उसका सच-1
उसका सच-1
"तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी ?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"
उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहमजबाब का इंतजार हो उसे।
जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या ?
" संदली!, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं ?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।
" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।
" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"
" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।
" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों ?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।
"बस कुछ नई तकनीकजिससे मेरा समय अच्छे से बीते और मुझे खालीपन भी ना लगे मेरा लिखने का शौक भी पूरा हो,''जानकी के ये कहते ही,
"अरे वाह क्या बात हैं आंटी,'' संदली ने कृत्रिम खुशी दिखाते हुए बोली
अब जानकी से रहा ना गया उसके पास खिसक आई और सिर पर हाथ फेरते बोली "क्या बात हैं संदली, दिल में कौन सा ज़ख्म ले बैठी हो, क्या मैं जान सकती हूँ बेटा की, किस बात ने तुम्हारी स्वाभाविक हँसी छीन ली, ''
आत्मीयता की गर्मी पा संदली बिलख पड़ी ""जिस पर मैंने भरोसा किया उसीने मुझे धोखा दिया, मैंने अपना मन ही नहीं तन भी सौप दिया था, पर भवरें एक फूल पर कहाँ टिकते हैं सो वो भी मुझ से खेल दूसरे के संग चला गया मेरे चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगा कर ''
" क्या किसी को तन -मन से प्यार करना गुनाह हैं '' और फिर लड़की ही क्यों चरित्र हीन हो जाती लड़का क्यों नहीं होता ''
"ये हमारे समाज की विडंबना हैं की पुरुष हजारों गुनाह करके भी पाकसाफ होता हैं और औरत को जरा सी गलती उसे कटघरे में खड़ा कर देतीं हैं ''जानकी ने उसे समझते हुए कहा
"पर संदली जो हुआ उसको भुला कर आगे बढ़ना ही जीवन हैं सब भूल कर अपने सपने पूरे करो, जो तुमने और तुम्हारे माँ -पापा ने देखे, जो तुम्हारा नहीं उस पर अधिकार जताना भी नहीं चाहिए, गलत इंसान के लिए अपनी जिंदगी क्यों ख़राब करना, अच्छा हुआ जो तुम्हे उसकी असिलियत पहले दिख गई ''जानकी के ये कहते ही संदली उनके गले लग गई उसकी आँखों में आशा के दीप टिमटिमा उठे
"आप ठीक कह रही आंटी अब मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान दूंगी।