Suvasmita Panda

Fantasy

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Suvasmita Panda

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आंख लगते ही

आंख लगते ही

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 आंख लगते ही, जैसे एक जादू सा छा गया। जैसे धरती छोड़ के किसी कहानियों की दुनिया में आ गई थी में। न कोई दुःख, न कोई गिला शिकवा। जैसे अपनी पंख खोल के उसकी खुली आसमान में उड़ रही थी में।

न गिरने की चिंता, न ही दर्द का एहसास। लग रहा था जैसे आंंखें बंद है, मगर सब देख रही हूं, महसूस कर रही हूं, खुद में ही मुस्कुरा रही हूं। एक आवाज आयी- वह वापस आ गए, उनकी धड़कन फिर से चल रही है। हम कामयाब हो गए।

आंखें बंद थे मगर जैसे बिन कहे आँँसू निकल गए। खुद को पूछने लगी थी, कहां गई थी मैं ? क्या फिर से संभाल पाऊंगी खुद को ये अनजानों के बीच, क्या खश रह पाऊंगी फिर से उन पराए बने अपनों के बीच, क्या फिर से हंंस पाऊंगी में उन फरेबीपन के बीच।फंस गई थी जैसे उनके कामयाब और मेरे हार के बीच।


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