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Ragini Ajay Pathak

Drama Action

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Ragini Ajay Pathak

Drama Action

उतरन

उतरन

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सौम्या! "बेटा ये लो गरबा ड्रेस" रमा ने अपनी आठ साल की बेटी से कहा।

ड्रेस को देखते सौम्या उदास होकर रमा की तरफ देखने लगी और कहा "लेकिन माँ ये ड्रेस क्यों मुझे तो दूसरी चाहिए थी।"

रमा ने प्यार से सौम्या से कहा, "लेकिन बेटा ये भी तो अच्छा ही है और अभी तो आपको स्कूल फंक्शन के लिए सिर्फ चाहिए।"

सौम्या ने ड्रेस मन मारकर पहन ली। और जैसे ही तैयार होकर सौम्या बाहर आयी। उसको उसके चाचा राजू ने चिढ़ाते हुए कहा,"फिर से पहन ली अपनी दीदी की ड्रेस, ओफ़फो बेचारी सौम्या, देखा इसीलिए कहता हूँ कि भाभी तेरी मां नहींं वो तो तेरी दीदी खुशी की सिर्फ माँ है तभी तो उसको नए कपड़े और तुम्हें उसकी उतरन मिलती है।"

इतने में उसकी बुआ निशा भी बोल पड़ी," हम्म! तुझे तो एक औरत ने दिया था उठाकर भाभी को कचड़े के पास से।" कहते हुए निशा और राजू दोनों साथ मिलकर हँसने लगे।

रमा ने दोनों की बातें सुनकर उनको टोकते हुए कहा "राजू, निशा ये क्या कह रहे हो तुम लोग सौम्या से।"

"कुछ नहीं भाभी हम तो बस ऐसे ही मजाक कर रहे थे" दोनों ने एक सुर में कहा।

"लेकिन ये मजाक मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं, तुम दोनों बड़े हो, सौम्या अभी छोटी है कितनी बार कह चुकी हूं कि ऐसी बातें बच्चों से नहीं करते" रमा ने नाराजगी भरें लहजे में अपने गुस्से को दबाते हुए कहा।

तब तक पूरा घर इकट्ठा हो गया।" रमा तुम भी क्या इन लोगों के बीच मे बोलने लगती हो।" रमा के पति अमर ने कहा।

लेकिन अमर

"लेक़िन वेकिन कुछ नहीं बहू ये कोई तरीका होता है देवर और ननद से बात करने का" दादी सास ने रमा की बात को काटते हुए कहा।

सौम्या और खुशी सबकी बहस होते देख वहाँ से जाने लगी तो अमर ने कहा" चलो तुम दोनों को मैं छोड़ देता हूं स्कूल।"

"अरे भैया आप क्यों परेशान होंगे मैं छोड़ दूंगा इन दोनों को स्कूल" राजू ने मुस्कुराते हुए कहा।

इधर रमा ना चाहते हुए भी मनमसोस कर रह जाती। उसे सौम्या के चेहरे की उदासी अब समझ मे आने लगी थी कि अब ये मजाक उसके दिल पर चोट करता है। लेकिन किसको समझाए, क्योंकि कोई भी बात को गम्भीरता से लेने के लिए तैयार ही नहीं था।

दरअसल रमा की ससुराल में दादी सास, सास सरलाजी ससुर रमेशजी और एक देवर राजू और ननद निशा थी जो दोनों भाई बहन जुड़वा थे और अमर से उनके उम्र में काफी अंतर था राजू और निशा की आदत थी बात बात में सौम्या और खुशी को चिढ़ाते रहने की दोनों बहनों की उम्र में सिर्फ दो साल का ही अंतर था। खुशी समझदार थी लेकिन सौम्या को तुरंत गुस्सा आ जाता था। सौम्या को जैसे ही राजू निशा कहते तुमको तो कचड़े से उठाकर लायी है भाभी। सौम्या शुरू शुरू में तो रोने लगती, लेकिन जैसे जैसे वो बड़ी होने लगी रोना छोड़कर उदास हो जाती और चुपचाप अकेली बैठ जाती।

रमा हर बार अमर से कहती कि प्लीज आप राजू और निशा को इस तरह बोलने से मना करो, मुझे अच्छा नहीं लगता सुनकर और सौम्या को भी तो बुरा लगता है।

"रमा देखो तुम कुछ ज्यादा ही सोचती हो ऐसा कुछ नहीं, तुम बच्चों के पीछे निशा राजू को कुछ मत कहा करों।" अमर ने कहा।

लेकिन आज फिर वही बात हुई तो रमा खुद को रोक नहीं पायी बोलने से।

दोपहर के डेढ़ बजे गए खुशी घर आ गयी लेकिन सौम्या घर नहीं आयी। सौम्या को खुशी के साथ ना देखकर रमा ने पूछा "खुशी सौम्या कहाँ है?"

