वह गाने सुन रही हो लेकिन फिर भी आंसू -------। ख्यालों में बहुत पीछे जा रहे थे, मां का हर बच्चे के लिए प्यार, उसकी डांट, उसका समझाना, मुस्कुराना बड़बड़ाना आंखों के सामने चलचित्र के जैसे घूमे जा रहा था। डॉक्टर ने तो दो महीना पहले ही अस्पताल से मां की छुट्टी कर दी थी यह कहकर कि अब घर में ही सेवा करो।
अकेली दोनों भाभियां जो ऊपर नीचे रहती थी उसकी सेवा करने में समर्थ थी या नहीं, कह नहीं सकते लेकिन फिर भी हर वक्त बेटियों से फोन पर बात करने वाली मां को कोई यूं ही तो नहीं छोड़ा जा सकता था। चारों बहने आपस में विचार-विमर्श करके दो दो दिन मां के पास जरूर लगाती थी। मीता तो नजदीक ही रहती थी वह तो जब तब आई ही रहती थी। शायद इसी कारण ही दोनों भाभी अभी मां के साथ बैठने और उसका मन लगाने की जिम्मेदारी से छूटी हुई थी लेकिन फिर भी बहनों के और आने जाने वालों के हर वक्त बैठे रहने से एक और अनचाही जिम्मेवारी उनके चेहरे से यथासंभव स्पष्ट झलकती थी
रोज सुबह एक अनहोनी खबर का डर हर फोन की घंटी बजने पर होता था और रात तक डर के साथ कोई अनहोनी खबर ना मिलने का सुकून भी आ जाता था। अभी कल से तो वह कुछ बोल ही नहीं पा रही थी सिर्फ पीड़ा की लकीरें उनके चेहरे पर कई बार आती थी और जाती थी। ऑक्सीजन की जरूरत तो नहीं लग रही थी, लेकिन कई बार मां आंख खोल कर सबको देख तो रही थी। वह कुछ बोल नहीं पा रही थी।
मीता ( दूसरे नंबर की बहन)अभी भी मां के साथ ही बैठी थी। शादी के बाद वह जिस घर में गई वहां उसका पति और सास ही थी। पति का बिजनेस काफी अच्छा था लेकिन उसे पहले दिन से ही पता चल गया था कि उसके लिए घर में रसोई के सिवा कोई भी जगह अपनी नहीं थी ।इतने अमीर घर की इकलौती गरीब बहु थी वह। मां ने उसे हर मोड़ पर सहारा देकर कभी उसे टूटने नहीं दिया। सिर्फ एक मां ही थी, जो उसकी हर बात समझती थी, मां सब से छुपा कर उसे अलग से कपड़े गहने या जो भी उस से बन पड़ता था दे देती थी। मीता का तो रो रो कर के बुरा हाल था उसे अभी अपने बेटी की भी शादी करनी थी मां के बिना सब कुछ अंधकारमय ही लग रहा था हालांकि सब भाई बहनों को ख्याल था कि मां ने अलग से उसको कुछ ना कुछ दिया तो है ही।
शीना (सबसे बड़ी बहन) का घर भी ज्यादा दूर तो नहीं था, पर उसे अक्सर यही शिकायत रहती थी की मां जो भी कुछ करती है सब मीता के लिए ही करती है , वह अपनी गृहस्थी में पूर्णतया रमी हुई थी । उसकी भी बहू आ चुकी थी, परंतु फिर भी वह जितनी बार भी आती मानो सब पर एहसान ही करती थी, आज भी सिर्फ मीता ही रुकी हुई थी। शीना नीता की सबसे बड़ी बहन थी, बोली पता नहीं कब क्या हो जाए, एक बार पहले अपना घर तो संवार आऊं फिर कल तक आ जाऊंगी।
मीता दूसरे नंबर की बहन थी और मीना तीसरे नंबर की बहन थी। उसकी सदा से ही यह आदत थी कि जहां भी पलड़ा भारी देखती थी वह वहां की ही हो जाती थी। दोनों भाइयों को मीना बहुत भाती थी। 3 महीने पहले जब मां अस्पताल गई थी तो मीना ने ही मां के हाथ में पहनी हुई सोने की चूड़ियां और अंगूठी डॉक्टर के कहने से उतार कर किसको दी थी, यह घर में सबके लिए सस्पेंस ही था। रही नीता की बात तो वह सबसे छोटी बहन थी। उसके बाद दोनों भाई ही हुए थे। अतः वह मां और पिता की लाडली भी ज्यादा ही थी। नीता के बच्चे बड़े हो कर होस्टल जाने तक मां ही संभालती थी क्योंकि नीता तो नौकरी के लिए चली जाती थी। रह-रहकर नीता को याद आ रहा था कि मा ने ,"भले ही वह कितनी बीमार रही हो" पर फिर भी उसने नीता के बच्चों का ख्याल बहुत अच्छे से रखा। हालांकि वह अपने पोते पोतियो को तो कभी डांट भी देती थी लेकिन ------। यूं ही कुछ सोचते सोचते आंखों के आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।दोनों भाई सबसे छोटे थे और दूसरे भाई की शादी होने तक नीता के पापा भी इस दुनिया से विदा हो चुके थे। मां ने भाभियों को प्यार देने की पुरजोर कोशिश की और जब उन्हें लगा कि दोनों भाभियां साथ नहीं रह सकती तो एक भाभी को ऊपर शिफ्ट कर दिया और एक भाभी नीचे ही रह गई थी। क्योंकि नीता को रोजाना दफ्तर जाने से पहले बच्चों को छोड़ना और आने की बाद मां के घर से लाना पड़ता था। हर रोज मां से मिलने के कारण ऐसा लगता था कि वह मां की हर भावना को समझ पाती है। मां और उसके बीच में एक अटूटनीय बंधन था ,जो कि शब्दों का मोहताज नहीं था केवल एक दूसरे से मिलने पर ही वह दोनों एक दूसरे के मन का हाल जान जातीं थी।
