Vinita Pagey Rahurikar

Romance

4.0  

Vinita Pagey Rahurikar

Romance

उसके हस्ताक्षर

उसके हस्ताक्षर

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479


पहला प्यार, एक अनचीन्ही नितांत नवीन भावना का हृदय में उठना। एक प्यारे से, मीठे से भाव का उदय, हृदय के खाली वीरान आकाश पर एक चंद्रमा का उग आना। मन के रंगमंच पर एक अपरिचित, अंजान मेहमान का अनाधिकार बलात प्रवेश।

एक उम्र का सफर तय करने के बाद जब पीछे मुड़कर बहुत पुरानी किसी उम्र की गलियों को देखते हैं तो पहला प्यार अक्सर किसी पुरानी डायरी के पन्नों के बीच दबे हुए गुलाब के फूल के रूप में, मन के कोने में रिसते हुए घाव के रूप में या बहुत जतन से दबाकर सबकी नजरों से छुपा कर रखे गए पत्र के रूप में बचा रह जाता है।

मेरा पहला प्यार भी ऐसे ही एक प्रतीक के रूप में आज तक मेरी किताबों के बीच सुरक्षित रखा हुआ है, एक डायरी में उसके हस्ताक्षर के रूप में सहेजा हुआ है।

वह बारहवीं का साल था। सोलह बसंत पूरे कर के सतरह बसंत में पाँव रखा ही था मैंने तभी हमारी क्लास में एक नए लड़के ने एडमिशन लिया।

प्रवीण...जैसा कि नाम था वह सचमुच बहुत मेधावी था। मासूम सा चेहरा, बहुत ही खूबसूरत सपनों में खोई-खोई सी आँखें। हमेशा चुप-चुप रहता। पढ़ाई में डूबा रहता। जहां क्लास के सारे लड़के लड़कियों के आगे-पीछे मंडराते रहते, कमेंट करते वही उसे मैंने कभी किसी लड़की की और आँख उठाकर देखते हुए भी नहीं देखा। वह बाकी सब लड़कों से बहुत अलग था। उसका यह अलग सा होना ही दिल के दरवाज़े पर अनायास मासूम सी दस्तक दे गया। दिल का दरवाज़ा खुला और मैं एक बहुत ही खुश गवार रूमानी दुनिया में पहुंच गई।

अब तो बीमार हूँ, चाहे घर में मेहमान हो, कोई जरूरी काम हो मैं कभी भी स्कूल मिस नहीं करती। पूरे रास्ते स्कूल के गेट और क्लास रूम के दरवाज़े तक पहुंचने तक मन कितना बेचैन हो जाता था। आँखें बस एक ही चेहरा तलाशी रहती थी। उसके प्यार में आकंठ डूब कर न जाने कितनी कविताएं लिख डाली। रातरानी, हरसिंगार से न जाने कितनी रात बीते तक उसके बारे में बात करती रहती। कितना अनोखा रूमानी अहसास था, उफ्फ।

कोई मन पर इतना भी हावी हो सकता है। उसका चेहरा देखकर आँखें थकती नहीं थी। टीचर्स देख न लें इसलिए जबरदस्ती आँखें ब्लैकबोर्ड पर रखनी पड़ती लेकिन ब्लैकबोर्ड पर भी तो उसी का चेहरा ही दिखता था।

रात भर चाँद को देखकर खुश होती रहती की यही चाँद उस पर भी अपनी चांदनी बरसा रहा है। यह सोचते ही खुद से ही शर्मा जाती मानो चाँदनी नहीं खुद प्रवीण ने ही मुझे छू लिया हो। स्कूल जाते हुए भी नजर रास्ते पर उसे ही ढूंढती रहती। पहला प्यार भी कितना सुखद अहसास है। जीवन को एक नया अर्थ, नई संवेदना दे जाता है। जीने की नई वजह बन जाता है। मुझे तो जीवन का सबसे अनमोल उपहार मिला- मेरी कलम। कितना कुछ लिख डाला उसकी याद में।

आपस में कभी हमारी बातचीत नहीं हो पाती थी लेकिन उसका उसी कमरे में होना कितना रोमांचित कर जाता था मुझे। एक मीठा सा सुकून था कि वह पास है, बहुत पास।

न जाने कब कलम साइंस के प्रैक्टिकल लिखने की जगह कविताएं लिखने लगी। मासूम दिल की मासूम चाहतें और उन सारी चाहतों, ख्वाहिशों का एक-एक कर कागज़ पर उतरना। और कब सिर्फ उसे देखते रहने के सुकून में ही पूरा साल निकल गया पता ही नहीं चला। कुछ दिन और बचे थे फिर प्रिपरेशन लीव, फिर परीक्षा और पता नहीं कौन किस कॉलेज में जाता है। मन की उदासी गहराने लगी थी। मूक प्यार को शब्द देने का साहस नहीं था तब।

परीक्षा के पहले क्लासेस बंद होने के एक दिन पहले अपने सभी सहपाठियों के लिए ग्रीटिंग बनाए अपने हाथ से और प्रवीण के लिए खास तौर पर लाल गुलाब के फूल वाला ग्रीटिंग बनाया। अपनी ऑटोग्राफ डायरी साथ ले गई और सभी लोगों के ऑटोग्राफ लिए और उन्हें ग्रीटिंग दिए। तब न मोबाइल थे और ना ही सबके घरों में टेलीफ़ोन ही थे। उस दिन छूटा हुआ पहला प्यार हमेशा के लिए दिल में याद बनकर और डायरी में ऑटोग्राफ बनकर ही रह गया।


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