उपासना का फल।
उपासना का फल।


यह कहानी एक सूफी संत की है, जिनका नाम हजरत मूसा था। एक दिन वह रास्ते में कहीं जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक कुपढ़ और मूढ़ गडरिया आँखें बंद किए एक वृक्ष के नीचे बैठा कुछ बड़बड़ा रहा है। उसके मुख पर प्रसन्नता है, शरीर निचेष्ट है, बाहरी सुधि- बुद्धि उसकी लुप्त है। हां !किसी से बातें करते हुए जान पड़ता है, जैसे सूक्ष्म जगत में कोई उसके सम्मुख खड़ा हो, उसी की ओर उसका पूरा ध्यान है, उसी को संकेत कर वह अपनी कहे जा रहा है। मैं क्या कह रहा हूं, और कोई दूसरा भी वहाँ सुनने वाला खड़ा है, इसका उसे कुछ भी ज्ञान नहीं है। मानो! उसे प्रेम समाधि लग रही हो।
मूसा उसके समीप गए, चुपके से उसकी बातें सुनने लगे। वह कह रहा था -'या ख़ुदा ! मेरा सर्वस्व तेरे अर्पण है, तू अगर भूखा हो तो मेरी सारी भेड़ों का मीठा और स्वादिष्ट दूध पी, अगर तुझे जाड़ा लग रहा हो तो यह मेरा कंबल ओढ़, यदि तू थक गया हो तो मैं तेरा जिस्म दबाऊँ तुझे जो कुछ तकलीफ़ हो वह मुझसे कह, मैं उसी के दूर करने का उपाय करूँ। मेरे पास जो कुछ भी है वह तेरा ही है। तू उसको भोग और सुखी रह, तेरे किसी भी कष्ट के लिए मेरी जान न्योछावर है' इत्यादि। यह अवस्था ही "उपासना या हुजूरी" कहलाती है। इसमें समाधि आती है, पर मैं और तू की द्वैतावस्था मौजूद रहती है। उपासक अपनी भावना और बुद्धि के अनुसार अपने प्रेम पात्र को देखता है और मनुष्य की तरह उससे वार्तालाप करता है।
मूसा बड़े शूरवीर और क्रोधी थे, मिस्र के राजा पर फरऊन को विजय करने के पश्चात उधर के देशों में उनकी धाक जम गई थी। यद्यपि जिंदगी सादा और फकीराना थी, धन-दौलत मुल्क -फौज उनके पास नहीं थे, अकेले ही सफर करते और अकेले ही धर्म को ना मानने वालों से संग्राम में जुटे थे, परंतु तो भी उनके नाम का डंका बज रहा था, लोग उनसे भयभीत रहते थे। अपने इष्ट देव के प्रति ऐसे मूर्खतापूर्ण शब्द उनसे सहन नहीं हो सके, उन्होंने समझा यह मेरे ख़ुदा की बेइज्जती कर रहा है, उसे अपने से भी छोटा और असमर्थ समझ रहा है, कड़क के बोले-' ओ हरामजादे !क्या बक रहा है कहीं ख़ुदा को जाड़ा लगता है, कहीं उसे भूख सताती है, क्या उसे तेरी मदद की जरूरत है? वह तो सारे विश्व का मालिक है, सबको रोजी देता है, सबका पालन-पोषण करता है। खबरदार आइंदा ऐसी हरकत की तो मैं तुझे जान से मार डालूंगा। '
गडरिया के कानों में यह शब्द पहुंचे, उसे चेतना आई, समाधि भंग हो गई, मस्ती उतर गई, होश आया, देखा हजरत मूसा क्रोध में भरे सम्मुख खड़े हैं। भयभीत हो गया, डर से कांपने लगा, पास ही पहाड़ियों का सिलसिला था वह बड़ी तेज से उठकर भागा और एक अंधेरी गुफा में जा छिपा। मूसा अपने स्थान पर आए हाथ-पाँव धोकर नमाज़ पढ़ने लगे। आकाशवाणी हुई -'मूसा तैने बहुत बुरा किया, जो मेरे प्रेमी को मुझसे जुदा किया। गडरिया के वह प्रेम भरे शब्द मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे। मूसा मैं भाव का भूखा हूं, प्रेम से मुझे कोई गालियां भी बकता हो तो मुझे बड़ी प्यारी लगती है, कर्म -कांड दूसरी चीज है इसमें नियम चलता है, प्रेम में कोई नियम नहीं होता, वहां मान -अपमान रहता ही नहीं। प्रेमी को इतना होश कहां होता है जो ऊँच -नीच का विचार करे। उसकी मन -बुद्धि और इंद्रियां अपना सारा व्यापार त्याग एकदम मेरी ओर ही खिंच जाती है, प्रेम की मस्ती में सुधि-बुधि सब बिसर जाती है। वह सब ओर मुझे ही देखता है, मुझे ही आलिंगन करने को दौड़ता है, मुझे पकड़ने को झटपटाता है, जो जी में आता है वह मुझसे बकता है। ऐसे प्रेमियों के अटपटे शब्द मुझे बड़े प्यारे लगते हैं, सदा ही उनके सुनने को उत्सुक रहता हूं। तू कर्म- कांण्डी है, प्रेम के मार्ग को क्या जाने इसलिए यह ग़लती तुझसे हुई है, आगे कभी ऐसा मत करना।
मूसा को एक नई बात मालूम हुई, अहंकार का पर्दा हटा, प्रेम के महत्व का उनको पता चला, भाग के उसी स्थान पर पहुंचे जहां गडरिया बैठा अपने प्रेमी को रिझा रहा था, अपने इष्ट देव को सम्मुख देख रहा था और उनसे उल्टे सीधे शब्द कह रहा था परंतु अब वह वहां कहां था। तलाश करने लगा, पता चला एक अंधेरी कंदरा में छुपा बैठा है। वहां भी पहुंचे आवाज़ दी और बोले- ऐ -गडरिया डर मत, मैं तुझे ख़ुदा का संदेश सुनाने आया हूं। वह तेरे उन्हीं शब्दों से खुश था, उन्हीं को फिर ख़ुदा के रूबरू कह, मैंने ग़लती की थी जो तुझे मना किया ।
गडरिया बोला -'मूसा! अब मैं वह नहीं रहा, वह तो उसी वक्त की हालत थी, अब मेरी आंतरिक स्थिति बदल चुकी है, उस क्षणिक दर्शन ने ही मेरी आँखें खोल दी हैं, मेरे अज्ञान का पर्दा हट चुका है, मेरे विचार, मेरे भाव अब पहले जैसे नहीं रहे, अब तो किसी दूसरे लोग का प्राणी बन चुका हूं। मैं देखता हूं कि मेरे प्यारे ने मुझे अपना लिया है, आप जाइए और मुझे मेरे चितचोर के चरणों में पड़े रहने दीजिए।
यह है पल मात्र की उपासना का फल।