दोनों भाभियों के बच्चे होने पर मां ने दोनों भाभियों का बहुत ख्याल रखा। मां सच में ही ममता का प्रतिरूप थी। नीता के बच्चे और सारे बच्चे मां के कमरे में धमाचौकड़ी मचाते रहते थे। दोपहर की नींद भाभियां भले ही अपने बच्चों को मां के पास छोड़कर फुर्सत से ले लें, लेकिन मा ने तो शायद कभी दोपहर को सो कर देखा ही नहीं ,और अब मां उठ भी नहीं पा रही।
पिछले 1 साल से चिकनगुनिया के बाद में मां बिस्तर से उठ ही नहीं पाई वही घर जिसको कि मां ने बचपन से अकेले ही संभाला था अब उसके ना संभालने की हालत में उस घर के सारे लोग भी मिलकर एक अकेली मां को नहीं संभाल पा रहे थे।
बच्चों का स्कूल था ,पढ़ाई थी, ऊपर रहने वाली भाभी तो मां के बिस्तर पकड़ते ही इतनी व्यस्त हो गई कि उसे तो अब नीचे आ कर मां का हाल पूछना भी काम लगने लगा। और सबसे छोटी भाभी जो मां के बीमार होने से पहले मां के साथ रहती थी, अब उसे ऐसा महसूस होने लगा कि वह मां को रख रही है। समय बदल चुका था। एक-एक दिन सबको भारी कट रहा था। मां ने अकेले ही हम सबको बड़ा किया था बाहर के, घर के सारे काम, यहां तक कि हम सब की शादियां भी उन्होंने अकेली ही संभाली । अब हम सब मिलकर एक अकेली उनको ही क्यों नहीं संभाल पा रहे थे? नीता बेचैन थी।
हालांकि मां ने कभी भी किसी को कुछ नहीं कहा लेकिन जैसे एक मां अपनी बेटी की आवाज दूर से भी फोन पर सुने तो वह पहचान सकती है कि उसकी बेटी परेशानी के किस दौर से गुजर रही है, तो ऐसा क्या बेटियों के साथ नहीं होता? जरूर होता है।सब बहनों ने भी जल्दी-जल्दी मां से मिलने आना शुरू करा, जितना बहने नजदीक आती रही उतना ही भाभियां दूर जाती रही।
भाभियां दूर इसलिए गई कि बेटियां नजदीक आ गई ,इससे उन्हें भावनात्मक रूप से अच्छा नहीं लगा या वह खुद ही छूटना चाह रही थी, इसलिए छूट गई। कुछ कह नहीं सकते। कारण कुछ भी हो लेकिन एक उम्र के बाद मां की सबसे अच्छी सहेली बेटी ही होती है इस बात में कोई शंका नहीं है। मीता का तो सहारा ही मां थी उसके तो चेहरे का रंग देखा नहीं जा रहा था।
वैसे दोष भाभियों को भी क्या देना और भाभियों में से भी सिर्फ छोटी भाभी को, उसके लिए भी मां का हालचाल पूछने वाले लोगों के आने के का कारण रसोई में काम बढ़ तो गया ही था। हालांकि बहने तो अक्सर ऊपर दूसरी भाभी के पास भी चली जाती थी और अपनी तरफ से यथासंभव कोशिश करती थी कि दूसरी भाभी भी मां के लिए कुछ करे। नीता भी पिछले 1 सप्ताह से वहां ही थी और आज एक बार सिर्फ अपना कुछ सामान लाने के लिए घर जा रही थी।
हर समय लड़ने वाली दोनों भाभी अभी बहुत प्यार से बातें करते हुए मां के जाने के बाद कैसे करेंगे, ऐसा प्रोग्राम बनाने में व्यस्त थी। मां के गहने मां का सामान और भी जाने क्या-क्या बातें करने में व्यस्त थी। वह यह नहीं जानती थी कि नीता को सब कुछ सुन रहा है। दोनों भाई भी कह रहे थे कि अपने दफ्तर की चाबियां साथ नहीं लेकर आएंगे क्योंकि जाने कब------? सच पूछो तो उसके बाद घर में रहना ही बहुत मुश्किल हो रहा था ।कपड़ों का तो बहाना था ऐसा लगता है नीता सिर्फ इसलिए ही आई थी कि वहां से कहीं और चली जाए।
मां की विदाई का ख्याल एक समय की अपनी विदाई से भी ज्यादा दुखदाई था। अपनी विदाई के समय दुख तो था पर पीछे मां तो है यही ख्याल ही हिम्मत देने के लिए काफी था। क्या मां चली जाएगी? अगला स्टॉप नीता का ही था। किसी तरह डबडबाई आंखों को पोंछकर वह उठ खड़ी हुई।
वह नहीं जानती कि अगले ही पल क्या होगा लेकिन-------मां ने सबके लिए सब कुछ करा और अब सब मां के लिए अब कुछ नहीं कर सकते क्या? मन में कुछ भीतर तक कचोट सा रहा था दूर कहीं गाना बज रहा था बिदाई की फिर घड़ी आई--------! नीता आंखों में आंसू लिए मेट्रो से उतर रही थी।
