लेखक: अलेक्सांद्र रास्किन ; अनुवाद: आ. चारुमति रामदास लेखक: अलेक्सांद्र रास्किन ; अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
रात भर चाँद को देखकर खुश होती रहती की यही चाँद उस पर भी अपनी चांदनी बरसा रहा है। रात भर चाँद को देखकर खुश होती रहती की यही चाँद उस पर भी अपनी चांदनी बरसा रहा है।
मैं तो उस गीत को पूरा करने में लग गया। मैं तो उस गीत को पूरा करने में लग गया।