Archana Kohli "archi"

Abstract

4  

Archana Kohli "archi"

Abstract

उम्मीद के बादल

उम्मीद के बादल

3 mins
283


"सुनो जी। लगता है, इस साल भी बरसात नहीं होगी। जमीं में फटी दरारें देखकर लगता है इस साल भी सूखे की मार झेलनी होगी। बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं। उन्हें देखकर कलेजा मुँह को आता है"।

"कमली कलेजा तो मेरा भी फटता है, जब मुनिया और राजू मेरी और उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं। दिल बहुत रोता है, जब वे सूखी रोटी प्याज़ के साथ खाते हैं। कैसी लाचारी है"। कहते कहते किसना की आँखें भर आईं।

"ये कड़े गिरवी रखकर कुछ खाने को ले आओ"। हाथ से कड़े उतारते हुए कमली ने भरी आँखों से कहा।

"ये कड़े। यही तो बचे हैं तुम्हारे पास। तुम्हारी मां की आखिरी निशानी हैं। खुद तो तुम्हें एक चाँदी की पायल भी नहीं बनवा सका। नहीं, नहीं इसे मैं नहीं ले सकता। कहीं न छुड़वा पाया तो•••"।

"और कोई चारा भी नहीं है जी। बच्चों को भूखा नहीं रख सकती। और मैंने सोचा है, घर में पापड़-वड़ी बनाने का काम शुरू कर देती हूँ। खाने के सामान के साथ पापड़-वड़ी बनाने का सामान भी ले लेते हैं। फिर गिरवी रखने को बोला है। बेचने को नहीं। अगर सब सही हुआ तो छुड़वा लेंगे"। कमली ने कहा।

"पर पापड़-वड़ी बेचेंगे कहाँ। दलाल को कहेंगे तो ऊंट के मुँह में जीरा जैसी बात होगी"।

"मैंने एक दो से बात की है। बस आपको साइकिल पर उनके घर पहुंचाना है"।

"कमली मुझे सही नहीं लग रहा। मैं खाली बैठा रहूँ और तू काम करे। लानत है मुझ पर। न, न तुझे काम करने की ज़रूरत नहीं। वैसे भी तू घर का काम और बच्चों को संभालते संभालते बहुत थक जाती है। अकेले कैसे करेगी। कुछ दिन रुक जा। मुझे कोई न कोई काम मिल जाएगा। खोज तो रहा हूँ। नहीं तो शहर चला जाऊंगा"।

"कैसी बात कर रहे हैं जी। अपनी जड़ से अलग रह पाओगे। देर से ही सही, कोई न कोई काम आपको मिल ही जाएगा। उम्मीद मत छोड़ो जी। फिर मैं अकेली कहाँ हूँ। आप भी तो साथ देंगे। फिर जब हुनर है तो क्यों न करूं। बच्चों के लिए करना ही होगा। अगर काम अच्छा चल निकला तो पैसे भी कुछ जुड़ जायेंगे"।

"कह तो सही रही हो। पर इसके लिए मैं साहूकार से उधार ले लेता हूँ। कड़े गिरवी रखने की ज़रूरत नहीं। घर की हालात बताकर ले आता हूँ। शायद दया करके कुछ दे दे"।

"नहीं जी। किसी के पैरों पर लौटने की ज़रूरत नहीं है। आप बस जल्दी से सामान लेकर आइए"। उसे दरवाजे की और धकेलते हुए कमली ने कहा।

"ठीक है भई। जाता हूँ"। कहकर जैसे ही बाहर कदम बढ़ाया, वैसे ही छप्पर से एक बूँद जल की उसपर गिरी। ऊपर देखा तो आसमान से नर्तकी की तरह लहराती हुई बूँदें धरा पर गिर रही थी।  टप-टप करती बूँदें धीरे-धीरे मूसलाधार बरसात में परिवर्तित हो गई।

"कमली ओ कमली"। वह ज़ोर से चिल्लाया।

"क्या है जी"। 

"ऊपर देख। भगवान ने हमारी सुन ली। अच्छे दिन आने वाले हैं। अब तुझे पापड़-वड़ी बनाने की जरूरत नहीं"।

"कैसे जरूरत नहीं जी। अब तो हम बच्चों को भरपेट खिला सकेंगे। एक रास्ता मिला है। उसे हाथ से नहीं जाने दूँगी। बहुत मुश्किल से हम सबने दिन काटे हैं"। बच्चों की और खुशी से देखते हुए कमली बोली।

उस समय ऐसा लगा, मानो उम्मीद के बादल असंख्य बूँदों के रूप में चमक रहे हों।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract