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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Inspirational

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Inspirational

वैकल्पिक मदरहूड

वैकल्पिक मदरहूड

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मोना त्यागी,एक प्रसिद्ध न्यूज चैनल की प्राइम टाइम की लोकप्रिय और सफल एंकर है । बहुत सारे दर्शक तो मोना को देखने के लिए उसके प्रोग्राम को देखते थे।

उसके प्रोग्राम का नाम है "बदलाव" जो महिला शशक्तिकरण की पहचान बन चुकी है । यह कहना थोड़ा मुश्किल है कि इस प्रोग्राम के चलते मोना फेमस हुई या मोना के चलते यह प्रोग्राम।


मोना तीस साल की खूबसूरत ,सफल और कैरियर ओरिएंटेड अविवाहित महिला है। उसके आगे पीछे सूटेबल बैचलर चक्कर काटते रहते हैं । लेकिन उसने यह तय कर रखा है कि उसको पूरी जिंदगी अविवाहित ही रहना है और वुमन एम्पावरमेंट का सिंबल बनना है।


एक रोज सप्ताहांत में अपने घर पर रिलैक्स्ड मूड में थी । यों ही चैनल को सर्फ कर रही थी तो उसका ध्यान एक फ़िल्म पर अटक गई - "बेबी डे आउट" । वह बड़ी तन्मयता से फ़िल्म देखने लगी फ़िल्म देखते देखेते उसके नारी मन के किसी कोमल कोने में माँ बनने की चाह जग उठी । उसके अंदर की स्त्री मातृत्वबोध के लिए बेचैनी महसूस करने लगी । लेकिन उसके अंदर की शिक्षित एवं प्रगतिशील महिला शादी नहीं करने की जिद पर अड़ी थी।

अब वह मातृत्वपन के लिए इतनी आतुर थी कि वह यह सोंचने लगी कि क्या कोई ऐसा नैतिक तरीका है जिससे बिना किसी की पत्नी बने माँ बना जा सके । वह शादी नही करने के मामले में तो एकदम स्पष्ट थी। लेकिन अपने बच्चे की माँ बनने की चाह उस पर हावी हो रही थी। वह शादी सुदा नहीं थी लेकिन कवांरी भी नहीं थी। सेक्स को वह एक शारीरिक जरूरत समझती है और उसके लिए शादी के बंधन में बंधना कोई जरूरी नहीं है। बाजार में जब दूध उपलब्ध है तो खूंटे पर गाय पालने की क्या जरूरत है।

लेकिन वह अपने किसी भी सेक्स पार्टनर के बच्चे की माँ नहीं बनाना चाहती थी । क्योंकि मीडिया से जुड़े होने के चलते कभी भी कोई परेशानी खड़ा कर सकता है और इस बात का नजायज फायदा उठा सकता है।


विकल्पों के तलाश में वह कृत्रिम गर्भधारण के विकल्प पर विचार करने लगी। चुकी वह सफल और सवतंत्र थी। वह किसी भी पसंदीदा विकल्प को अपना सकती है। अगले रोज वह एक नामचीन फर्टिलिटी सेंटर पर गयी । वहाँ के सफलतम डॉक्टर सुधा गोयल से वह मिली ।सुधा जी अपने काम मे दक्ष थीं साथ ही साथ अपने कस्टमरस के भावनात्मक पहलू को भी वह अच्छे ढंग से हैंडल करती थी ।

उनके पास जो भी आता था उसको बच्चा चाहिए लेकिन उसे प्राकृतिक रूप में प्राप्त करने में उसको कोई न कोई समस्या है। यह समस्या कभी मेडिकल रीज़न से होती थी , कभी बच्चे का इंतजार करते उम्र की समस्या, कभी व्यस्तता या कैरियर के चकर में फर्टिलिटी पीरियड को नजर अंदाज करने वाले कपल , कभी फिगर कांशियस औरत जो माँ तो बनना चाहती है लेकिन उसके लिए अपना फिगर नहीं बिगड़ना चाहती है और कुछ मोना जैसी भी चली आती हैं जो अपने बच्चे की माँ तो बनना चाहती है लेकिन शादी नहीं करना चाहती।

डॉक्टर सुधा ने उसको सभी उपलब्ध विकल्पों की जानकारी दी जो मेडिकली संभव है। आप अपना अंडा किसी और औरत के गर्भ में डालकर भी माँ बन सकती हैं । किसी स्पर्म बैंक से स्पर्म लेकर स्वयं गर्भधारण कर सकती हैं। पहले विकल्प में आपको सिर्फ मानसिक संतुष्टि रहेगी की यह अपनी संतान है लेकिन "लेबर पेन" की अनुभूति से आप बंचित रह जावोगी जो माँ को

उसकी संतान से अलौकिक लगाव पैदा करता है । इसीलिए कहा जाता है जनने का दर्द ही औरत को जननी बनाता है। 

मोना ने कहा डॉक्टर मैं अपने बच्चे को खुद जन्म देना चाहती हूँ । मैं उसके गर्भावस्था काल को भी महसूस करना चाहती हूँ । मैं पूर्ण माँ बनना चाहती हूँ । मैं केवल यह चाहती हूँ कि वह बच्चा सिर्फ मेरा हो कोई दूसरा उसपर हक जताने वाला नहीं हो।


सुधा - ओके, फिर तुम जब माँ बनने के लिए तैयार हो बोल देना । तुम्हारा एक फर्टिलिटी स्टेटस रिपोर्ट निकालकर तुम्हारे मेंसेज साईकल के हिसाब से जो प्रकिरिया होता है पूरा कर देंगे । फिर तुम माँ बन जावोगी । यह तो बहुत ही आसान काम है। स्पर्म डालने का दो तीन तरीका है जो भी तुमको सूटेबल होगा वह कर देंगे।


मोना - "स्पर्म डालने का क्या- क्या विकल्प है?"

सुधा - "आई यू आई, आई सी आई और आई वी एफ कोई भी चलेगा क्योंकि मेरे हिसाब से तुम एक स्वस्थ और फर्टाइल ऐज ग्रुप में हो।"


मोना -" क्या मैं यह जान सकती हूँ कि किसका स्पर्म डाला जाएगा ?"


सुधा - "स्पर्म तो स्पर्म बैंक से ही लेना पड़ेगा । लेकिन स्पर्म डोनर की आइडेंटिटी डिस्क्लोज़ नहीं की जाती है। हाँ रेसिपीएन्ट को यह चॉइस होती है कि वह किस प्रकार के डोनर का स्पर्म लेना चाहता है जैसे डॉक्टर, इंजीनियर ,आर्टिस्ट ,एथलिट आदि । सबका अलग अलग रेट है ।"


मोना - "क्या कोई ऐसा तरीका है कि मैं यह जान सकूँ की जिसका स्पर्म मुझे दिया जाएगा उसका प्रोफाइल क्या है और मैं उससे मिल सकूँ ?"


सुधा -" यह थोड़ा कठिन है । यह एथिकल भी नहीं है और इससे भविष्य में प्रॉब्लम भी हो सकता है । तुमको मैं कुछ ऑथेंटिक स्पर्म बैंक का एड्रेस दे सकती हूँ । तुम तो वैसे भी मीडिया से हो अपने स्तर से अगर कुछ जानकारी जुटा सको तो अलग बात है । हाँ स्पर्म पी जी डी जरूरी है ताकि जो संतान पैदा हो उसमे जेनेटिक डिसऑर्डर नहीं होना चाहिए । इसीलिए ऑथेंटिक और सर्टिफाइड स्पर्म बैंक से ही स्पर्म लेना उपयुक्त होता है।"


मोना ने अब तय कर लिया कि वो कृत्रिम गर्भधारण करके माँ बनेगी । उसने नेट से बहुत सारे स्पर्म बैंक को सर्च किया लेकिन कोई भी डोनर का आइडेंटिटी डिस्क्लोज़ करने को तैयार नहीं था । फिर उसने अपने मीडिया लिंक का रसूख का प्रयोग करके एक स्पर्म डोनर से मिली । वह पच्चीस साल का एक हैंडसम IIT बॉम्बे का फाइनल ईयर का स्टूडेंट था । वह उसके स्पर्म को लेकर प्रेग्नेंट हो गयी। उसकी प्रेगनेंसी और डिलीवरी डॉक्टर सुधा की निगरानी में एकदम नार्मल तरीके से हुआ। उसने एक स्वस्थ बच्चा को जन्म दिया । मोना ने जैसा सोंचा था वैसे ही एक पूर्ण माँ बन गयी। इस मातृत्व सुख ने उसमे एक अलग तरह बदलाव लाया । वह खुशहाल मदरहूड का आनद उठाने लगी । उसकी यह धारणा और बलवती हो गयी कि माँ बनने के लिए शादी के बंधन में बंधना जरूरी नहीं है। जब उसका बेटा तीन साल का हुआ तो उसको फिर से एक बार माँ बनने की इक्षा हुई ।

इस बार भी वह उसी डोनर की तलाश करने लगी। उस डोनर का असली नाम सुशांत गर्ग था । लेकिन अब उसने स्पर्म डोनेशन बंद कर दिया था । उसका डोनर प्रोफाइल नाम किटू था । अब वह किसी भी स्पर्म बैंक से जुड़ा हुआ नहीं था । लेकिन वह बहुत कोशिश करके उसको ढूंढने में सफल हो गयी। अब वह शादी करके अपना घर बसा चुका था । वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था । उसकी खूबसूरत बीबी और पांच महीने का बेटा भी था । उसकी बीबी और उसके परिवार के किसी सदस्य को नहीं मालूम था वह कभी स्पर्म डोनर भी था।


उसने मोना के आग्रह को मनाने से साफ इंकार कर दिया । मोना को बहुत निराशा हुई । उसने दुबारा माँ बनने की चाह को तो विराम दे दिया लेकिन उसने दिमाग मे समाज आए इस बदलाव को दुनिया के सामने रखने का मन बनाया ।


प्रोग्राम के लिए उसने इस विषय पर जब शोध करना शुरू किया तो कई चौकाने वाले तथ्य उनके संज्ञान में आए। उसने कृत्रिम गर्भाधान के इतिहास और क्रमिक विकास को अपने प्रोग्राम बदलाव में दिखाने का निर्णय किया । उसने कई औरतों और इस प्रक्रिया से पैदा हुए बच्चों का इंटरव्यू भी किया। उसने इसके सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू का भी अध्ययन किया।


इसी शोध के सिलसिले में उसको पता चला कि पहला कृत्रिम गर्भाधान फिलाडेल्फिया में डॉक्टर पनकास्ट ने कराया था। उसका एक व्यापारी मित्र था जो मेडिकल प्रॉब्लम के चलते बाप नहीं बन सकता था । फिर उसने अपने मित्र को आर्टिफीसियल तरीका अपनाने की सलाह दी। वह मान गया लेकिन उसकी पत्नी इसके लिए कभी तैयार नहीं होती । अतः उसको क्लोरोफॉर्म सुंघाकर उसके अंदर डॉक्टर ने अपने एक स्टूडेंट का स्पर्म इंजेक्ट कर दिया। वह प्रेग्नेंट हो गयी और स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। उस व्यापारी ने डॉक्टर से आग्रह किया कि इस बात को गुप्त रखा जाए नही तो उसकी बदनामी होगी और उसकी पत्नी यह सदमा नहीं झेल पाएगी। डॉक्टर ने अपना वादा निभाया । लेकिन 1909 में मेडिकल वर्ल्ड में यह रिपोर्ट प्रकाशित हो गयी क्योंकि यह उस समय की मेडिकल की दुनिया की बहुत बड़ी उपलब्धी थी।


धीरे-धीरे अलग अलग देशों में संतान के इक्षुक दंपतियों पर डॉक्टर ने इसका प्रयोग शुरू कर दिया । इसकी नैतिकता पर बहस छिड़ गई। इटली के पॉप ने इसको अधार्मिक और पाप घोषित कर दिया । फिर भी लुका छिपा यह सिलसिला चलता रहा । 1945 में जब डॉक्टर मैरी बार्टन का लेख ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपा तो पूरी दुनिया मे तहलका मच गया। उन्होंने दावा किया उन्होंने अभीतक 1500 बच्चों का जन्म इस तरीके से कराया है । जिसमे से 600 बच्चों के जैविक पिता उनके पति हैं। बाकी बच्चों के पिता उसके माले स्टाफ हैं। अमेरिका में कुक काउंटी कोर्ट ने एक फैसला में इस तरह के संतान को मात्र मदर चाइल्ड घोषित किया और पति को उसपर कोई अधिकार नहीं होगा।

1953 में फ्रोजन स्पर्म के प्रयोग की तकनीक विकसित हो गयी । फिर समाज के एचीवर और हाई क्वालिटी के स्पर्म की उपलब्धता सुगम हो गयी। इस प्रकिया को न्यायीक मान्यता पहली बार 1955 मे जॉर्जिया में मिली। वैश्विक पटल पर इस वैकल्पिक मातृत्व को मान्यता अमेरिका के यूनिफार्म पैरेंटेज एक्ट 1973 से मिला।

मेडिकल साइंस के विकास और समाज के सोंच में आ रहे बदलाव के चलते धिरे धीरे यह पूरी दुनिया मे फैलता चला गया। महिला शशक्तिकरण और महिला स्वतंत्रता के विचारों ने आधुनिकतावादी लोगों में इसको काफी लोकप्रिय बना दिया।

अमेरिका जेंडर इक्वलिटी, लेस्बियन एक्ट और गे एक्ट ने इसको समाज के जरूरत में तब्दील कर दिया। समाज मे शादी की व्यवस्था शारीरिक जरूरत के साथ-साथ वंश परम्परा को आगे बढ़ने की संस्थागत व्यवस्था है । लेकिन लेस्बियन , गे और हेट्रोसेक्सयूएल अपनी वंश परंपरा को नैतिक तरीके से आगे कैसे बढ़ा सकते हैं ।

समाज ने जब उनको अपना हिस्सा स्वीकार कर लिया तो उनको वैकल्पिक पैरेंट बनने की भी अनुमति देनी ही पड़ेगी । यह बदलते समाज की बदलती नैतिकता का बदलता पैमाना है।

इतना सब जानकारी जुटाने के बाद मोना के मन मे यह विचार आया कि वह जाने की किटू के स्पर्म से कितने बच्चों का जन्म हुआ है । यह काम आसान नहीं था । लेकिन मीडिया का बैकग्राउंड होने के चलते उसने संबंधित स्पर्म बैंक और अटैच्ड फर्टिलिटी हॉस्पिटल से पता किया तो यह मालूम हुआ कि अबतक देश- विदेश मिलाकर वह 172 बच्चों का जैविक बाप बन चुका है।

अब उसको यह डर सताने लगा कि बडा होकर उसके किटू की शादी कहीं सगी जैविक बहन से ना हो जाए। फिर जेनेटिक डिसऑर्डर का खतरा समाज मे बढ़ता जाएगा। अपने प्रोग्राम में उसने समाज को वैकल्पिक मातृत्व के खतरे से आगाह किया ।परेशानियां पता पूछकर थोड़ी आती हैं।



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