Suvasmita Panda

Children Stories

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शतरंज की बिसात

शतरंज की बिसात

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बेटा (७ साल का) - पापा ! आप हमेशा हार जाते हो, इतने बड़े हो गए हो लेकिन खेलना नहीं आता।

बेटी (११ साल की) - बुद्धु। वह तुझ से जान बूझ कर हारते है।

पापा - नहीं मैं जान बूझ कर क्यूँ हारुंगा ?

बेटा खुशी से दौड़े दौड़े अपने मां को अपनी जीत बताने चला।

बेटी - पापा ! आप जान बुझ कर हमेशा उसे जीतने देते हो।

पापा - हारना क्या? उसके जीत की मुस्कुराहट मुझे जीता देता है। मुझे भी बचपन में लगता था में पापा से जीत रहा हूं। पर अभी पता चल रहा है मेरा जीत उन्हें जीता देता था। उस शतरंज की बिसात मुझे बता गया जीतने हारने से ज़्यादा मायने रखता है खुशी। खुशी अपनों की, खुशी और किसी की जीत की, खुशी अपनों से अपनी हार की।


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