वार्ड नंबर 19
वार्ड नंबर 19
दर्द का दर्द से गहरा रिश्ता होता है"
शिवानी ने डॉ। आभास को बोलते हुए सुना तो उससे रहा नहीं गया और वो बोल पड़ी।
"जी, डॉक्टर आभास ! मैं पिछली तीन रातों से देख रही हूँ, ज्यों ही वार्ड नंबर 19 की पेशेंट दर्द से कराहती हैँ, ये नन्हीं बच्ची नींद में चिंहुक उठती है। क्या इतने छोटे से शिशु को भी होता है दर्द का ऐसा एहसास?"
डॉक्टर शिवानी ने अपने ज़ेहन में उठते सवालों को सामने लाकर रख ही दिया।
"लगता तो ऐसा ही है , और डॉक्टर शिवानी, प्लीज उस महिला को वार्ड नंबर 19 की पेशेंट ना कहें। उनका नाम छाया है। "
"ओह सॉरी, डॉक्टर! लगता है काफ़ी लगाव हो गया है उस छाया मैडम से " डॉ। शिवानी ने चटकी ली तो बजाए नाराज़ होने के डॉक्टर आभास के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। जिसे सबने नोटिस किया पर कुछ कहा नहीं।
सिर्फ जूनियर इंटर्न रावी से नहीं रहा गया तो उसने डॉ। आभास को पूछ ही लिया कि उनको भला उस पेशेंट छाया से इतना क्या लगाव हो गया है। इतने तो पेशेंट आते हैँ, चले जाते हैँ। इस महिला के लिए डॉक्टर इतने संवेदनशील क्यूँ ?
तब जवाब देते हुए डॉ। आभास की आँखों में आँसू भर आए। खुद को किसी तरह सँभालते हुए बस इतना ही कह पाए कि , तीन साल पहले उनकी बड़ी बहन ने कॉम्प्लिकेटेड डिलीवरी के बाद जब अपना बच्चा खो दिया था तब उनकी हालत भी पागलों जैसी हो गई थी। इसलिए वो छाया का दर्द महसूस कर पा रहें हैँ।
"आखिर दर्द की अपनी एक जुबां होती है और दर्द आपस में जोड़ता भी तो है। बहुत गहरे दिलों को एक तार में पिरो देता है दर्द। "
अब उनको किसी और रिश्ते के लिए चिढ़ाते हुए शिवानी की जुबान को जैसे ताला लग गया।
इतने में सभी डॉक्टर्स का ये सिर्फ पंद्रह मिनट का टी। ब्रेक खत्म हो गया और सब अपने अपने वार्ड की ड्यूटी सँभालने चल दिए।
दरअसल वार्ड नंबर 19 की पेशेंट छाया की प्रीमैच्योर डिलीवरी थी, और सीढ़ियों से फिसल जाने की वजह से ब्लीडिंग शुरू हो गई थी। हॉस्पिटल लाते लाते काफ़ी देर हो गई इसलिए बच्चे को बहुत कोशिशों के बाद भी बचाया नहीं जा सका।
हालाँकि छाया दर्द से इतनी विक्षिप्त हो चुकी थी कि
उसे दर्द में कुछ होश नहीं था। उसकी नाजुक स्थिति को देखते हुए डॉक्टर और घरवालों के मशवरे से उसे फिलहाल नहीं बताया गया था कि उसका बच्चा दुनियाँ में आने से पहले ही दम तोड़ चुका था।
छाया जब भी बच्चे के लिए पूछती उसे यही बताया जाता कि चूँकि बच्चे का ज़न्म आठवें महीने में ही हो गया था इसलिए वो कमज़ोर है और उसे इक्यूबेटर में अलग रखा गया है। छाया को और उत्सुकता हुई तो उसने पूछ लिया कि बेटा है या बेटी। तो किसी के मुँह से तत्काल निकला " बेटी"
बस फिर क्या था, छाया आश्वासत हो गई और संतोष की साँस लेकर सो गई।
इधर सबा के घरवालों का अब तक रोते रोते बुरा हाल था। अब उसकी बिन माँ की दूधमूँही बच्ची को कौन संभालेगा। उसकी डिलीवरी तो ठीक से हो गई थी पर विधाता का ऐसा खेल कि, ऑपरेशन के दूसरे दिन ही वो असावधानीवश बाथरूम में फिसल गई। टांको पर जोर पड़ा तो कच्चे टांको से खून रिसने लगा। इसके अलावा गिरने की वजह से सर पर जो चोट लगी थी उससे भी बहुत खून बह चुका था। जबतक बेहोश सबा को नर्स वगैरह उठाकर लाए तब तक काफ़ी सारा रक्त बह चुका था,लिहाज़ा वो नहीं बच पाई। ये उसकी दूसरी डिलीवरी थी। वो और आदिल कितने खुश थे। एक बेटा अशरफ और बेटी का नाम उन्होंने शायमा सोच रखा था, बस "हम दो हमारे दो " का नारा लगा खुश होते। पर अब सबा के यूँ अचानक साथ छोड़ देने की वजह से आदिल भी एकदम बदहवास हो गया था।
दोनों परिवार अलग अलग दुखी थे। छाया के पति सुरेश और ससुराल और मायकेवाले सब दुखी थे। और किसीको मौजुदा स्थिति में कुछ संमझ नहीं आ रहा था।
तभी डॉक्टर्स ने ये राय दी कि छाया को दूध की अधिकता से भी दर्द होनें लगा है, पंप से निकाल तो रहें हैँ पर उधर एक दूधमूँही बच्ची दूध को तरस रही है। डॉक्टर्स और परिवार के सौजन्य से बच्ची को छाया की गोद में डाल दिया गया और तय किया गया कि जब तक छाया की तबियत संभल नहीं जाती तबतक उसे उसके बच्चे के खोने की बात उसे ना बताई जाए। शनै शनै जब वो स्वस्थ हो जाएगी तब उसे वस्तुस्थिति से अवगत कराया जायेगा।
छाया ने जब नन्हीं सी सुकोमल बच्ची को पयपान कराया तो उसके चेहरे पर मातृत्व की आभा दमक रही थी और वो छोटी सी परी भर पेट दूध और माँ की गोद जो संसार की सबसे सुरक्षित जगह है, वहाँ सुकूँ से सो रही थी। कल को हकीकत जानकर चाहे छाया और परिवार वाले जो भी निर्णय लें। आज का सच तो यही था कि दर्द ने दर्द को जोड़कर एक रिश्ता पूरा कर दिया था।
ये सच है कि दर्द जोड़ता है हमेशा से।