तुम्हारी कसम सब ऐसा ही होता।
तुम्हारी कसम सब ऐसा ही होता।
उस रोज उनके सवाल में मेरा जिक्र हुआ तो तुम खाली पन्ना ही देकर आ गए? अरे जवाब में हमें बुरा ही बता देते, तो शायद सुधरने का मौका ही मिल जाता।
वह मुस्कान तुम्हारी आज मेरा मजाक नहीं उड़ाती, और ना ही तेरे अल्फाज मेरे जिस्म से टकराकर कल के अखबार सा रद्दी हो जाते ।
और वह चित्र आँकने की बारी थी तुम्हारी, तब उस खाली दिल की जगह तुम हमें भी रच सकते थे। फिर वह लाल इश्क के ख़ातिर लाल लहू को तुम्हें बहाना ना होता। बस आँखों की नमी को आँखों पर तराशे गए प्रतिबिंब की रंगों से मिलाकर कर रंग देते मुझे! फिर तो मैं उस कागज़ के टुकड़े पर भी जीवित हो जाती। और देखो ना, आज इस हाड-मांस के शरीर में भी मृत हूं।
वह तपते आग के भट्टी से ईट लेकर तुमने घर.... नहीं मकान बनाया है ना? वह अपना आशियाना होता। बस उन सोफा चादर और पर्दों का रंग हमसे पूछ लेते! और हां! वह गमले के फूल??? "पीले वाले रखूं या लाल वाले" यह भी हमी से पूछ लेते।
निहायती खाली खाली सा है ना वह तिजोरी तुम्हारी? तुम्हारे खर्चे ने तो आफत ही मचा रखी होगी| दिली तमन्ना या ख्वाहिशों से एक साथ और मांग लेते तो शायद हमारे उन हाथों के बीच कुछ खर्चे बचत में ढल हो जाते।
खैर यह जमाना तो संगमरमर का दीवाना है। वह सफेदी की चमकान, वह चाहतों की ऊंचाई, वह मोटी रकम के बीच एक छोटी जीने की तमन्ना को ठुकरा जाता है। अब देखो हमारी दुनिया तुमसे ही थी और तुम हमें ठुकरा गए।
हां! एक बार अपना लेते तब भी सब ऐसा ही चलता जैसा आज चल रहा है। बस मेरी कशमकश तेरे चाहत और नफरत के बीच ना भटकती... और यह रातें सिगरेट की धुआं से निकलकर शराब के गिलास में तब्दील ना होते। वरना "तुम्हारी कसम" सब ऐसा ही होता।