वह अनुठा हिस्सा
वह अनुठा हिस्सा


सबके बचपन भरे होते हैं दादी-नानी के कहानियों से।लेकिन मेरी और दादी का कुछ अलग ही अंदाज़ था, उनको मै अपने दिनभर की कहानी सुनाया करती थी। हाँ! बचपन से ही।और वह खामोश रह कर भी मेरे हर पहेली सुलझा देती थी। अब बात उस दिन की है जब मैं बहुत परेशान थी।मेरा रुह तक मायूस था।तपते दिमाग के अनबन में, शकुन पाने केलिये मै दौड़ती दादी के पास गई। उनके पल्लू का वह छोर उड कर मेरे हाथो मे आया था।अरे! वही पल्लू जिसे दादी ने ममता से पिरोया था।कुछ फरियादें मेरी उनके सामने जा कर रख दी।परेशानी यह था के, ना मुझसे घर वाले वह प्यार करते हैं , ना मुझको वह लाड करते हैं और ना ही मेरी नादानीयो को दादी जैसा स्वीकार करते। जाने क्यों उन्होंने बस मुझे निहार कर, एक दफा हंस मेरी और देखा। उनके दामन मे रोकर उनकी आखों की और देखा तो मानो वह मेरे आँखों का आइना सा था। एकदम कार्बन कापी! वह बडी़-बडी़ आखें, वह हरी साडी़, वह घने बालो का जुडा़ , वह चौड़ी मुस्कान, और वह अपनेपन का सिहरन, मानो हर किसी को अपने ममता के डोर से बाँध लें। मेरी बातें सुनकर मानो वह तस्वीर भी बोल पडा। तस्वीर?? हाँ! वही तो जरीया था हमारे बात करने का। क्यों हैरान हो? अरे हैरानी की बात नही है। कभी वह तस्वीर के आड से तो कभी तारो सी टिमटिमाती मेरी हर बात सुना करती हैं। उत्तर मिलने मै थोडा दैर जरूर होता है, मगर
जरुरत से पहले, मेरी पहेली वह जरूर सुलझा देती हैं। उस दिन मेरी शिकायत बडे भईया के मजाक को लेकर था। क्योंकि मै दादी के गोद में , उनके प्यार के स्पर्श मे कभी आई ही नहीं थी। मेरे जन्म से बारह ही दिन पहले वह हमेशा केलिए सितारों और तस्वीरों मे कैद हो गई। अब इस बात का दुख तो मुझे पहले ही था, और भाईया के बचकाने तानो ने उस कमी का पुनः अहसास कर वाया। और उस शोक और फरियाद के संग मे सो गई। सुबह नींद खुली तो माँ ने बताया के गाँव से दादी की बहन आ रही हैं। वह कमी मुझे अब भी खल रही थी। फिर भी मै तैयार हो गई। छोटी दादी ने आते ही उनकी नजर मुझपे टिक गई।मानो कोई खोया चिराग मिला हो। और पहला शब्द उन्होंने यह कहाँ केे "मानो दीदी से मुलाकात हो रही हो, वह बडी़-बडी़ आखें, वह घने बालो का जुडा़ , वह चौड़ी मुस्कान, और वह अपनेपन का सिहरन" और मुझे गले से लगा कर रो पडी़। उनकी ममता ने मेरे आँख भी भर दिए। शाम को तारों की तलाश मे , मैं छत्त पर टहल रही थी। पहले ही चमकते तारे को देख कर खयाल आया कितना सच्चा होता हे ना उनका प्यार , जो सिर्फ तस्वीरों और सितारों मे कैद न होकर थोडा बहुत हममे भी बस जाता हे। मानो उनकी परछाई हममे देखकर कोई उनके हिस्से का प्यार हमे दे जाए। कहा था न थोडी अनोखी है यह कहानी। के एक दूजे को न देखकर भी दादी और मै एक दुजे के कोई अनुठे हिस्से हों।