वैदेही भाग 2
वैदेही भाग 2
आज अचानक वैदेही को उल्टियांँ शुरू हो गई ...थोड़ी कमजोरी महसूस होने के साथ-साथ चक्कर भी आ रहे थे..।डॉक्टर से चेकअप कराने के बाद पता चला घर में खुशखबरी आने वाली है.. उसने यह बात अपनी सासू मां को बताई..।इस पर शशि बहुत खुश हो गई ..। नए मेहमान के आने की खुशी में फूली नहीं समा रही थी...।शशि ने अपने मायके व सभी सहेलियों को फोन करके यह खबर दी ..कि मैं तो दादी बनने वाली हूंँ.. । मेरे घर में एक नन्हा मेहमान आने वाला है और वह इस खुशी में झूम रही थी..।इस पर सभी ने बधाई देते हुए कहा... चलो अच्छा है ईश्वर करे बेटा ही हो...।
"हांँ हांँ.. बेटा ही होगा" ...इस पर शशि ने जवाब दिया...
इस पर एक सहेली ने तपाक से कहा..."कहीं बेटी हो गई तो तेरे सारे सपने धरे रह जाएंँगे ..."
"जितना तू खुश हो रही है ..तेरी खुशी दुख में बदल जाएगी पहला तो बेटा ही होना चाहिए...।"
यह बात कही न कही शशि के मन में घर कर गई...कहीं यदि सही में बेटी हो गई वैदेही को... तो वह या खुशी किसके सामने जाहिर करेगी और उसे हर हाल में वैदेही से बेटा ही चाहिए था ...।इस बात को लेकर वह खिन्न रहने लगी थी...।अब वह पहले की तरह बैदेही से व्यवहार नहीं करती थी ..।ना ही वह वैदेही से हंँसती बोलती थी...।इस पर वैदेही को कुछ समझ में नहीं आ रहा था...। वह मन ही मन सोच रही थी.. कि अचानक सासू मांँ को क्या हो गया ...!!!
क्यों इस तरह व्यवहार बदल गया ..उससे क्या गलती हो गई...क्योंकि वैदेही को शशि के दिल में क्या चल रहा है...उसे कोई खबर नहीं थी और अपनी सासू मांँ की मानसिकता को भी नहीं पहचान पाई थी...।
एक दिन उसने सोचा आज मैं सासू मां से बात करूंँगी..और वह जाकर सासू मांँ के पास बड़े ही प्यार से बैठ गई.. और पूछने लगी... "मम्मी क्या हुआ है ..??आजकल तुम क्यों बदली बदली सी क्यों हो..!मुझसे कोई गलती हो गई है ...जो भी हो मुझे बताओ.....मैं अपने में सुधार कर लूंँगी..."
इस पर शशि कुछ ना बोली और मुंँह बनाकर वहांँ से चली गई...वैदेही की समझ में कुछ नहीं आ रहा था...और वह अपने काम में लग गई..। लेकिन अंदर ही अंदर वैदेही परेशान सी रहने लगी ...आखिर कौन सी ऐसी बात हो गई... जिससे उसकी सासू मांँ का स्वभाव इस तरह से बदल गया...।
एक दिन अचानक शशि अपने मायके में फोन से बात कर रही थी.. जिसको वैदेही ने सुन लिया...अब उसकी समझ में धीरे-धीरे आ रहा था कि उसकी मांँ के व्यवहार बदलने का कारण क्या है....और उसने अपने मन में ठान ली कि वह अपनी सासू माँ की मानसिकता को बदल कर रहेगी...शाम की दो कप चाय के साथ अपनी सासू मांँ के साथ बैठी और धीरे-धीरे बात करनी शुरू कर दी..
"मम्मी यह बताओ तुम कौन हो.."
इस पर शशि कुछ समझ ना पाई..और अवाक सी होकर वैदेही की ओर देखने लगी...इस पर शशि ने फिर पूछा..
"बताइए मम्मी आप कौन हैं.."
तो इस पर शशि झल्लाते हुए बोली.." इंसान हूंँ... और कौन हूंँ...."
इस पर वैदेही ने कहा नहीं .."आपको यह नहीं पता कि आप कौन हैं....आप ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति हैं यदि आप न होती तो संसार न चलता ..तीन कुलों की रक्षा कौन करता ...!!!आप ईश्वर की बनाई हुई अद्भुत उत्कृष्ट रचना नारी हैं..यदि धरती पर नारी ना होती...तो ममता करुणा दया यह भावनाएं संवेदनाएं ना होती...हर घर मकान बन कर रह जाता ....जब नारी की आत्मा घर में बसती है तो वह घर स्वर्ग से सुंदर होता है..। स्त्री से ही घर होता है..।
इसलिए बेटी का जन्म लेना कोई अपशगुन नहीं है ....।यह लक्ष्मी के रूप में वरदान है.. और आज के युग में मम्मी... बेटा बेटी सब बराबर हैं ...। किसी में कोई भेदभाव नहीं है ..। यदि बेटा घर का गौरव है तो बेटी भी तीन कुलों की शान है... गौरव अभिमान है...।हम सब बेटियांँ ही तो हैं..। हम सब अपने घरों से आकर दूसरे के घर में बहू बनकर आए हैं और उस घर को सजा संवार कर उसे और सुंदर बनाते हैं.. इसलिए आप यह बिल्कुल न सोचें की बेटी होने पर कोई दुख आ जाएगा...।"
वैदेही की इन बातों से शशि की मानसिकता अब बदल रही थी... जिन लोगों ने उसे बेटी के जन्म को लेकर नकारात्मक नजरिया प्रदान किया था ..आज वैदेही की उन्हीं बातों से वह सकारात्मकता की ओर जा रही थी ..अब उसके मन पर कोई बोझ नहीं था ...। कोई दुख नहीं था और वह बेटा बेटी में कोई अंतर न समझते हुए नए मेहमान का आने की स्वागत में जुट गई...।
क्रमश: भाग 2 ( समाप्त )
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को यह कहानी समर्पित