वामा

वामा

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"आज तो इसकी सारी फरमाइशें पूरी कर दूंगा",सोती हुई पत्नी के चेहरे पर स्नेहिल दृष्टि डालते हुए जैसे उसने स्वयं को याद दिलाया।

सोती हुई स्त्री के चेहरे पर बीते दिन की उदासी अब भी दिख रही थी। पलकें घण्टों रोते रहने से अब भी सूजी हुई थीं। आंसुओं के साथ बह गए काजल ने गाल पर धब्बे छोड़ दिए थे। सोई हुई पत्नी उसे बहुत सुंदर लग रही थी। जाने कितने दिन बाद उसका चेहरा इतने गौर से देखा था। वो और भी निहारता पर उसने कुलबुलाकर सिर थोड़ा और घुमा लिया और बिना आँख खोले फिर सो गई।

"कौन कहेगा ये दो बच्चों की मां है, खुद भी बच्ची लग रही हैं, वैसे बच्चों से कम भी नही है।" पति उठकर बैठ गया और अपना तकिया गोद में रख पत्नी को देखता रहा। सुबह की सुनहरी धूप पर्दे से छनकर उसके बालों को सोने सी चमक दे रही थी।

"कितनी ज़िद्दी हो तुम!" होठों में ही बुदबुदाता पति मुस्कुरा उठा।

"वैसे गलती मेरी ही थी, अगर नहीं आ सका था तो फोन करके ही बता देता, बेचारी मेरे इंतज़ार में तो न बैठी रहती। पर मुझे भी कहाँ पता था कि काम में ऐसे उलझ जाऊँगा।" पति के चेहरे पर लाचारी तैर गई।

"गुस्सैल कहीं की! खाना भी नही खाया रात को। आज प्यार से मना लूंगा इसे, अभी जागते ही चाय पिलाता हूँ अपने हाथ से बना कर,आज नाश्ता भी खुद ही बनाऊंगा। ये भी तो यही चाहती है कि कभी-कभी इसके साथ वक्त बिताऊँ तभी तो कल बच्चों को भी उनकी नानी के घर भेज दिया था।" पति के मन में विचारों के सैलाब उठ रहे थे।

"रोज़ तो मुझसे पहले उठ जाती है आज अब तक सो रही है? तबियत ठीक तो है इसकी?" पत्नी के लिए मन में चिंता भर आई।

माथा छूकर देखना चाहा तो वह जाग गई।

"अरे, आप उठ गए, पता नहीं कैसे आँख नही खुली मेरी।आपने जगाया क्यों नहीं?" बाल समेटती पत्नी ने हड़बड़ाते हुए पूछा।

"तू कल रूठ गई थी ना..."

"अरे, बस आ गया था गुस्सा मैं भी आपकी परेशानी समझती हूँ।" पत्नी मुस्कुराने लगी थी।

पति ने पत्नी का हाथ थाम लिया था।

"चाय बना लाती हूँ।" पत्नी ने हाथ थपथपाते हुए कहा।

तभी पति का फोन बजा, दफ्तर से था।

"तुम चाय बनाओ, मैं नहा लेता हूँ तब तक, आज ऑफिस जल्दी पहुंचना है।"

पत्नी ने मुस्कुराकर सिर हिला कर हामी भरी। अब पति कुछ उदास था।


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