"पता नहीं मां, बस में नहीं देखा तो मुझे लगा कि वो पहले ही घर आ गयी, चाचू के साथ।"

इतना सुनते तो रमा के आंखों से झर झर आंखों से आंसू गिरने लगे। कांपते हाथों से रमा ने अमर को फोन किया और पूरी बात बतायी "अमर सौम्या घर नहीं आयी,आप जल्दी से स्कुल पर आओ मैं स्कूल जा रही हूं।"

पूरे घर मे मातम छा गया। रमा ने उसके आस पास नजदीकी दोस्तों के पास सब जगह ढूंढ लिया पूछ लिया लेकिन कही कुछ पता नहीं चला।

स्कूल कैम्पस के कैमरे को भी चेक किया गया, लेकिन कही कुछ पता नहीं चल पा रहा था।

अमर ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी और घर आ रहे थे कि तभी रमा ने कहा "अमर एक और बार स्कूल के रास्ते से देखते हुए चलते है, प्लीज कहाँ चली जाएगी अकेली मेरी छोटी सी बच्ची भुखी प्यासी पता नहीं कहाँ है", कहते हुए रमा के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

अमर ने रमा को फूटफूटकर रोता देख गाड़ी स्कूल की तरफ घुमा ली तभी रमा की नजर कार के लेफ्ट साइड लगे कांच पर गयी। उसे सौम्या के गरबे की ड्रेस का दुप्पटा दिखाई दिया उसने अमर को घबराते हुए अचानक से कहा "अमर कार रोको जल्दी।"

कार रोकते ही रमा तेज कदमो से दौड़ती भागती हुई जाने लगी तो अमर ने जल्दी से कार की गेट बंद करते हुए कहा ,"रमा रूको बोलो तो क्या हुआ, कहाँ जा रही हो।"

रमा भागकर सड़क के किनारे इकट्ठा किये कचरे के ढेर के पास पहुंची देखा ,"तो सौम्या वहाँ बैग के ऊपर सिर रख सोई है।"

रमा ने भाग कर गोद में उठाया तो उसका पूरा बदन तप रहा था और वो नींद में ही बड़बड़ा रही थी दीदी की उतरन सिर्फ मुझे ही क्यों माँ? मैं जानती हूँ मैं आपकी बेटी नहीं हूँ मुझे मेरी असली माँ के पास जाना है।

अमर ने सौम्या को अपनी गोद मे उठाकर कार तक लेकर आया और कार में रमा उसे अपनी गोद में लेकर बैठी। एक तरफ उसे जहाँ अपनी बेटी मिल जाने की खुशी थी वही दूसरी तरफ उसकी हालत देखकर उसका और अमर का कलेजा मुँह को आ जाता। रमा के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

अमर रमा उसको अस्पताल लेकर गए, उसको डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने कहा, "देखिये बच्ची की तबियत ठीक नहीं उसको अभी तो हल्का बुखार है और उसको किसी बात का बहुत गहरा सदमा लगा है, आप घर ले जा सकते है लेकिन बात जानने की कोशिश कीजिये और उसको खुश रखिये।"

रमा ने अमर की तरफ देखते हुए कहा "देख लिया, अपनी मनमानियों का नतीजा मैं कहती रही तुमसे की आजकल सौम्या उदास रहती है बच्चें से ऐसे मजाक नहीं करते, बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। लेकिन तुमने मेरी एक ना सुनी।" रमा लगातार रोये जा रही थी सौम्या को देख देख कर।

इधर अमर निरुत्तर आत्मग्लानि में डूबा हुआ किससे क्या कहे क्योंकि उसने सोचा भी नहीं था कि मजाक इतना सीरियस रूप ले लेगा।

सौम्या को डॉक्टर ने थोड़ी देर बाद घर भेज दिया।

अमर और रमा सौम्या को घर लेकर आये। सौम्या होश में आयी तो रमा और अमर को देखते ही उसने मुँह फेर लिया। तब रमा ने अपने आंसुओं पर काबू करते हुए कहा,"अरे मेरी सौम्या अपनी मम्मी से नाराज है क्या, लेकिन क्यों, मैं तो चॉकलेट लेकर आई थी वो भी अपनी गुड़िया रानी की फेवरेट वाली।"

लेकिन सौम्या ने कोई भी उत्साह या खुशी नहीं दिखाई उल्टा दो टूक बोला, "मैं आपसे नाराज नहीं हूं बल्कि मैं तो अपनी रियल मम्मी से मिलना चाहती हूँ।"

"सौम्या बेटा मैं ही आपकी रियल माँ हूँ,प्लीज ऐसा मत कहो" कहते हुए रमा सौम्या को अपने सीने से लगाकर रोने लगी।

तब अमर ने कहा,"सौम्या आप हमारी ही बेटी हो, आपको किसने कहाँ की आप हमारी बेटी नहीं हो?"

