उपकार
उपकार
(संस्मरण)
कॉलेज से घर आते हुए बेटे सात्विक के हाथ में पुराना सा जूते का डिब्बा देखकर मन चक्कराया। समझ आ गया कि फिर से उसका दया भाव कहीं न कहीं, किसी न किसी जागा है और कुछ ना कुछ उस डिब्बे में खास है। उसके चेहरे की खुशी बता रही थी आज फिर से वह कोई नया प्राणी घर में लेकर आया है। अंदर घुसते ही बोला, "माँ देखो आपके लिए क्या लाया हूँ?" उसने डिब्बे का ढक्कन खोल दिया। एक पुराने जूते के डिब्बे में छोटा सा गिलहरी का बच्चा। एकदम से हैरानी हुई यह कहाँ से मिला? उसका जवाब, "जैसे कॉलेज की बस से उतरा तो सड़क पर पड़ा था। सोचा सड़क के किनारे कर दूँ, पर जैसे ही उसको उठाने लगा तो देखा बेचारा निढाल सा पड़ा था। तो मुझे लगा कि बहुत छोटा है अगर मैंने ऐसे ही छोड़ दिया तो या तो यह किसी के पैर के नीचे आकर मर जाएगा, हो सकता कि भूखा प्यासा मर जाए। मम्मी में मैं इसको ले आया हूँ। हम इसे पाल लेंगे।" मैं हैरान थी उसका मन भी न, कुत्ता बिल्ली कोई भी जानवर उसे कहीं मिल जाए इतना दयालु भाव उसके अंदर भरा कि वह सहायता के प्रयास अवश्य करता है। मैंने कहा, इतने छोटे को क्या खिलाएँगे ?" "आप चिंता मत करो, खिला देंगे इसको कुछ भी- पिला देंगे।" उसके बाद उसकी सेवा चाकरी का काम शुरू। मैं हैरान थी कि वह उसको अपनी हथेली में लेकर बैठा हुआ था और उसके अंदर कुछ बूंदें पानी की डाल रहा था और जैसे ही पानी उसके मुंह पर गया तो एकदम से उसके शरीर में जान आ गई और बेटा खुशी से ताली बजा कर नाचने लगा। उसके बाद उसका काम शुरू और नेट पर सर्च करने का कि वह उसको क्या खिला सकता है। इतने छोटे से को और हमें तो चिंता यह थी इतना छोटा सा अंगुल जितना था, अगर घर में इधर उधर कहीं चला गया तो कहाँ ढूंढेंगे। फिर एक कमरे को पूरी तरह से बंद कर लिया गया और हमारे इस गिलहरी जी के बच्चे की सेवा पानी शुरू हो गई। उसके लिए सूजी लाई गई सूजी डाली और देखा कि थोड़ा सा मुंह में लिया। दूध और पानी हम उसे देते रहे। खुशी का ठिकाना नहीं था कि चलिए एक जीव की जान बच गई। बेटे के मन की यह भावना अंदर तक प्रसन्न कर गई। जीवों पर उपकार करना, उसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े, वह कभी पीछे नहीं हटता है और आज उसके एक नेक काम से एक जीव को जीवन मिल गया। कम से कम 15 दिन तक वह हमारे घर में रहा बड़ा भी हो गया घूमना शुरू कर दिया। कुछ दिन के बाद जहाँ से टीवी की तार अंदर आ रही थी वहां से वह निकल गया। क्योंकि उस दिन बालकनी में बहुत सारी गिलहरियों की आवाजें आ रही थी। लेकिन बेटे को कहाँ तसल्ली ? वह यहाँ- वहाँ घूमता रहा और उसने देख लिया कि बच्चा जो है वह सही सलामत निकल गया है। चलो अंत भला तो सब भला । अगर किसी का भला हो जाए वो भी जीवन दान, तो इससे बड़ा पुण्य काम क्या हो सकता है!!