विचार
विचार


दादाजी गठीले बदन के, सफ़ेद और काले रंग की खिचड़ी वाले बाल और दाढ़ी - मूँछ वाले व्यक्ति थे। वे बड़े ही रुआबदार, पुराने तौर -तरीके को मानानेवाले, संस्कारों के लिए जान देने तथा लेनेवालों में से एक थे।
दादाजी स्कूल के ट्रस्टी थे और अगले वर्ष रिटायरमेन्ट लेनेवाले थे।
दादाजी अपने स्कूल में पोती की खूब बढ़ाई करते, कोई तारीफ करता तो खुश हो कहते, "आखिर खानदान कौन - सा है।"
उन्ही की पोती थी सोनल जो थी केवल 16 साल की। पढ़ाई लिखाई में हमेशा अव्वल आती और अपने तौर तरीको से सबके दिल जीत लेती।
लेकिन दादाजी को यह सब किसी अर्थ का न लगता। उनको तो सोनल को चूल्हा-चौका में महारथ हासिल करवानी थी, जिसमें सोनल के हाथ थोड़े तंग थे। यूट्यूब देखकर कुछ व्यंजन तो वह बना लेती थी पर एक कुशल- गृहणी जो दादाजी बनाना चाहते थे, उसके लिए अभी वह बहुत कच्ची थी।
दादाजी हमेशा कहते लड़केवालों का पहला सवाल होता है.... " लड़की को खाना बनाने तो आता है न ?"
कंप्यूट क्या, पढ़ाई भी इसके पीछे हो जाती है।
यह सुन सोनल उदास तो हो जाती पर अगले दिन ही एक नया व्यंजन नेट से सीख दादाजी को खिलाती। इसपर दादाजी कहते "अपने साथ इसे ले जाना मत भूलियो नहीं तो बेइज्जती हो जावेगी समाज में। "
तभी कोरोना का कहर आ टूटा। दादाजी को स्कूल के काम के लिए ऑनलाइन काम करने की जरुरत पड़ने लगी। जिसके लिए कंप्यूटर चाहिए था , अब दादाजी को सोनल का सहारा लेना पड़ा और सोनल भी बड़े चाव से दादाजी को सीखा सीखकर उनकी मदद करने लगी। इससे दोनों में आपसी प्रेम ही नहीं बढ़ा बल्कि इस महामारी के कारण दादाजी का विचार ही बदल गया। वे अपने पूराने संस्कार को छोड़ नये तरीके से सोचकर आज दिल से बोले "हमें अपने विचार जमाने के साथ बदल देने चाहिए " और ठहाका मारकर हँसने लगे। ये हँसी बेफिक्री और गर्वयुक्त थी।