अच्छा तो जब आपके सामने मुझे चाचू बोल रहे थे कि मैं आप की बेटी नहीं तब आपने ये बात क्यों नहीं बोली? क्यों हर बार दीदी के पहने हुए कपड़े मुझे पहनने होते है? जब मैंने मना किया कि मैं चाचू के साथ नहीं जाऊंगी स्कूल आपने मुझे डांटकर क्यों भेजा? इसीलिए ना क्योंकि मैं आपकी बेटी नहीं हूँ।

रमा अमर की तरफ देखने लगी। और अमर निरुत्तर सौम्या को एकटक देखे ही जा रहा था कि जिसे वो हँसी मजाक समझ रहा था उसको सौम्या ने हकीकत मान लिया था।

तब रमा ने खुद को संभालते हुए,"उठकर अलमीरे से एक एलबम निकाल कर लायी। उसमें उसके बचपन की ढेरों तस्वीरे थी,रमा और अमर एक एक कर सौम्या को सारी चीजें दिखा रहे थे।"

फिर रमा ने कहा ,"सौम्या अच्छा आप एक बात बताओ आप को ये क्यों लगता है कि आपको हम दीदी की उतरन देते है?"

आपको पता है जब मैं छोटी थी तब तो मैं खुद ही अपनी दीदी के कपड़े पहन लिया करती थी और दीदी भी तो आपके पहने हुए शॉक्स, फ्रॉक पहनती है ना।

जब आप स्कूल फंक्शन में पार्टिसिपेट करती हो तो भी तो हम रेंट पर ही कपड़े लेकर आते है।

"जानती हो क्यों?" क्योंकि वो कपड़े हम ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते, तो उनके लिए हम उनको रेंट पर लेते है।

उसी तरह लहंगा, पार्टी वीयर कपड़े, कुछ ऊनी कपड़े, गरबा की ड्रेस कुछ ऐसे कपड़े है जो हम सिर्फ साल में एक आध बार या कभी कभी तो एक बार के बाद दोबारा नहीं पहने। बस इसीलिए मैंने आपको वो कपड़े पहनने के लिए दिए। लेकिन अगर आपको ये बात इतनी खराब लगती है तो प्रॉमिस मम्मा आपको कभी भी वो कपड़े पहनने के लिए नहीं देगी।

लेकिन आपको तो ख़ुशी दीदी कितना प्यार करती है आपके लिए चाचू और बुआ सभी से फाइट करती है "नहीं नहीं सौम्या तो सिर्फ मेरी बहन है।"

आप के साथ तो दीदी चॉकलेट अपनी पेंसिल रबर टॉय सब कुछ शेयर करती है कि पहले सौम्या लेगी फिर मैं लुंगी, बहनों में एक दूसरे से चीजे शेयर करना या एक दूसरे के कपड़े पहनना उतरन नहीं केयरिंग और शेयरिंग होती है। जो लगभग दुनिया की सभी बहने करती है।

"हाँ! मम्मा आप सही कह रहे हो, मेरी फ्रेंड चारु ने भी अपनी दीदी की गरबा ड्रेस पहनी थी और मेरी खुशी दीदी तो मेरी वर्ल्ड बेस्ट सिस्टर है, लेकिन फिर चाचू बुआ मुझे ऐसा क्यों बोलते हैं सब मुझ पर हँसते है तो मुझे अच्छा नहीं लगता।"

तब अमर ने सौम्या को गोद मे लेकर कहा,"अब आपको कोई भी आगे से ऐसा नहीं कहेगा ना ही कोई आप पर हँसेगा, ये पापा का प्रॉमिस है आप से लेकिन आप प्रॉमिस करो अब आप कभी ऐसा नहीं करोगी।"

और इधर कमरे के बाहर से सब सौम्या को देख रहे थे।

तभी दरवाजे पर खड़े राजू ने कहा,"और चाचू भी वादा करते है कि अपनी प्यारी सी गुड़िया के साथ कभी ऐसा मजाक नहीं करेंगे, आई एम सॉरी सौम्या। "आप हम सब की जान हो यही आपके मम्मी पापा है और मैं आपका चाचा ये आपका घर है,लेकिन मैंने बहूत बड़ी गलती कर दी।"

हाँ! भाभी भैया आप दोनों से भी हम दोनों सॉरी कहते है। आप लोगों ने बहुत बार समझाया लेकिन हम नहीं माने। लेकिन आज मजाक बहूत भारी पड़ गया।

"ओह्ह तो आप सब मिलकर मुझे फूल बना रहे थे" सौम्या ने खुशी से चहकते हुए कहा

तभी सब ने एक साथ मिलकर कहा,"हाँ"

और सौम्या खुशी से अपनी मम्मा पापा के गले लगते हुए बोली,"आई लव यू मम्मा पापा "

प्रिय पाठकगण उम्मीद करती हूं कि मेरी ये रचना आपको पसंद आएगी। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि परिवार के हर सदस्य को बच्चों से बहूत सोच समझकर कोई बात बोलनी या कहनी चाहिए क्योंकि उनका कोमल मन कब किस बात को दिल से लगा बैठे ये हम नहीं जान सकते,अगर बच्चा आपसे कोई कंप्लेन या बात बता रहा है तो उसकी बात पर गौर करें और उसको समझाए, लेकिन मजाक मजाक की हद तक ही करे एक बात को बार बार मजाक में भी ना दोहराए।


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