वादा
वादा
शाम का वक्त। बारिश का मौसम, टिप टिप बारिश के साथ हलका हलका पवन। आसमान में पंछियों के घर लौटने की खुशी का शोर। और घर के बालकनी में बैठे 'smruti' अपनी गरम चाय के साथ पकोड़े के मजा ले रही थी। और हाथों में एक खत। उसके चेहरे पे तो हँसी थी, पर आंखों में जैसे ग़म के बादल छा गए थे। खत था उसके नौकरी का, पायलट बन के भर्ती होने का खत। उसके बचपन का सपना सच होते देख रही थी वह। पर उसके आंखों में छाया बादल कुछ और ही कह रहे थे। वह कुछ खुद से ही बात कर रही थी। "मैंने तो अपना दिया हुआ वादा रख लिया। मैंने तो हमारे सपने को सच किया, उस सपने को जिया। पर पापा आपने आपका वादा तोड़ दिया। आप ने कहा था हमेशा साथ रहोगे मेरे, पर आधे रास्ते पर ही हाथ छोड़ दिया। " कुछ दूर पड़ी टेबल पर, मैं, उसकी डायरी सब जानती थी, उसकी सारे दुख को छुपा लेती थी, उसकी हर दर्द को बांट लेती थी। पर मैं कभी उसे उसके आँसू नहीं पोछ पाती थी। दोस्त हूं उसकी पर कभी उसे गले से लगा नहीं पाती थी। उसके हर दर्द की खबर थी मुझे फिर भी में कुछ कर नहीं पाती थी।